दिसम्बर का महीना और उस पर ताज़ा बरसात के साथ पहाड़ों की रानी शिमला से आती बर्फीली सर्द हवाओं के बीच सिटी ब्यूटीफुल चण्डीगढ़ में सुखना झील के किनारे लेक क्लब में फ़ौजी मेले में शायद ऐसा पहली बार हुआ होगा. भारतीय सेना में जनरल बन गया एक अफसर निर्वाण की बात करने वाला था. निर्वाण भी पहियों पर और वो भी साइकिल के पहिये. ये चर्चा दोपहर 12 बजकर 15 मिनट पर उसी क्लेरियन कॉल थियेटर में शुरू होनी थी जिसमें तीन दिन से आमतौर पर सैन्य इतिहास, फ़ौजी जांबाज़ी और जोश, सैन्य ताकत के विकास की सच्ची कहानियाँ देखने- सुनने को मिल रही थीं. शूरवीरता और युद्ध के इतिहास के उन अनुभवों से लोगों को परिचय कराने के लिए होने वाले शो के पोस्टरों और स्टेंडिज़ के बीच पेशेवर साइक्लिस्ट के आउटफिट में हेलमेट लगाये इस अफसर का अपनी साइकिल के साथ वाला फोटो बरबस ही ध्यान खींच लेता था. जितना हटकर ये फोटो वाला बोर्ड था उससे भी इतर इसका शीर्षक ‘निर्वाण ऑन व्हील्स’.
मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल में यहाँ समापन समारोह के लिए आये लोगों में दिलचस्पी और जिज्ञासा तो होनी ही थी. सो तकरीबन वैसे ही भाव लिए लोग समय से 10 मिनट पहले ही जमा होने शुरू हो गये थे. भीतर काले कपड़े से घुप्प अँधेरे वाले सिनेमाई थियेटर हाल में नौसेना के एक कोमोडोर 1971 के युद्ध में भारतीय नौसैनिक ऑपरेशन और उसकी अहमियत बयाँ करता शो दिखा रहे थे. कोमोडोर एस बी कसनुर का ये ऑडियो वीडियो शो खत्म होते ही क्लेरियन कॉल थियेटर फिर से भर गया. अन्य फौजी जनरलों से दुबले और थोड़ा लम्बे, थ्री पीस सूट टाई में जब ये जनरल सबके सामने आये तो और जब उनका परिचय कराया गया तो लोग इस तरह हैरान थे कि तालियाँ बजाने के अलावा उनके पास प्रतिक्रिया करने का और कोई तरीका था ही नहीं. और ऐसा होता भी क्यूँ ना! उनके सामने एक ऐसा शख्स खड़ा था जिसका काम और जज़्बा अच्छे अच्छे मजबूत इरादे वाले जांबाजों को बौना कर डाले. और शायद ऐसी ही शख्सियतें और उनके कारनामे हैं जिनकी वजह से अंग्रेजी का जुमला बना है-ऐज इस जस्ट ए नम्बर.
फ्रांस में पांच महीने पहले ही इन्होंने दुनिया के ऐसे पहले कार्यरत सैनिक जनरल होने का रिकार्ड बनाया जिसने 90 घंटे 35 मिनट में 1200 किलोमीटर साइकिल चलाकर विश्व में साइक्लिंग का सबसे कठिन मुकाबला ‘पेरिस-ब्रेस्ट-पेरिस सर्किट’ पूरा किया और वो भी 56 साल की उम्र में. इनका परिचय है लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी. बात सिर्फ इतनी ही नहीं है लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने सिर्फ 6 साल पहले यानि 50 की उम्र में साइक्लिंग की शुरुआत की. साइक्लिंग की तमाम बारीकियों से अच्छे से वाकिफ जिंदादिल इंसान अनिल पुरी का प्रेजेंटेशन सच में ऐसा था कि किसी भी मायूस व्यक्ति के जहन में अपने जीवन और शरीर के प्रति लगाव भर दे.
