राफेल की स्क्वाड्रन की कमान शौर्य चक्र से सम्मानित जांबाज पायलट हरकिरत सिंह के सुपुर्द

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राफेल की स्क्वाड्रन की कमान पायलट हरकिरत सिंह (इनसेट) के सुपुर्द.

लड़ाकू विमान राफेल की आमद की दस्तक के साथ ही भारतीय वायु सेना की वो ऐतिहासिक लड़ाकू स्क्वाड्रन फिर से वज़ूद में आ गई जिसने करगिल जंग समेत कई मौके पर अपनी जांबाज़ी के जोहर दिखाए हैं. करगिल जंग के वक्त इसके कमान अधिकारी, भारतीय वायु सेना के वर्तमान प्रमुख एयर चीफ मार्शल बिरेंदर सिंह धनोआ थे और ये मिग -21 उड़ाती थी. स्क्वाड्रन 17 यानि ‘गोल्डन ऐरो’ अब न सिर्फ दुनिया के सबसे ताकतवर और मारक क्षमता से लैस राफेल का खैरख्वाह बन रही है बल्कि इसे कमान अधिकारी भी अदम्य साहसी और सूझबूझ वाला मिला है. नाम है ग्रुप कैप्टन हरकिरत सिंह जो शौर्य चक्र से सम्मानित फाइटर पायलट हैं.

फ्रांस में राफेल की निर्माता कम्पनी द्साल्ट एविएशन और एयर फ़ोर्स के ठिकानों पर ग्रुप कैप्टन हरकिरत सिंह और उनके पायलट साथियों की ट्रेनिंग चल रही है. पायलटों के अलावा 70 से ज़्यादा इंजीनियर आदि भी यहाँ ट्रेनिंग ले रहे हैं. ये ट्रेनिंग भारतीय और विदेशी विमानन विशेषज्ञ मिलकर करवा रहे हैं.

कौन हैं पायलट हरकिरत सिंह :

पंजाब में जलंधर के रहने वाले हरकिरत सिंह के पिता भी सेना में थे – लेफ्टिनेंट कर्नल निर्मल सिंह. दिसम्बर 2001 में भारतीय वायु सेना का हिस्सा बने फाइटर पायलट ग्रुप कैप्टन हरकिरत सिंह को उस मिग 21 सुपरसोनिक फाइटर की परवाज़ भरने में महारथ हासिल है जो ‘उड़न ताबूत’ के तौर पर बदनाम है और अब तक जिसकी दुर्घटनाओं में 170 भारतीय पायलटों और तकरीबन 40 नागरिकों की जान जा चुकी है. लेकिन ये ऐसा लड़ाकू है कि इसने इसी साल कश्मीर सीमा पर, अमेरिका निर्मित दमखम वाले पाकिस्तान वायु सेना के एफ 16 फाइटर को तबाह करके अपनी मारक क्षमता का उन विशेषज्ञों को अहसास दिला दिया जो इसे गुज़रे जमाने का फाइटर ट्रेनर भर समझते हैं. अभी भी भारतीय वायुसेना में ये 100 से ज़्यादा की गिनती में हैं.

पायलट हरकिरत सिंह
पायलट हरकिरत सिंह (सबसे बाएं) को ‘गोल्डन एरोज’ सौंपते इंडियन एयर फोर्स के चीफ बीएस धनोआ.

ग्रुप कैप्टन हरकिरत सिंह की जांबाजी :

वो 23 सितम्बर 2008 की अँधेरी रात थी जब हरकिरत सिंह को दो विमानों वाली अभ्यास अवरोधन उड़ान (practice interception sortie) मिग 21 बाइसन में भरनी थी. तकरीबन चार किलोमीटर की ऊंचाई पर अवरोध प्रक्रिया के दौरान इंजन से तीन धमाके सुनाये दिए. कॉकपिट की बत्तियां गुल हो गई और बेहद मद्धिम इमरजेंसी वाली बैटरी लाइट बची थी. सुरक्षित लैंडिंग के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी क्यूंकि नीचे रेगिस्तानी इलाके में अँधेरे की वजह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. इंजन में आग लग चुकी थी यानि सबसे ऊँचे दर्जे की आपात स्थिति थी. ऐसे में विमान या पायलट में से कोई एक ही बच सकता है. इतने खतरनाक हालात में भी विमान उड़ा रहे हरकिरत सिंह ने धैर्य नहीं खोया और विमान को काबू करके और विमान में मौजूद नेविगेशन सिस्टम की मदद से महज़ कॉकपिट की लाइट के बूते पर लैंडिंग कराने की तरकीब आजमाई. वो विमान को उस स्थिति में ले आये जिससे निगरानी राडार के दायरे में आ जायें. ऐसा करने के लिए बेहद आला दर्जे की कौशल और साहस चाहिए होता जिसका प्रदर्शन पायलट हरकिरत सिंह ने किया.

शौर्य चक्र से सम्मानित :

उन्होंने अपनी जान की परवाह नहीं की. खुद को इजेक्ट नहीं किया और विमान की लैंडिंग करवाई. इतना ही नही लैंडिंग के बाद रनवे भी क्लियर किया और विमान को तरीके से ऑफ़ किया. इस तरह उन्होंने आपात स्थिति में भी अपनी जान के साथ बेहद कीमती विमान को भी बचा लिया. उनके इसी कारनामे की वजह से उन्हें 15 अगस्त 2009 को शौर्य पदक से सम्मानित किया गया.

स्क्वाड्रन 17 :

भारतीय वायु सेना की पश्चिमी कमान का हिस्सा रही गोल्डन ऐरो स्क्वाड्रन अक्टूबर 1951 में वजूद में आई थी और इसका पहले ठिकाना रहा हरियाणा (तब संयुक्त पंजाब) स्थित अम्बाला एयरबेस. तब से लेकर 1975 तक स्क्वाड्रन यहीं रही लेकिन इसके सुपुर्द किये जाने वाले विमान बदलते रहे. पहले पहल हारवर्ड II बी फिर हविल्लैंड वेम्पायर और उसके बाद हॉकर हंटर. 1975 में इस स्क्वाड्रन को मिग 21 का बेड़ा सौपा गया और इसके साथ ही इसका 2016 तक इसका ठिकाना बठिंडा का एयरबेस रहा. करगिल जंग के वक्त यहीं से मिग की उड़ान होती थी. तब इसके कमांडिंग अधिकारी बीएस धनोआ थे.

पाकिस्तान से युद्ध के समय इसी स्क्वाड्रन ने राजधानी दिल्ली को कवर दिया था. मिग कम होते गये तो ये 17 स्क्वाड्रन भी आखिर तोड़ दी गई. अब इसे 21 सितम्बर को फिर से वजूद में लाया गया है और अब फिर इसका केंद्र अम्बाला एयरबेस ही है. जब द्साल्ट राफेल यहाँ आयेंगे तो इसी 17 स्क्वाड्रन यानि गोल्डन ऐरो के सुपुर्द किये जायेंगे. यहीं पर पायलटों की अव्वल दर्जे के सिमुलेटर पर ट्रेनिंग भी होगी.

17 स्क्वाड्रन ने गोवा मुक्ति अभियान के दौरान 1965 की शुरुआत में और विंग कमांडर एन चतरथ के नेतृत्व में 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में भी अहम रोल अदा किया. 1988 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने 17 स्क्वाड्रन को ‘कलर’ प्रदान किया था.