भारत ने हथियार समेत तमाम सैन्य साज़ो सामान खरीदने के लिए तय किये गये नये या बदले गये तौर तरीकों यानि रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीएपी 2020) का ऐलान कर दिया है. सरकार ने दावा किया है कि इस प्रक्रिया में जो बदलाव किये गए हैं या नयापन लाया गया है, उससे रक्षा क्षेत्र के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा, दूसरे देशों पर निर्भरता कम होगी और रक्षा सामान या तकनीक हासिल करने की प्रक्रिया को छोटा किया गया है ताकि देरी न हो. नयी डीएपी में एक ख़ास बात और जोड़ी गई है. अब सेना के लिए हथियार, मशीन व अन्य सामान किराये (लीज़) पर भी लिए जा सकेंगे. बड़े रक्षा सौदों में ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट की बाध्यता भी अब नाममात्र की रह गई है. डीएपी 1 अक्टूबर से लागू होगी.
भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को नई दिल्ली में रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी)–2020) का अनावरण किया. पहली रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) 18 साल पहले यानि वर्ष 2002 में लागू की गई थी. तब से बढ़ते घरेलू उद्योग को प्रोत्साहन देने और रक्षा विनिर्माण में आत्म-निर्भरता हासिल करने के लिए इसे समय-समय पर संशोधित किया जाता रहा है. रक्षा मंत्री ने डीएपी–2020 तैयार करने के लिए अगस्त 2019 में महानिदेशक (अधिग्रहण) अपूर्वा चंद्रा की अध्यक्षता में मुख्य समीक्षा समिति के गठन को मंजूरी दी थी.
एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक़ डीएपी 2020 को सरकार के ‘आत्म-निर्भर भारत’ के विज़न के साथ जोड़ा गया है और इसका मकसद मेक इन इंडिया पहल के माध्यम से भारतीय घरेलू उद्योग को मज़बूत बनाने के साथ भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र में बदलना है. नई विदेशी प्रत्यक्ष निवेश नीति की घोषणा के साथ, डीएपी 2020 में भारतीय घरेलू उद्योग के हितों की रक्षा करते हुए आयात प्रतिस्थापन और निर्यात दोनों के लिए विनिर्माण केंद्र स्थापित करने हेतु एफडीआई को प्रोत्साहित करने के लिए पर्याप्त रूप से प्रावधान शामिल किए गए हैं.
रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया बनाने में तमाम हितधारकों के सुझाव लिए गये और उनकी टिप्पणियों पर विचार किया गया. ऐसे जिन हितधारकों का सरकार ने बयान में ज़िक्र किया है उनमें सेना के विभिन्न अंगों, रक्षा मन्त्रालय के विभिन्न विभागों, औद्योगिक एवम वाणिज्यिक संगठनों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों, औद्योगिक घरानों के काफी नाम हैं. ये भी भरोसा दिया गया है कि रक्षा विनिर्माण में विदेशी निवेश के सन्दर्भ में इस बात का ख्याल रखा जाएगा कि इससे घरेलू उद्योग को भी संरक्षण मिले.
रक्षा साजो सामान के व्यापार करने में आसान बनाने के लिए ‘ईज ऑफ डुइंग बिजनेस’ पर ध्यान केन्द्रित किया गया है. इसे लागू करके सरलीकरण, प्रतिनिधि मंडल पर जोर और कुछ विशिष्ट प्रावधानों के साथ प्रक्रिया को उद्योग के अनुकूल बनाना शामिल है. इसके तहत किये गए बदलाव के मुताबिक़ 500 करोड़ रुपये तक के सभी मामलों में एओएन के एकल चरण समझौते को स्थापित किया गया है जिससे समय कम लगेगा. जो काम ठेके पर दिए गये हैं उनका समय पर पूरा न होने के हालात में उन सौदों या ठेके को रद्द करना या अन्य तरह की असरदार कार्यवाही करने के लिए कुछ नये उपाय किये गये हैं. कुछ श्रेणियों में भारतीय विक्रेताओं को आरक्षण दिया गया है. मरम्मत कार्य में परीक्षण के दौरान सामने आई कमियों को सुधारने के लिए सेवा प्रदाता को पर्याप्त समय और अवसर दिया जाएगा.
डीएपी 2020 में, परिसंपत्तियों पर मालिकाना हक के बिना उनका संचालन करने के लिए एक नई श्रेणी शुरू की गई है, जो बड़ी प्रारंभिक पूंजी के विकल्प को प्रतिस्थापित करता है. विक्रेताओं को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिए तय समय सीमा में डिजिटल सत्यापन के माध्यम से एसएचक्यू/पीसीडीए द्वारा दस्तावेजों के समानांतर प्रसंस्करण जैसे उपयुक्त प्रावधानों को शामिल किया गया है. भारतीय उद्योग को भुगतान विदेशी उद्योग के जैसे किए जाने का प्रावधान किया गया है.
रक्षा मंत्रालय की तरफ से डीएपी 2020 के एलान के सन्दर्भ में जारी विज्ञप्ति में कहा गया है, ” ये भारत सरकार के आत्म-निर्भर भारत के विज़न और मेक इन इंडिया का संवाहक एवं उद्योग के अनुकूल प्रक्रिया है. डीएपी 2020 दस्तावेज़ एक विश्वास पैदा करता है और क्षेत्र से जुड़े सभी हितधारकों की आकांक्षाओं को पूरा करेगा”.