मेक इन इण्डिया की अवधारणा बेशक अभी हाल के वर्षों में दी गई और इसे एक मिशन का रूप दिया जा रहा है लेकिन भारतीय नौसेना तो इस सोच के साथ शुरू से ही काम कर रही है. 60 के दशक की शुरुआत में ही भारतीय नौसेना ने पहला युद्धपोत आईएनएस विजय बना डाला था. युद्धपोत बनाने और उससे जुड़े कई पहलुओं का दिलचस्प आकलन भारतीय नौसेना के प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने किया. मौका था नई दिल्ली में फिक्की के एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार पर सम्बोधन. ‘पोत निर्माण के जरिए राष्ट्र निर्माण’ विषय पर आयोजित इस अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में नौसेना के वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद थे. एडमिरल करमबीर सिंह द्वारा दिलचस्प मिसालों और व्याख्या के साथ की दी गई जानकारी काफी सूचनाप्रद और सामयिक थी.
सेमिनार में एडमिरल करमबीर सिंह के दिये गये भाषण के मुख्य अंश इस प्रकार हैं :
एक बेहद सामरिक विषय ‘पोत निर्माण के जरिए राष्ट्र निर्माण’विषय पर आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए मैं सच्चे मायनों में सम्मानित महसूस कर रहा हूं. मेरा सौभाग्य है कि इस हॉल की चारदीवारी के भीतर आज मुझे यहां एकत्र समुद्रतटीय विषयों से जुड़े अनेक विशेषज्ञों के साथ बातचीत करने का अवसर मिला. मैं भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंडल परिसंघ, हमारे नॉलेज पार्टनर नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन, समुद्री समुदाय के कुछ जाने-माने दर्शक, उद्योग, शिक्षाविद और सरकारी संगठनों के साथ ही इस सेमिनार में भाग लेने वाले सभी व्यक्तियों को इस आयोजन के लिए धन्यवाद देता हूं.
सरकार की 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर तक ले जाने की योजना है. मैं समझता हूं कि पोत निर्माण एक ऐसा क्षेत्र है, जो महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है . मुझे यकीन है कि आज अनेक वक्ता पोत निर्माण, खासतौर से भारत में व्यावसायिक पोत निर्माण को प्रोत्साहन देने के बारे में विचार-विमर्श करेंगे इसलिए मैं भारतीय नौसैनिक पोत निर्माण की पहलों और राष्ट्र निर्माण से उसके संबंध के बारे में बातचीत करूंगा.
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि भारतीय नौसेना पूरी तरह से देश में निर्मित पोत निर्माण को प्रोत्साहन दे रही है और मेक-इन-इंडिया राष्ट्रीय मिशन बन गया है. भारतीय नौसेना ने देश में पोत निर्माण की दिशा में रचनात्मक कदम उठाए हैं और इसके लिए उसने 1964 में अपने यहां केन्द्रीय डिजाइन कार्यालय का गठन किया. नौसेना अब तक 19 विभिन्न वर्गों के 90 से अधिक युद्धपोतों को तैयार कर चुकी है. 1961 में जीआरएसई द्वारा पहले पोत आईएनएस विजय के निर्माण के बाद से भारतीय शिपयार्डों में 130 से अधिक प्लेटफॉर्म बनाए जा चुके हैं. यह नौसेना और उद्योग के बीच सामन्जस्य के साथ-साथ आत्मनिर्भरता की ओर हमारी प्रतिबद्धता के गवाह हैं.
इसके बावजूद भी, हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि ‘बायर्स नेवी’ से ‘बिल्डर्स नेवी’ तक की यह यात्रा बहुत कठिन रही है. आज नौसेना की ‘फ्लोट’,‘मूव’और ‘फाइट’श्रेणियों के जहाज-निर्माण और उपकरणों के मामले में सम्मानजनक भागीदारी है. हम भविष्य में आने वाली चुनौतियों से पूरी तरह से परिचित हैं. प्रत्येक रुपये का विवेकपूर्ण व्यय करना राजकोषीय वातावरण का तकाजा है. जहाज निर्माण में समय और लागत अधिक होने से बजट प्रबंधन में चुनौतियां पैदा होती हैं. इसके अलावा, जहाज-निर्माण, एक अधिक पूंजी वाला क्रियाकलाप है. नौसेना के जहाज-निर्माण के लिए बजटीय आवंटन को कुछ लोगों द्वारा अर्थव्यवस्था को खोखला करने वाला माना जाता है.
