लदाख का शेर कहे जाने वाले कर्नल चेवांग रिनचेन उन 6 भारतीय सैनिकों में से एक हैं जिनको बहादुरी के लिए महावीर चक्र से दो बार सम्मानित किया गया. यही नहीं वो एक ऐसे सैनिक भी हैं जिसने 1947 में भारत को मिली आज़ादी से लेकर अब 1971 तक हरेक युद्ध में न सिर्फ हिस्सा लिया बल्कि सभी में अपना युद्ध कौशल दिखाया. उनकी वीरता और साहस को हर बार सेना में मान्यता मिली और हरेक युद्ध में दिखाए गए जोहर के लिए उनको सम्मान भी मिला.
भारतीय सेना के इतिहास में उनका नाम बेशक सुनहरे अक्षरों में लिखा है लेकिन आम भारतीय जनमानस में अब भी उनके जैसे कई शूरवीरों की जीवन गाथा के असरदार तरीके से नहीं पहुंच पाई है. लदाख की नुब्रा घाटी के सुमुर गांव में 11 नवंबर 1931 को पैदा हुआ ये वो सुरमा था जिसे सिर्फ 17 साल की उम्र में दिखाई गई शूरवीरता के लिए दूसरा सर्वोच्च शौर्य पुरस्कार महावीर चक्र प्रदान किया गया . लेह और परतापुर क्षेत्र की रक्षा करने के लिए उनके अदम्यय साहस के कारण उन्हेंर ‘लद्दाख के शेर’ के नाम से जाना जाता है.
कर्नल चेवांग रिनचेन के बारे में जनता को हाल के वर्षों में तब थोड़ी अधिक जानकारी मिल सकी थी जब अक्टूबर 2019 में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने लदाख में कर्नल चेवांग रिनचेन सेतु का उद्घाटन किया था. कर्नल चेवांग रिनचेन के जीवन के बहुत से पहलुओं और उनके सैन्य जीवन के बारे में उनकी बेटी डॉ फुंसोग अंग्मो ने किताब लिखी है जिसके सह लेखक कर्नल (सेवानिवृत्त) अजय के रैना हैं. कर्नल रैना सैन्य इतिहासकार हैं. किताब का शीर्षक है ‘लायन ऑफ़ लदाख : लाइफ एंड टाइम्स ऑफ़ कर्नल चेवांग रिनचेन’ ( lion of ladakh : life & times of col chhewang rinchen ).
कर्नल चेवांग रिनचेन सेतु
ये पुल सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और श्योक नदी पर सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने बनाया है. कर्नल चेवांग रिनचेन सेतु पूर्वी लद्दाख में दुरबुक और दौलत बेग ओल्डी को जोड़ता है.
काराकोरम और चांग चेनमो पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित कर्नल चेवांग रिनचेन सेतु 400 मीटर लंबा पुल है, जिसे माइक्रो पाइलिंग टेक्नोतलॉजी का इस्तेेमाल करते हुए करीब 15,000 फुट की ऊंचाई पर बनाया गया है. इसका निर्माण 15 महीने के रिकॉर्ड समय में पूरा हुआ था.