मैं इस कहानी को बार बार बताने से नहीं थकूंगा
ऐसा में हरेक 21 फरवरी को करूंगा
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‘सर मैं अपने लड़कों (जवानों) के साथ रहना चाहता हूँ’ ये बात श्रीनगर के बेस अस्पताल में भर्ती 24 साल का वह अफसर कह रहा था जिसने आतंकवादियों से मुठभेड़ के बाद अपने दस्ते के साथ लौटते हुये, पथराव करती भीड़ का सामना किया था और इसमें उसका जबड़ा टूट गया था. ये अधिकारी बीमारी की छुट्टी लेकर घर जाने से इनकार कर रहा था. गुमसुम सा मैं 24 साल के उस लड़के को देख रहा था जो अपने उन लड़कों (जवानों) के पास लौटना चाह रहा था जोकि स्पेशल फोर्सेस के ट्रेंड सैनिक थे, सभी उससे उम्र में बड़े और ज़्यादा तजुर्बेकार. वे मेरे छोटे बेटे से भी छोटा था, मैंने आवेश में आकर प्रोटोकोल की भी परवाह नहीं की और उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहा, ‘ हैप्पी हंटिंग बेटा’
एक हफ्ते के भीतर, मैंने उसके पार्थिव शरीर को सलाम किया. मैं अभिभूत था.
ये एक बड़ा ऑपरेशन था. कश्मीर में चिनार कोर के जीओसी के तौर पर मेरे कार्यकाल के दौरान इस तरह का सबसे देर तक चला घटनाक्रम जिसमें आतंकवादियों ने कश्मीर के बाहरी पम्पोर में छह मंजिला इमारत पर कब्ज़ा कर लिया था. इन बहादुरों ने सभी 60 कश्मीरी औरतों और मर्दों को सुरक्षित निकाल लिया, लेकिन इसके लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी …अपनी जान देकर.
कैप्टन पवन कुमार, कैप्टन तुषार महाजन और लांस नायक, सभी कमांडो शहीद हो गये.
मैंने ये कहानी पवन की सुनाई जिससे कि मैं मिला लेकिन बाकी भी कम बहादुर नहीं थे. असल में, ऑपरेशंस में हमेशा कई गुमनाम हीरो होते हैं जो बहादुरी दिखाते हैं लेकिन सबको तो शूरवीरता पदक नहीं मिल सकता.
अब मैं आपको एक बड़े हीरो से मिलाकर हैरान करता हूँ. कैप्टन पवन के अंतिम संस्कार के समय उनके पिता राजबीर ने जो कहा, इसे एएनआई ने ट्वीट किया. ‘मेरी एक सन्तान थी. मैंने सेना को दी. मुझसे ज्यादा गर्व किस पिता को होगा’
हमारा युवा नेतृत्व हमारा गर्व है.
हमेशा !
लेकिन पिता भी उनसे कम नहीं.
सलाम !
आदर !
अभिभूत !
जय हिन्द
(भारतीय सैनिकों की वीरता से ओतप्रोत से संस्मरण लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सतीश दुआ की फेसबुक वाल से लिया गया है.)