फिर भी, मैं तर्क दूंगा कि नौसेना के जहाज-निर्माण में निवेश करना राजकोषीय खोखलेपन से भिन्न है. मुझे तीन कारणों का उल्लेख करने में कुछ मिनट लगेंगे, यह समझाने के लिए कि कभी-कभी अथवा ‘ड्रेन’ या यहां तक कि ‘संक कॉस्ट’ के रूप में माना जाता है, वास्तव में ऐसा नहीं है और नौसेना जहाज-निर्माण वास्तव में आर्थिक विकास और राष्ट्र निर्माण में सुंदर योगदान करता है.
पहला कारण ‘फ्लो बैक’ प्रभाव है-
परंपरागत अनुमानों के अनुसार, नौसेना पर खर्च किए गए प्रत्येक रुपये का बहुत बड़ा अनुपात भारतीय अर्थव्यवस्था में वापस व्यापार में लगाया जाता है. शुरुआत में, नौसेना के बजट का 60 प्रतिशत से अधिक पूंजीगत व्यय के लिए समर्पित है. इस पूंजी बजट का लगभग 70% स्वदेशी सोर्सिंग पर खर्च किया गया है, जो पिछले पांच वर्षों में लगभग 66,000 करोड़ रुपये है. 2014 में ‘मेक इन इंडिया’के शुभारंभ के बाद से, लागत के आधार पर 80% एओएन भारतीय विक्रेताओं को प्रदान किए गए हैं. आज तक विभिन्न शिपयार्डों पर कुल 51 जहाजों और पनडुब्बियों में से 49 का निर्माण अपने देश में किया जा रहा है. यह अर्थव्यवस्था में नौसैनिक जहाज-निर्माण के ‘फ्लो बैक’के स्तरों पर प्रकाश डालता है.
प्रत्येक जहाज निर्माण परियोजना प्रत्येक प्लेटफॉर्म का समर्थन करने के लिए ओईएम, सहायक उद्योग और एमएसएमई को मिलाकर साजोसामान, पुर्जों और प्रोजेक्ट सपोर्ट इको-सिस्टम का निर्माण करती है. उदाहरण के लिए, जीआरएसई के पास लगभग 2100 फर्में हैं, जो नौसेना के जहाज निर्माण परियोजनाओं के लिए पंजीकृत हैं. लगभग तीन दशक के प्लेटफॉर्म या जहाज के जीवन के बाद जहाज की मरम्मत और रखरखाव की आवश्यकताएं, घरेलू उद्योग में काफी निवेश का कारण बनती हैं. मूल्य के हिसाब से जहाज की मरम्मत का लगभग 90% भारतीय विक्रेताओं, ज्यादातर एमएसएमई द्वारा किया जाता है, जिसका अर्थ है कि कैपिटल बजट के अलावा, नौसेना के राजस्व का एक उच्च अनुपात भी अर्थव्यवस्था में आ जाता है.
नौसेना जहाज-निर्माण का दूसरा योगदान रोजगार सृजन और कौशल विकास के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में है, जो हमारे देश की वर्तमान वास्तविक चुनौतियों में शामिल हैं-
एक उद्धरण है, जो कहता है कि “एक आदमी को मछली दो और उसे एक दिन के लिए खिलाओ; उसे मछली पकड़ना सिखाएं और जीवन भर उसे खिलाएं. ” जहाज निर्माण एक कौशल आधारित क्रियाकलाप है . प्रत्येक जहाज निर्माण परियोजना में जनशक्ति का काफी निवेश शामिल है, जिसमें रोजगार और कर्मचारियों की संख्या कम है. जैसे-जैसे प्लेटफ़ॉर्म अधिक जटिल होते जाते हैं, कौशल स्तर भी आनुपातिक रूप से उन्नत होता जाता है.
नौसेना के जहाज निर्माण की परियोजनाओं ने काफी निर्माण किया है, पर उसे रोजगार और कौशल की दिशा में योगदान को लेकर अक्सर कम करके आंका जाता है. अध्ययनों से पता चलता है कि औद्योगिक कारोबार के लिए दिए गए श्रम का उपयोग जहाज निर्माण उद्योग में सबसे अधिक है. युद्धपोत निर्माण की जटिलता का तात्पर्य बहुत अधिक जनशक्ति अवशोषण के साथ-साथ वाणिज्यिक निर्माण से है. उदाहरण के लिए, लगभग 30,000 टन के एक वाणिज्यिक जहाज के निर्माण के लिए कार्यरत जनशक्ति लगभग 6,000 टन के युद्धपोत निर्माण में कार्यरत जनशक्ति से कम है . इसके अलावा, युद्धपोत निर्माण के लिए सफेदपोश श्रमिकों के बहुत अधिक अनुपात की आवश्यकता होती है, जिसमें जटिलताओं को देखते हुए, अन्य श्रमिक शामिल होते हैं. इस प्रकार, रोजगार के अवसरों को अधिक व्यापक शैक्षिक पृष्ठभूमि, विशेष रूप से हमारे देश के शिक्षित युवाओं तक बढ़ाया जाता है.
