शहीद फौजी के आहत मां-बाप ने कूरियर से भेजा शौर्य चक्र लौटाया

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लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया
वीरगति प्राप्त लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया

जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों से मुकाबले में वीरगति को प्राप्त हुए भारतीय सेना के लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया के परिवार ने शौर्य चक्र लौटा दिया है. गुजरात में रह रहे इस परिवार को कूरियर के ज़रिए शौर्य चक्र भेजा गया था. इस कारण परिवार की भावनाएं आहत हुई. परिवार ने इसे लांस नायक गोपाल सिंह की शहादत का अपमान बताया है. उनका कहना है कि प्रोटोकॉल के मुताबिक़ शौर्य चक्र भारत के प्रेसीडेंट की तरफ से ही दिया जाना चाहिए.

लांस नायक गोपाल सिंह शूरवीर थे. 2008 में मुंबई में होटल ताज महल में आतंकवादियों के हमले की घटना के दौरान दिखाए गए साहस और हौसले के लिए उनको विशिष्ट सेवा मेडल (वीएसएम – VSM) से सम्मानित भी किया गया था. तब गोपाल सिंह भदौरिया राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी – NSG) के कमांडो थे. मुंबई के होटल ताज (hotel taj) में घुसे आतंकवादियों को बाहर निकलने के लिए छेड़े गए ऑपरेशन में उन्होंने हिस्सा लिया था. इसी दौरान सेना के एक सूबेदार मेजर बुरी तरह घायल हो गए थे. उनकी जान बचाने की खातिर लांस नायक अपनी जान की परवाह किये बगैर उन्हें आतंकवादियों की गोलीबारी के बीच अपने कंधे पर उठाकर बाहर निकाल लाये और एम्बुलेंस तक पहुंचा दिया था. मुंबई के 26 /11 हमले के तौर पर उस आतंकवादी घटना जो याद किया जाता है.

लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया
लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया और उनका परिवार

भारतीय थल सेना (indian army) की राष्ट्रीय राइफल्स की पहली बटालियन में तैनात लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया फरवरी 2017 में जम्मू कश्मीर के कुलगाम में आतंकवादियों से मुकाबला करते हुए शहीद हो गए थे. उस वक्त वे कमानाधिकारी की क्विक रिएक्शन टीम (Quick Reaction Team) में थे. इस ऑपरेशन में दिखाई गई शूरवीरता और साहस के लिए लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया को 2018 में शौर्य चक्र से मरणोपरांत सम्मानित करने का निर्णय लिया गया था लेकिन परिवार में विवाद के कारण ये तय नही हो सका कि एक शहीद जवान के परिवार को मिलने वाले सम्मान और अन्य लाभ का हकदार कौन होगा.

लांस नायक गोपाल सिंह :

लांस नायक गोपाल सिंह भदौरिया का जन्म 27 जुलाई 1983 को गुजरात की बाह तहसील के तालपुरा गांव निवासी मुनीम सिंह के घर हुआ था. उनकी प्राथमिक शिक्षा वडोदरा ज़िले के डाभोल में रहने वाले उनके मामा के यहां हुई. इसके बाद गोपाल सिंह ने अहमदाबाद स्थित निरमा यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग में दाखिला लिया. बचपन से ही सेना की सेवा करने का अपना सपना उन्होंने 2002 में राष्ट्रीय राइफल्स में भर्ती होकर पूरा किया. तभी वो एनएसजी का हिस्सा बने.

कश्मीर में मुठभेड़ :

वो तारीख 12 फरवरी 2017 थी. सुरक्षा बलों को कुलगाम के फ्रिसल गांव में एक मकान में आतंकवादियों का ठिकाना होने की सूचना मिली थी. घेराबंदी करके जब ऑपरेशन शुरू किया गया तो दोनों पक्षों के बीच ज़बरदस्त गोलीबारी हुई. चार आतंकवादी मारे गए. शिनाख्त की गई तो पता चला कि मारे गए आतंकवादियों का ताल्लुक लश्कर ए तैयबा Lashkare-Taiba (LeT) और हिजबुल मुजाहिदीन (Hizb-ul-Mujahideen ) से था. आतंकियों को उनके अड्डे से बाहर निकालने के लिए ये भीषण मुकाबला 10 घंटे चला था. इस मुकाबले में शामिल सुरक्षा बलों के दल में सबसे आगे गोपाल सिंह और सिपाही रघुबीर सिंह की जोड़ी थी.

परिवार और विवाद :

गोपाल सिंह के पिता मुनीम सिंह परिवार लेकर अहमदाबाद के गांव में आ गए जहां वो एक सिक्युरिटी एजेंसी (security agency) चलाते हैं जबकि लांस नायक गोपाल सिंह की पत्नी जयश्री दोनों बेटों संजय और विक्रम के साथ अहमदाबाद शहर में रहती है. लांस नायक गोपाल सिंह का बड़ा भाई मध्य प्रदेश के इंदौर में किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है जबकि छोटा भाई होम गार्ड है.

परिवार के बीच विवाद गोपाल सिंह की शहादत से पहले का चल रहा है. गोपाल और जयश्री की शादी 2007 में हुई थी. विवाद के कारण 2011 से वो अलग रहने लगे. मामला अदालत में भी पहुंचा. इस बीच गोपाल सिंह भदौरिया की शहादत हो गई. क्योंकि तब तक तलाक नहीं हुआ था इसलिए शहीद होने के बाद मिलने वाले लाभ को लेकर उनकी पत्नी जयश्री और माता-पिता के बीच विवाद छिड़ गया. साल 2021 में अदालत के जरिए समझौता हुआ जिसके तहत माता-पिता को वीरता पुरस्कार (शौर्य चक्र) लेने का हक मिला और अन्य लाभ में 50-50 का बंटवारा तय हुआ.

ताज़ा घटनाक्रम :

गोपाल के माता पिता जहां रहते हैं वहां बीती 5 सितंबर को कुरियर से एक पार्सल आया. इस पर वीरता पुरस्कार का लेबल लगा हुआ था. परिवार ने पार्सल नहीं खोला और लौटा दिया. परिवार का कहना है कि हमारे मन में सेना के लिए भरपूर सम्मान है लेकिन हमें इस तरह से शौर्य चक्र कबूल नहीं है. उनका कहना है कि ये चक्र वे राष्ट्रपति के हाथ से ही स्वीकार करना चाहेंगे जो कि प्रोटोकॉल है. उनको समझ नहीं आ रहा कि सार्वजनिक तौर पर दिया जाने वाला ये वीरता पुरस्कार उनको छिपाकर क्यूं दिया जा रहा है.