भारतीय वायु सेना को पिछले कुछ अरसे से जिस समस्या का सामना करना पड़ रहा है वो समस्या अब चुनौती बनती जा रही है. ये है, इसके पायलटों का 20 साल की सेवा के बाद पेंशन की पात्रता हासिल होते ही समय पूर्व रिटायरमेंट लेना. विमानन क्षेत्र में भारत में नई कम्पनियों का उदय होने के कारण पायलटों का रुझान जहां उस तरफ जाने को लेकर बढ़ा वहीं तरक्की में सम्भावनाओं की कमी इसके मुख्य कारण तो हैं ही अब रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में निजीकरण और विदेशी निवेश ने भी सैन्य पृष्ठभूमि वाले विशेषज्ञों के साथ साथ उनके करियर की दूसरी पारी के लिए भी एक नई विंडो खोल दी है.
वायु सेना से पायलटों के नौकरी छोड़ने के सिलसिले का ग्राफ 20 साल से ऊपर नीचे होता रहा है लेकिन अब हालात बदतर होते जा रहे हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ 2018 -19 में 200 पायलटों ने वक्त से पहले रिटायरमेंट लिया है. पिछले दो साल में तकरीबन 300 पायलटों ने समय पूर्व सेवामुक्ति के लिए आवेदन किया था और इनमें से 200 के आवेदन मंजूर हुए. इसी रिपोर्ट में एक अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि अगर हरेक साल 60 पायलट भी भारतीय वायु सेना से समयपूर्व मुक्त होने लग पड़े तो ये संकट वाली हालत होगी. ये रुझान मध्य दर्जे यानि स्क्वाड्रन लीडर से ग्रुप कैप्टन रैंक पर ज्यादा देखा जा रहा है. और यही श्रेणी ऐसी है जो अनुभवी होने के साथ साथ विशेषज्ञता हासिल कर लेती है और शारीरिक अवस्था क्षमतायुक्त व उर्जावान भी होती है.
निजी क्षेत्र के मुकाबले कम वेतन, पारिवारिक परिस्थितियों की ज़रूरतों को पूरा करने के नज़रिये से ट्रांसफर पोस्टिंग्स से सम्बद्ध नियमों का उदार न होना और उस हिसाब से साधनों की कमी और उस पर सैन्य अनुशासन के बीच बंदिशें आदि कारण हैं जिसकी वजह से भारतीय वायु सेना के ज्यादातर पायलट नौकरी छोड़ने का मन बनाते है जिसे प्रीमेच्योर सेपरेशन फ्रॉम सर्विस (पीएसएस) कहा जाता है. इस रैंक तक पहुंचते पहुँचते पायलट का वेतन 2 लाख रुपये के आसपास होता है. उसमें भी कट कटाकर हाथ में बमुश्किल 1.5 भी नहीं आ पाता जबकि प्राइवेट कम्पनियों के जहाज़ उड़ाने पर पायलट को तीन गुना ज्यादा तनख्वाह मिल ही जाती है.
वायुसेना से पीएसएस लेकर एक निजी कम्पनी में सेवारत अधिकारी आर्थिक पहलू का ज़िक्र करते हुए कहते हैं, “अगर एयर लाइंस विदेशी है तो आयकर में अलग से छूट मिल जाती है.” वहीं ग्रुप कैप्टन के ओहदे से रिटायर हुए एक पायलट का कहना है कि इस उम्र तक पहुँचने पर परिवार की परिस्थितियाँ और आवश्यकताएं बदल जाती हैं जो वायु सेना में रहते हुए पूरा कर पाना लगभग नामुमकिन सा होता है ” बच्चों को उच्च शिक्षा में जाना है हमारी पोस्टिंग कहीं पूर्वोतर में है या तबादला हो जाता है तो क्या किया जाए? यही नहीं तबादले कई बार इतना अचानक होता है कि परिवार के हिसाब से प्लान या संतुलन ही नही बना पाते. कामकाजी दम्पति के लिए तो ये और चुनौतीपूर्ण होता है’ , ये कहना था एक अन्य अधिकारी का जिन्होंने दो साल पहले रिटायरमेंट लिया है.
इन हालात से बखूबी वाकिफ भारतीय वायुसेना नेतृत्व और प्रबन्धन ने कुछ नये सिरे से सोच विचार शुरू किया है लेकिन सबसे बड़ी समस्या तो यही है कि ग्रुप कैप्टन के बाद तरक्की के लिए वैकेंसी उतनी नहीं हैं कहने को तो ये औसत एक पर दो का है लेकिन असल हालात में एक पद के लिए तीन से चार तक पात्र अधिकारी होने लगे हैं. इससे भी बदतर हालात भारतीय पुलिस सेवा के विभिन्न कैडर में भी हुए थे लेकिन वहां दूसरा तरीका अमल में लाया गया जिसमें कुछ पोस्ट को अपग्रेड करना, वेतन में बराबरी आदि लाना शामिल है. अब सेना में भी कुछ ऐसे नुस्खे खोजने की कवायद पर चर्चा चलनी तो शुरू हुई है जिससे मानव संसाधन का प्रबन्धन बेहतर किया जा सके जो पायलटों की संख्या बल और उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के बीच संतुलन ला सके. जैसे ग्रुप कैप्टन से एयर कोमोडोर बनने में 13 साल के फासले को कम करके 10 साल तक लाना. समयपूर्व सेवा मुक्ति के आवेदनों के प्रति अपनाये गये उदार रवैये को बदलना और इनकी समीक्षा में कड़ा रुख करना.
इन सबके उलट एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना था कि सेना की सेवा में इन तमाम तरह की मुश्किलों का सामना करना होता है, वो चाहे सैनिक हो या उसके परिवार के लोग. इसीलिए ये एक देश सेवा के विशेष कृत्य की श्रेणी में आता है जो सैन्य समुदाय को उसके बलिदान के लिए समाज में विशेष स्थान दिलाता है. सेना में आने वाले तमाम लोगों को इन हालात का ज़्यादातर पता होता है या होना चाहिए. वैसे भी उनकी इन तकलीफों की वजह से ही उन्हें कुछ ऐसे विशेष लाभ भी दिए जाते हैं जो अन्य सेवाओं में नही होते या बेहद कम होते हैं.