भारतीय वायु सेना के पूर्व एयर वाइस मार्शल (एवीएम – AVM) चन्दन सिंह राठौर का निधन हो गया है. महावीर चक्र और वीर चक्र से सुशोभित चन्दन सिंह राठौर अग्रिम मोर्चे पर जांबाजी और हमेशा सैनिकों के कुशल नेतृत्व के प्रतीक के तौर पर देखे जाते थे. एवीएम राठौर के देहावसान पर रक्षा मंत्री राज नाथ सिंह ने श्रद्धांजलि अर्पित की. साथियों और वायु सेना के अधिकारियों, परिजनों ने उन्हें अश्रुपूर्ण विदाई दी.
1962 और 1971 के साहसिक एक्शन के लिए हमेशा याद किये जाने वाले वायु सैनिक चन्दन सिंह राठौर ने भारत की आजादी से साल भर पहले ही यानि 1946 राजस्थान स्टेट फोर्सेस को छोड़कर भारतीय वायु सेना की सेवा को चुना था. चन्दन सिंह राठौर फ़्लाइंग ऑफिसर के तौर पर वायु सेना का हिस्सा बने और 1949 में सर्विस पायलट बने. 1957 में स्क्वाड्रन लीडर के पद पर तरक्की पाई. अति ऊंचाई वाले क्षेत्रों में युवा पायलटों को प्रशिक्षण की तकनीक ईजाद करने वाले एयर वाइस मार्शल चन्दन सिंह राठौर खतरनाक पर्वतीय इलाके में जो रूट बनाया उससे पायलटों की सुरक्षा में इजाफा हुआ. वह उत्कृष्ट कोटि के ट्रांसपोर्ट पायलट थे.
गोलीबारी में उतारा विमान :
वो 20 अक्टूबर 1962 की बात है जब चन्दन सिंह राठौर स्क्वाड्रन लीडर थे और उन्हें लदाख के चिप चाप इलाके में सप्लाई ड्रॉप करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. ड्रापिंग ज़ोन में पहुँचने पर उन्होंने वहां देखा कि सैनिक चौकियां चीनी सेना की तरफ से की जाने वाली जबरदस्त फायरिंग की चपेट में हैं. इसके बावजूद उन्होंने छावनी क्षेत्र में सफलता पूर्ण सप्लाई ड्रॉप की जबकि इस दौरान उनके विमान को 19 बार दुश्मन की गोली लगी. उन्होंने बड़े साहस के साथ अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा से भी समझौता करते हुए इस मिशन को अंजाम दिया था. इसके लिए उन्हें वीर चक्र से नवाजा गया जो उन्हें 26 जनवरी 1963 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रदान किया गया.
1971 में जांबाज़ी :
भारतीय वायु सेना में बतौर ग्रुप कैप्टन चन्दन सिंह राठौर असम के जोरहाट स्थित एयर फ़ोर्स स्टेशन के कमांडिंग ऑफिसर थे. बांग्लादेश की मुक्ति के लिए पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में वो अग्रिम मोर्चे पर थे. सिलहट इलाके से सैनिकों की दो कम्पनियों को हेलीकाप्टर के ज़रिये लाने की योजना बनाकर उसे अमल में लाने की ज़िम्मेदारी उनकी थी. जब ये ज़रूरी हो गया कि सैनिकों को ढाका तक पहले पहुँचने के रास्ते में आने वाली बाधा से पार पाना होगा तो सीमित हेलिकॉप्टर होने के बावजूद उन्होंने तीन हज़ार सैनिकों और 40 टन वजन के अस्त्र शस्त्र भी पहुंचा डाले.
इससे सैनिकों का वहां रात को लैंड करने के लिए सुरक्षित इलाका मिल गया जिससे भारतीय सेना को बढ़त हासिल हो गई. हरेक मिशन से पहले वह खुद दुश्मन की हरकतों का जायज़ा के लिए दुश्मन की फायरिंग के बीच भी घुस जाते थे.
1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान 7-8 दिसम्बर की रात दुश्मन के इलाके में भीतर तक आठ उड़ाने भरी वो भी तब जबकि दुश्मन सैनिक उन पर ज़मीन से फायरिंग करते जा रहे थे. इसी ऑपरेशन में इसके बाद भी ग्रुप कैप्टन चन्दन सिंह राठौर ने 18 मिशन किये जबकि हर बार उन्हें नई जगह पर लैंड करना पड़ा था. कई बार उनके हेलिकॉप्टर को ज़मीन से दुश्मन की चलाई गोली लगी लेकिन ये उनके मजबूत इरादे को डिगा नहीं सकीं. उनके इन मिशनों के कारण ही भारतीय सेना को पाकिस्तान पर बढ़त मिल सकी थी और पाकिस्तानियों को बंधक बनाया जा सका था.