गणतंत्र दिवस परेड 2024 में सिर्फ महिलाओं की हिस्सेदारी पर तरह तरह की बातें

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गणतंत्र दिवस परेड
फाइल फोटो

दिल्ली में 2024 में होने वाली गणतंत्र दिवस परेड बिलकुल अलग तरह की होगी. हर साल की तरह इस साल भी परेड का आयोजन 26 जनवरी को ही होगा. जगह भी पुरानी होगी . यानि कर्तव्यपथ जिसे पहले राजपथ कहा जाता था. लेकिन ऐसा पहली दफा होगा जब इस परेड में सभी प्रतिभागी महिलाएं होंगी. इस बारे में लिए फैसले का खुलासा रक्षा मंत्रालय के कुछ अरसा पहले जारी एक आदेश में किया गया है. ऐसा फैसला क्यों लिया गया, इसे लेकर विवाद छिड़ गया है.

रक्षा मंत्रालय के निदेशक (सेरेमोनियल) एम पी गुप्ता की तरफ से ये आदेश 1 मार्च को जारी किया गया था. इसमें 7 फरवरी 2023 को रक्षा सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक का हवाला देते हुए कहा गया है कि बैठक में निर्णय लिया गया कि 2024 की गणतंत्र दिवस परेड (republic day parade 2024) में हिस्सा लेने मार्चिंग टुकड़ियों, बैंड, झांकियों और अन्य प्रस्तुतियों में सिर्फ महिलाएं हिस्सा लेंगी. परेड के आयोजन से सभी संबंधित मंत्रालयों, तीनों सेनाओं के प्रमुखों और विभिन्न विभागों व राज्य सरकारों को इस बारे में सूचित किया गया है ताकि उसी हिसाब से व्यवस्था की जा सके.

गणतंत्र दिवस परेड
आदेश की प्रति

गणतंत्र दिवस परेड में सिर्फ महिलाओं की हिस्सेदारी से संबंधित सरकार के इस फैसले को लेकर सोशल मीडिया पर तरह तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. सबसे दिलचस्प पहलू तो वो कारण या मकसद है जिसके मद्देनज़र ये फैसला लिया गया. माना जा रहा है कि भारत में महिलाओं के हो रहे सशक्तिकरण के संदेश को देश दुनिया में पहुंचाना इसका मकसद है. लेकिन कुछ लोग इस संदेश के प्रचार के पीछे सियासी कारण देखते हैं. ऐसों का मानना है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में वोटरों को रिझाने के लिए ये एक हथकंडा है. वर्तमान सत्ताधारी पार्टी इसे चुनावों में एक उपलब्धि के तौर पर भुनाने की कोशिश करेगी.

वैसे परेड में महिला सैनिकों और महिला पुलिसकर्मियों की तादाद इस साल भी ख़ासतौर पर ज्यादा दिखी थी. गणतंत्र दिवस परेड 2023 में कई मार्चिंग दस्तों को महिलाएं कमांड करते दिखाई दी थीं. पिछले कुछ वर्षों में सेना में महिलाओं की संख्या को बढ़ाने को लेकर कई दफा विवाद हुए हैं जिससे सेना और सरकार को आलोचना सहनी पड़ी. अदालतों के फैसले के कारण सरकार को महिलाओं के लिए सेनाओं में ओहदे और प्रोफाइल बढ़ाने पड़े. मजबूरी में लिए गए उन फैसलों को महिला सशक्तिकरण से जोड़कर सरकार इस मामले में अपनी धूमिल छवि को भी ठीक करना चाहती है. कुछ इसे भेदभावपूर्ण फैसला मानते हैं.