यूं तो हर सैनिक एक खास शख्सियत होता है . वो किसी भी मुल्क का हो . क्योंकि सेना की वर्दी पहनने का मतलब सीधा सीधा एक ही है . वो ये कि अब ये शरीर देश की अमानत है. लिहाज़ा इसकी कुर्बानी के लिए हर सैनिक मानसिक तौर पर तैयार होता है और इस सोच को अपने भीतर तक गहरे उतारे रखता है . दुश्मन के साथ जंग के लिए हमेशा तैयार रहने के लिए प्रशिक्षित फौजियों के लिए युद्ध का मैदान रोमांच , अपने युद्ध कौशल , साहस और पराक्रम दिखाने का अवसर लेकर आता है जो हर किसी सैनिक को नसीब नहीं होता . बहुत से सैनिकों को सेना की सेवा के दौरान दुश्मन से दो दो हाथ करने के मौके ही नहीं मिलते , कुछ ऐसे भी होते हैं जिनको मैदान ए जंग में उतरने का मौका मिलता है लेकिन वो क्षण नहीं आते जब अपनी हिम्मत , ताकत , जोश और आक्रामकता आजमा सकें . 1999 में भारत – पाकिस्तान के बीच हुए अब तक के आमने सामने के उस आखरी युद्ध यानि ‘ करगिल युद्ध ‘ का इतिहास ऐसे फौजियों की कहानियों और किरदारों से भरा पड़ा है जिसे कितनी ही बार कहा , सुना या पढ़ा जाए लेकिन दिलचस्पी कम नहीं होती.
करगिल युद्ध में आज ही के दिन ( 6 जून 1999 ) को देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले भारतीय सेना के कैप्टन हनीफुद्दीन भी उनमें से एक हैं. महज़ 25 साल की उम्र में इस नौजवान अफसर ने अपनी जिंदगी शुरू होने से पहले ही फर्ज़ की राह पर कुर्बान की थी.
वीर चक्र से सम्मानित भारतीय सेना के कैप्टन हनीफुदीन ने करगिल युद्ध के दौरान तुरतुक की पहाड़ी पर दुश्मन की गोलियों की बौछार का सामना करते हुए पाए घावों के कारण जान गंवाई थी. फर्ज़ , ईमानदारी , खुद्दारी और देश प्रेम के उनके जज़्बे के पीछे सिर्फ सेना की ट्रेनिंग नहीं थी. उनके शानदार चरित्र के पीछे सबसे ख़ास था उनकी मां हेम अज़ीज़ की तरफ से दिए गए वो संस्कार जिनका बयान बार बार सैनिक गलियारों में किया जाता है. आज कैप्टन हनीफ के बलिदान दिवस पर इसकी चर्चा एक बार फिर से हो रही है , वो भी 23 साल बाद तो इसमें कोई हैरानी है.
हनीफ की उम्र तब 8 बरस की थी जब उनके सिर से पिता का साया उठ गया. शास्त्रीय संगीत की माहिर गायिका हेमा अज़ीज़ ने अकेले दम पर हनीफ को पाला और पूरी खुद्दारी के साथ बढ़ा किया. खुद्दारी का एक नमूना तो उनकी माँ ने तब भी पेश किया जब करगिल शहीदों के आश्रितों को सरकार सम्मानजनक आमदनी के लिए पेट्रोल पंप आवंटित कर रही थी जिसे लेने से कैप्टन हनीफ की मां ने मना कर दिया था. वो भी ठीक उसी तरह जिस तरह बचपन में स्कूल की तरफ से दी जाने वाली मुफ्त यूनिफ़ॉर्म लेने से इनकार करने का मौका आया . दरअसल स्कूल उन बच्चों को मुफ्त यूनिफ़ॉर्म दे रहा था जिनके पिता नहीं थे. हनीफ उद्दीन को मां ने शिक्षा दी , ” अपनी टीचर को बताना कि मेरी मां इतना कमा लेती है कि मेरी यूनिफ़ॉर्म का बन्दोबस्त कर सके”.
कैप्टन हनीफ की माँ हेमा अज़ीज़ के गज़ब जज़्बे का अनुभव तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल वी पी मलिक को भी हुआ जब गोलियों से छलनी कैप्टन हनीफ उद्दीन के पार्थिव शरीर को युद्ध भूमि से निकाल कर ला पाने में असमर्थता ज़ाहिर करने के बाबत उन्होंने फोन कॉल किया. दरअसल जहां कैप्टन हनीफ का शव था वहां पर दुश्मन लगातार हमला कर रहा था क्योंकि उसकी पोजीशन मज़बूत थी. कैप्टन हनीफ का शव लाने वाले सैनिकों के लिए जान का बहुत जोखिम था. हालांकि सैनिकों ने ये फर्ज़ पूरा किया लेकिन हेमा अज़ीज़ ने जनरल मलिक से कहा था कि इसके लिए अन्य सैनिकों की जान खतरे में कतई न डालें .