साइक्लिंग से जिस्मानी सेहत में होने वाले इजाफे के साथ साथ इंसान की मनोदशा में आने वाले परिवर्तन को बेहद वैज्ञानिक और प्रभावी तरीके से लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पूरी ने प्रेजेंटेशन पेश दिया जिसमें आंकड़े, तस्वीरें और अलग अलग तरह के वीडियो थे. दिल्ली की सड़कों से लेकर पेरिस के मुकाबले तक के वीडियो और अनुभव. इस प्रेजेंटेशन में उन्होंने शरीर में होने वाली उन रासायनिक प्रक्रियाओं का हवाला दिया जो ऐसे खेल और साइक्लिंग जैसे व्यायाम के दौरान होते हैं जिन्हें एंड्यूरेंस स्पोर्ट्स (Endurance Sports) कहा जाता है. वो हालात जब कोई शख्स अपनी ही तय किये टारगेट को हासिल करता है और फिर उससे भी बड़ी चुनौती खुद ही खड़ी करके उससे पार पाता है. ऐसी हर इस कामयाबी उसकी क्षमता की सीमा को बढ़ाती है और साथ ही ख़ुशी भी देती है. ऐसा एंडोर्फिन्स (Endorphins) नामक रसायन/हार्मोन्स की मौजूदगी या उसमें वृद्धि से होता है जो दर्द या तकलीफ के अहसास को कम करता है.
रोज़ाना सुबह दो घंटे की साइक्लिंग के बाद दिनचर्या शुरू करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी दिल्ली में सेना मुख्यालय में तैनात हैं. साइक्लिंग को लेकर उनका नज़रिया एकदम अलग है. वो तो ये तक मानते हैं कि साइक्लिंग हमारी जीवन शैली को बदलने का माद्दा रखती है. ये चुनौतियों का अकेले सामना करने की ताकत पैदा करती है. पेरिस मुकाबले में अपने अनुभवों को जब लेफ्टिनेंट पुरी साझा कर रहे थे तो लोग उनकी बातें सुनकर और उस वक्त की उनकी तस्वीरें देखकर अवाक थे. खासतौर पर तब जब उन्होंने एक तस्वीर दिखाई जिसमें वो एक एटीएम के अन्दर फर्श पर ऐसे पड़े थे जैसे कोई बेहोश या मुर्दा शख्स पड़ा हो और उसे किसी ने बड़ी चादर जैसे साइज़ के चमकीले कागज़ से ढक दिया हो.
जनरल पुरी ने बताया कि मुकाबले के दौरान लगातार साइकिल चलाने से शरीर इतना जवाब दे जाता है कि अचानक कहीं भी नींद आ जाती है. सो, जहां जगह मिले साइक्लिस्ट वहीं सो जाते हैं. सड़क किनारे या खुले आसमान के नीचे और रूट भी ऐसी ऊंचाई पर जिसके आगे एवरेस्ट की ऊंचाई भी कम है. 31 हज़ार फुट की ऊंचाई वाले इस रूट में तापमान में ग़ज़ब की असमानता होती है-एक तरफ तीन डिग्री तो दूसरी तरफ 35 डिग्री. ऐसे में खाने पीने से लेकर साइकिल की मरम्मत और ज़रूरी दवाओं तक का इंतज़ाम भी साथ रखना पड़ता है.
लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने बताया कि सर्दी से बचने के लिए जो कागज़ी चादर उन्होंने ओढ़ी थी वो दरअसल थर्मल ब्लेंकेट था जो फोल्ड करने के बाद इतना छोटा हो जाता है कि पहने हुए कपड़ों की जेब तक में आसानी से आ सकता है. लेफ्टिनेंट जनरल पुरी का शो देखने आये स्कूली बच्चों की जिज्ञासा को शांत करने के लिए के, बाद में खुद लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने वो थर्मल कम्बल उनको थमाया. ये ठीक वैसा ही चमकीला और उतना ही पतला था जो आमतौर पर गिफ्ट या टॉफी – चाकलेट रैप (Wrap) करने में इस्तेमाल होता है.