इसके अलावा, आंकड़े बताते हैं कि शिपयार्ड में कार्यरत एक कर्मचारी का लगभग 6.4 गुणा प्रभाव सहायक उद्योगों पर पड़ता है. उदाहरण के लिए, परियोजना 17ए फ्रिगेट में प्रति वर्ष लगभग 4,500 श्रमिकों के एक कार्यबल को रोजगार मिलने की संभावना है, लेकिन प्रति वर्ष सहायक उद्योगों से लगभग 28,000 कर्मचारी जनशक्ति के रूप में आउटसोर्स किए गए .
व्यक्तिगत कौशल के अलावा, नौसैनिक परियोजनाएं शिपयार्ड के भीतर नई क्षमताओं के निर्माण की ओर ले जाती हैं. ये अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण अनपेक्षित लाभ है. उदाहरण के लिए, कोच्चि शिपयार्ड में भारत की सबसे बड़ी सूखी गोदी निर्माणाधीन है. ये विमान वाहक पोतों के अलावा विशालकाय वाणिज्यिक पोतों की सर्विसिंग में सक्षम होगा, जो परियोजना के लिए मूल गति उत्पादकों में से एक था. इसी प्रकार से आईएसी-1 के लिए स्वदेशी इस्पात की आवश्यकता के कारण डीएमआरएल, हैदराबाद द्वारा स्वदेशी डीएमआर 249ए इस्पात विकसित हुआ है, जिसे अन्य नौसैनिक परियोजनाओं में भी काम में लाया गया है. भारतीय इस्पात प्राधिकरण ने करीब 50,000 टन देशी इस्पात की आपूर्ति की है, जिसे आयात किया जा रहा था. संक्षेप में, पोत निर्माण अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ मूर्त और अमूर्त दोनों तरीकों से योगदान देने में सक्षम है।
नौसैनिक पोत निर्माण परियोजनाएं राष्ट्र के लिए रणनीतिक परिणामों में योगदान करती हैं –
हम सभी जानते हैं कि हमारे उद्योग द्वारा निर्मित, और नौसेना और तटरक्षकों द्वारा संचालित बहु-आयामी, अत्याधुनिक पोत, हिंद महासागर क्षेत्र और उससे आगे भारत के समुद्री हितों की रक्षा करने के लिए महत्वपूर्ण हैं. इसके अलावा नौसेना की कूटनीतिक व्यस्तताओं और क्षमता निर्माण के प्रयासों ने भी अनेक मित्र देशों को हमारे पोत निर्माण कौशल को उपयोग में लाने की अनुमति दी है . हमने पहले से ही युद्धपोतों को निर्यात करके मित्र देशों की क्षमताओं को शामिल किया है. इनमें सेशल्स, मालदीव और श्रीलंका शामिल हैं, जो उनकी समग्र सुरक्षा को बढ़ाता है. जैसे-जैसे भारत का पोत निर्माण उद्योग परिपक्व हो रहा है, विदेशी मित्र देशों के लिए रणनीतिक साझेदारी कायम करने और भारत को रक्षा पोत निर्माण के निर्यात और मरम्मत का रणनीतिक केन्द्र बनाने की काफी संभावना है.
ऐसे रणनीतिक परिणामों को प्राप्त करने के लिए स्वदेशी पोत उत्पादन और पोत मरम्मत क्षमता में राष्ट्र को एक निश्चित ‘महत्वपूर्ण पुंज’ तक पहुंचाने की आवश्यकता है . रक्षा पोत निर्माण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है . हमें इस क्षेत्रों में उपलब्ध क्षमता जैसे व्यापारिक समुद्री और तटीय शिपिंग, क्षमता बढ़ाने और वास्तविक क्षमता प्राप्त करने की आवश्यकता है.
भारतीय नौसेना स्वदेशी पोत निर्माण और क्षमता विकास पर ध्यान केंद्रित करेगी. रणनीतिक साझेदारी मॉडल को संचालित करने वाली पहली सेवा के रूप में मेक-II परियोजना के अंतर्गत हम अधिक आत्मनिर्भरता के लिए अपनी सामूहिक खोज में उद्योग की भागीदारी के लिए प्रतिबद्ध हैं.