भारत में बीते सात वर्षों में रक्षा निर्माण के लिये 350 से भी ज़्यादा नये औद्योगिक लाइसेंस जारी किये जा चुके हैं. इससे पहले के सालों के आंकड़ों के हिसाब से ये काफी ज्यादा है. इन आंकड़ों की जानकारी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को एक वेबिनार को संबोधित करते हुए साझा की. उन्होंने बताया कि 2001 से 2014 के 14 वर्षों में सिर्फ 200 लाइसेंस जारी हुये थे. हालांकि उनका ये भी कहना था कि टेंडर हासिल करने के लिए रक्षा निर्माताओं के बीच कम्पीटीशन आखिरकार पैसा कमाने और भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को बढ़ाती है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बजट में की गई घोषणाओं के संदर्भ में ‘आत्मनिर्भरता इन डिफेंस – कॉल टू ऐक्शन’ (रक्षा में आत्मनिर्भरता – कार्यवाही का आह्वान) विषयक बजट-उपरान्त वेबिनार को सम्बोधित कर रहे थे. इस वेबिनार का आयोजन रक्षा मंत्रालय ने किया.
पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि वेबिनार के विषय ‘रक्षा में आत्मनिर्भरता – कार्यवाही का आह्वान’ से राष्ट्र की भावना का पता चलता है. हाल के वर्षों में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को मजबूती देने का जो प्रयास किया जा रहा है, वह इस वर्ष के बजट में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. उन्होंने ज़िक्र किया, गुलामी के कालखंड में भी और आजादी के फ़ौरन बाद भी भारत के रक्षा निर्माण की ताकत बहुत ज्यादा थी. दूसरे विश्वयुद्ध (world war II ) में भारत में बने हथियारों ने बड़ी भूमिका निभाई थी. श्री मोदी ने कहा कि यद्यपि बाद के वर्षों में भारत की इस ताकत में कमी आने लगी, लेकिन इसके बावजूद उसकी क्षमता में कोई कमी नहीं आई. ये क्षमता न पहले कम हुई और न ही अब.
प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षा प्रणालियों में अनोखेपन और विशिष्टता के महत्व पर जोर देते हुये कहा, “अनोखापन और चौंकाने वाले तत्व तभी आ सकते हैं, जब उपकरण को अपने अपने देश में विकसित किया जाये.” प्रधानमंत्री ने कहा कि इस साल के बजट में देश के भीतर ही अनुसंधान, डिजाइन और विकास से लेकर निर्माण तक का एक जीवन्त इको-सिस्टम विकसित करने का ब्लूप्रिंट है. उन्होंने कहा कि रक्षा बजट का तकरीबन 70 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ स्वदेशी उद्योग के लिये रखा गया है.
रक्षा मंत्रालय ने अब तक 200 से ज्यादा रक्षा प्लेटफॉर्मों और उपकरणों की सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियां जारी की हैं. इस ऐलान के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि स्वदेशी खरीद के लिये 54 हजार करोड़ रुपये की संविदाओं पर दस्तखत किये जा चुके हैं और 4.5 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा धनराशि की उपकरण खरीद प्रक्रिया विभिन्न चरणों में है. इसके साथ ही तीसरी सूची के जल्द आने की संभावना है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर अफ़सोस ज़ाहिर किया कि हथियार खरीदने की प्रक्रिया इतनी लंबी होती है कि उन्हें शामिल करते-करते इतना लंबा समय निकल जाता है कि वे हथियार पुराने ढंग के हो जाते हैं. उन्होंने जोर देते हुये कहा, “इसका भी समाधान ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ में ही है.” प्रधानमंत्री ने सशस्त्र बलों की इस बात के लिए तारीफ़ की कि वह निर्णय लेते समय आत्मनिर्भरता की अहमियत का ख्याल रखते हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि हथियारों और उपकरणों के मामलों में जवानों के गौरव और उनकी भावना को ध्यान में रखने की जरूरत है. यह तभी मुमकिन होगा, जब हम इन क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनेंगे. प्रधानमंत्री ने कहा कि साइबर सुरक्षा अब सिर्फ डिजिटल दुनिया तक सीमित नहीं, बल्कि वह राष्ट्र की सुरक्षा का विषय बन चुकी है. उन्होंने कहा, “अपनी अदम्य आईटी शक्ति को हम अपने रक्षा क्षेत्र में जितना ज्यादा इस्तेमाल करेंगे, उतनी ही सुरक्षा में हम आश्वस्त होंगे।”
संविदाओं के लिये रक्षा निर्माताओं के बीच की प्रतिस्पर्धा का उल्लेख करते हुये प्रधानमंत्री ने कहा कि यह प्रतिस्पर्धा अंततोगत्वा धन अर्जित करने और भ्रष्टाचार की तरफ ले जाती है. हथियारों की गुणवत्ता और उपादेयता के बारे में बहुत भ्रम पैदा किया जाता रहा है. उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत अभियान ही इस समस्या का भी समाधान है. प्रधानमंत्री ने आयुध फैक्ट्रियों की सराहना करते हुये कहा कि वे प्रगति और दृढ़ता की मिसाल हैं. उन्होंने इस बात पर खुशी ज़ाहिर की कि जिन सात नये रक्षा उपक्रमों को पिछले वर्ष चालू किया गया था, वे तेजी से अपना व्यापार बढ़ा रहे हैं और नये बाजारों तक पहुंच रहे हैं. आज 75 से ज्यादा देशों को मेक इन इंडिया रक्षा उपकरण और सेवा प्रदान की जा रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने कहा कि मेक इन इंडिया को प्रोत्साहन के कारण सात सालों में रक्षा निर्माण के लिये 350 से भी अधिक नये औद्योगिक लाइसेंस जारी किये गये हैं. जबकि 2001 से 2014 के 14 वर्षों में सिर्फ 200 लाइसेंस जारी हुए थे. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि निजी क्षेत्र को भी रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन तथा रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों की तरह काम करना चाहिये. इसी को ध्यान में रखते हुए उद्योग, स्टार्टअप और अकादमिक जगत के लिये रक्षा अनुसंधान एवं विकास का 25 प्रतिशत हिस्सा आवंटित किया गया है. उन्होंने कहा, “इस पहल से निजी क्षेत्र की भूमिका विक्रेता या आपूर्तिकर्ता से बढ़कर साझीदार की हो जायेगी.”
श्री मोदी ने कहा कि परीक्षण, जांच और प्रमाणीकरण की पारदर्शी, समयबद्ध, तर्कसंगत और निष्पक्ष प्रणाली जीवन्त रक्षा उद्योग के विकास के लिये जरूरी है. इस सम्बंध में एक स्वतंत्र प्रणाली का होना समस्याओं के समाधान के लिये उपयोगी साबित हो सकता है.