74 वां इन्फेंटरी डे : आज़ाद भारत की पहली शानदार सैनिक दास्तान

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दिल्ली स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित करते भारत के चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत और सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे

भारतीय सेना कल (27 अक्टूबर) 74 वां ‘इन्फेंटरी डे’ (पैदल सेना दिवस) मना रही है. इस अवसर पर भारत के चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत और सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे समेत कई सैन्य अधिकारियों और पूर्व सैनिकों ने दिल्ली स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की और देश की खातिर अपना सर्वोच्च बलिदान करने वाली सैनिकों को याद किया, सलाम किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट सन्देश के ज़रिये सैन्य समुदाय को इस दिन के लिए बधाई दी है. इस दिवस का इतिहास वीरता और देश की खातिर कुरबान होने के जज़्बे से भरा हुआ है और भारतीय सेना के इतिहास में हमेशा और बार बार याद किये जाने लायक है. आज़ाद भारत की ये पहली सैन्य जीत का दिन था और इसी लड़ाई में हीरो रहे मेजर सोमनाथ शर्मा को भारत का पहला परमवीर चक्र भी मिला था.

दिल्ली स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित करते भारत के चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत और सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे

शुरुआत होती है 24 अक्टूबर 1947 से जब भारत का विभाजन हुए तीन महीने ही हुए थे. कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने के मकसद से हजारों कबायलियों ने कश्मीर पर हमला कर दिया था. उन्हें पाकिस्तानी सेना मदद कर रही थी. ऐसे में कश्मीर रियासत के राजा हरी सिंह ने भारत सरकार से मदद मांगी. कबायलियों से मुकाबला करने और पाकिस्तान का कश्मीर पर कब्ज़ा रोकने के लिए दिल्ली तैयार थी लेकिन इसके लिए पहले जम्मू कश्मीर के भारत में विलय का समझौता हुआ. तब महाराजा हरि सिंह कश्मीर रियासत के शासक थे.

दिल्ली स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर सैन्य अधिकारी

समझौते पर दस्तखत होते ही दिल्ली से हवाई जहाज़ के ज़रिये, इन्फेंटरी डिवीज़न के सैनिकों को कश्मीर लैंड कराया गया. ये सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन के सैनिक थे. तीन दिन घमासान हुआ और भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान समर्थित तकरीबन पांच हज़ार पठान कबायलियों को खदेड़ डाला. इस तरह देश का बड़ा भू-भाग पाकिस्तान के कब्ज़े में जाने से रोक लिया गया.

पाकिस्तान के घुसपैठियों के हमले को नाकाम करने के लिए श्रीनगर पहुंचने वाले सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन के सैनिक. (फाइल)
सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन श्रीनगर की एयरफील्ड पर उतरी. (फाइल)

मेजर सोमनाथ शर्मा :

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परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा

बहादुरी और साहस की इस कहानी के साथ मेजर सोमनाथ शर्मा की शूरवीरता भी जुड़ी हुई है. मेजर सोमनाथ शर्मा भारतीय सेना की बेहद सम्मानित कुमाऊँ रेजिमेंट से थे. सन् 1947 की इस जंग में कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन ने भी हिस्सा लिया था. इसकी उस ‘डेल्टा कंपनी’ का नेतृत्वट मेजर सोमनाथ शर्मा कर रहे थे. इससे पहले 21 जून को उन्होंने श्रीनगर हवाई अड्डे को दुश्मन के हाथ में जाने से रोका था. 31 अक्टूबर 1947 को उनकी कम्पनी श्रीनगर पहुंची. हालांकि तब मेजर सोमनाथ शर्मा की बांह में चोट लगी हुई थी जो हॉकी खेलने के दौरान की घटना का नतीजा थी लेकिन उनके बाएं हाथ में प्लास्टर चढ़ा हुआ था. इसके बावजूद वो युद्ध क्षेत्र में जाने को अड़े रहे तो उनको इसकी इजाज़त दे दी गई थी.

पहला परमवीर चक्र :

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परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा

वो तीन नवंबर का दिन था. मेजर सोमनाथ शर्मा की कम्पनी श्रीनगर के दक्षिण पश्चिम में युद्ध भूमि से करीब 15 किलोमीटर दूर बडगाम में थी. यहाँ दुश्मन से लड़ने के लिए मेजर सोमनाथ लगातार आगे बढ़कर छह घंटे तक सैनिकों को उत्साहित करते रहे और जिसका नतीजा भारतीय सेना के हक़ में रहा. लेकिन इसी दौरान दुश्मन की तरफ से दागा गया एक गोला मेजर सोमनाथ शर्मा के पास रखे गोला बारूद के ढेर में जा गिरा. इस धमाके की चपेट में आकर 24 वर्षीय इस युवा योद्धा ने शहादत पाई. मेजर सोमनाथ शर्मा को परमवीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया है. इस सम्मान को पाने वाले वे पहले योद्धा थे. संयोग भी कैसा, श्री शर्मा के भाई की पत्नी सावित्री बाई खानोलकर ने ही परमवीर चक्र का डिजाइन बनाया था.

क्वीन ऑफ़ द बैटल :

कश्मीर का पूरा सैन्य ऑपरेशन क्यूंकि पैदल सैनिकों ने किया था इसलिए इस दिन को उनको समर्पित किया गया. भारतीय सेना की इन्फेंटरी डिवीज़न दुनिया की सबसे बड़ी इन्फेंटरी डिवीज़न मानी जाती है जिसके सैनिकों की नफरी 12 लाख से ऊपर है. युद्ध में पैदल सैनिकों की अहम भूमिका की वजह से इसे ‘ क्वीन ऑफ़ द बैटल’ यानि युद्ध की महारानी कहा जाता है.