‘हेलो और हाहो’ शीर्षक वाली ये पेंटिंग देखकर हर कोई अचानक रुक जाता था. इस पेंटिंग में सेना के विमान से पैराशूट के साथ कूदते फौजी चित्रित किये गए हैं. कम ही लोग जानते हैं कि अत्यधिक ऊँचाई से जब एयरक्राफ्ट से फौजी किसी ऑपरेशन के तहत छलांग लगाते हैं तो उसकी दो तकनीक होती हैं. एक हेलो (HALO ) और दूसरी हहो (HAHO). या यूं कहा जा सकता है कि एयरक्राफ्ट से बाहर कूदने के बाद आसमान से जमीन पर अपने टारगेट तक पहुँचने के लिए सैनिक दो तरीके इस्तेमाल करते हैं. यदि टारगेट स्पष्ट है और दुश्मन की नज़रों से बचकर वहां तक जल्दी से जल्दी पहुंचना है तब ‘हेलो’ यानि हाई एल्टिटीयूट लो ओपनिंग (high altitude low opening) जम्प लगाई जाती है. इसमें कूदने के कुछ देर बाद पैराशूट तब खोला जाता है जब ज़मीन काफी करीब होती है ताकि आसमान में सैनिक की मौजूदगी कम से कम वक्त तक दिखाई दे. या फिर तब जब विमान को ज्यादा नीचे लाना मुमकिन न हो. दूसरी स्थिति होती है जब विमान से छलांग लगाते ही एकदम पैराशूट जल्दी से खोल लिया जाता है. इसे हहो (हाई एल्टिटीयूट लो ओपनिंग – high altitude high opening ) ज़्यादातर ये तब किया जाता है जब छलांग लगाने वाले सैनिक को हालात का अंदाजा लगाने में समय चाहिए होता है और कहां उतरना है इसका फैसला लेने के लिए पर्याप्त समय की ज़रुरत होती है. सब कुछ उस ऑपरेशन विशेष की ज़रुरत के हिसाब से होता है. इन दोनों ही तकनीक के लिए पैराशूट खोले के लिए निश्चित समय और ऊंचाई तय होती है.
इसी तरह सेना की ट्रेनिंग से लेकर ऑपरेशन में किस किस तरह की तकनीक व तरीकों का इस्तेमाल होता है, उसे यहां रखी कुछ और पेंटिंग्स में भी देखा जा सकता है. सब में रंगों का पैटर्न भी एक सा है. आसमान में हों, ज़मीन पर या हों या फिर समन्दर की गहराइयां ही क्यों न हों, युद्ध में सैनिकों द्वारा अपनाए जाने वाले तौर तरीके भी कला की एक विधा में अभिव्यक्ति की प्रेरणा बन सकते हैं जो अपने आप में दिलचस्प है. ये कृतियाँ आधारित किसी एक थीम पर ज़रूर हैं लेकिन साइज़ अलग अलग हैं. उसी हिसाब से इनकी कीमत भी है. जैसे ‘हेलो और हाहो’ शीर्षक वाली पेंटिंग पर मूल्य लिखा था 70 हज़ार रूपये. हरेक पेंटिंग के कोने पर एक नाम लिखा है – अय्यर. भारतीय सेना से कर्नल के ओहदे से सेवानिवृत्त हुए नारायण अय्यर अपनी कलाकृतियों पर पहचान के लिए अपना उपनाम ‘ अय्यर’ ही लिखते हैं.
नाम व चेहरे – मोहरे से दक्षिण के दिखाई पड़ने वाले कर्नल नारायण अय्यर को चित्रकला का शौक तो बचपन से है. याद करते हैं कि दिल्ली के मॉडर्न स्कूल में होने वाले शंकर आर्ट कम्पीटीशन में भी हिस्सा लेते थे. आयल और एक्रेलिक, दोनों ही किस्मों के रंगों का इस्तेमाल करते हैं. सेना छोड़ने के बाद उन्होंने प्रोफेशनल तरीके से पेंटिंग करना शुरू किया. हालांकि सेवानिवृत्ति लेने के बाद 2005 में उन्होंने अपनी एक कंपनी भी बनाई जो कंसल्टेंसी और सुरक्षा करती थी. कुछ सार्वजनिक उपक्रमों की सुरक्षा का भी काम उनके पास था. तकरीबन 1500 कर्मी थे इस कंपनी में लेकिन ये काम उनको ज्यादा समय तक रास नहीं आया. मूल रूप से केरल के रहने नारायण अय्यर के पिता के एस सुब्रमण्यम भी सेना में थे लिहाज़ा भारत में अलग अलग जगह जाना उनके परिवार के लिए जीवन शैली का हिस्सा है. पंजाब के नंगल में और चंडीगढ़ में पढ़ाई की है इसलिए मित्रों-परिचितों का उनका दायरा भी यहां खासा है लिहाज़ा यहीं बसने का फैसला ले लिया उन्होंने.
नारायण अय्यर भारतीय सेना में 1981 में भर्ती हुए. नौसेना के साथ भी लम्बे समय तक जुड़े रहे. इसी दौरान सेना के गोपनीय मिशन ‘ K -15 पर भी काम किया था. हालांकि 2002 में इस मिशन की जानकारी डी क्लासिफाई करके सार्वजनिक कर दी गई थी. इसी मिशन के तहत सागरिका मिसाइल तैयार की गई थी जो समन्दर की गहराइयों में मौजूद पनडुब्बी से दागी जा सकती है. परमाणु हमले के जवाब में तैयारी के तहत इस मिशन को अंजाम दिया गया था. यूं तो कर्नल नारायण अय्यर तरह तरह की पेंटिंग्स बनाते हैं लेकिन ये थीम खास तौर से उन्होंने चंडीगढ़ में आयोजित मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल (military literature festival) में लगाई गई कला प्रदर्शनी के लिए चुना था. वैसे भी विषय उनके बरसों तक किये काम से जुडा है. उनकी ये पेंटिंग कला के साथ साथ अच्छी जानकारियां देने का जरिया तो हैं ही, बेहद मुश्किल हालात में काम करते सैनिकों के जज्बे को भो दर्शाती हैं. ये पहला मौका है जब कर्नल अय्यर सुखना झील (sukhna lake) के मुहाने होने वाले सालाना मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल में एक पेंटर के तौर पर हिस्सा लेने के लिए आए.