पाकिस्तान के साथ 1999 में भारत के करगिल में हुए युद्ध में हिस्सा लेने वाले सैनिक नायक दीपचन्द ने अपने जिस्म के अहम हिस्से बेशक गंवा दिए लेकिन उनके भीतर का योद्धा अब भी न सिर्फ पूरे जोश खरोश के साथ ज़िंदा है बल्कि वैश्विक महामारी नोवेल कोरोना वायरस के खौफ से घबराये लोगों का हौसला भी बढ़ा रहा है. मिसाइल रेजीमेंट का हिस्सा रहे दीपचन्द का वो वीडियो आजकल खूब वायरल हो रहा है जिसमें वह लोगों से घर में सुरक्षित रहने की अपील करते हुए कह रहे हैं कि हम कोरोना का युद्ध जीत जायेंगे, हम हौसले का गीत गायेंगे.
घुटने तक की नकली टांगों पर पूरे तन कर खड़े नायक दीपचन्द जब बिना हाथ वाले दाहिने बाजू से फ़ौजी सैल्यूट करते हैं तो देखने वाले उन्हें लगातार देखने और सुने बगैर रह ही नहीं सकते. वीडियो की शुरुआत ही यूँ होती है,” जय हिन्द ..जय भारत ..! मैं नायक दीपचन्द ..1889 मिसाइल रेजिमेंट ..करगिल “. और वीडियो का अंत भी जय हिन्द और जय भारत के वाक्य से ही होता है.
कई बार मौत को मात :
दरअसल नायक दीपचंद ने भारतीय सेना के उन ऑपरेशन रक्षक, ऑपरेशन विजय करगिल और ऑपरेशन पराक्रम में हिस्सा लिया था. घुसपैठियों और पाकिस्तानियों को मैदान छोड़कर भागना पड़ा था. हरियाणा के हिसार के रहने वाले नायक दीपचन्द प्रख्यात 1989 में सेना में भर्ती हुए थे और कश्मीर में सेना के कई जोखिम भरे ऑपरेशन में शामिल रहे हैं. इनमें कुछ अंडर कवर ऑपरेशंस भी थे जिसमें वो जासूस बनाकर आतंकवादियों के बारे में खुफिया जानकारियाँ इकट्ठा करते थे और इस दौरान पकडे जाने पर उनकी और उनके साथियों की जान तक जाने का खतरा हमेशा बना रहता था.
अजीब दुर्घटना :
ये भी अजीब इत्तेफाक हैं कि इन तमाम खतरनाक ऑपरेशंस में गोला बारूद दागने और दुश्मन की वैसी ही जवाबी कार्रवाई में दागे गये सैकड़ों गोले तो उनका कुछ न बिगाड़ सके लेकिन राजस्थान में एक सामान्य सैन्य काम के दौरान वह अपने ही गोले के ‘ मिस फायर’ से हुई दुर्घटना के शिकार हो गये. हालांकि ये दुर्घटना भी उन दिनों की तैनाती के दौरान हुई जब भारत की संसद पर हमले के बाद पाकिस्तान से युद्ध के आसार बन गये थे. तब नायक दीपचंद की रेजिमेंट राजस्थान में बॉर्डर के पास पोखरण के पास तैनात थी. रात दिन जागकर चौकसी करने पडती थी क्यूंकि दुश्मन कभी भी देश में घुस सकता था.
दोनों टांग और हाथ काटना पड़ा :
गोला फटने की दुर्घटना में दीपचंद इस कदर ज़ख़्मी हुए थे कि उनके बचने की उम्मीद भी नहीं थी. ऐसी ही नाज़ुक हालत तो उनकी उस सर्जरी में भी बनी रही जिसमें उन्हें बचाने के लिये डॉक्टरों को उनकी दोनों टाँगे और एक हाथ काटकर जिस्म से काट कर अलग करना पड़ा. उनका इतना खून बह गया था कि उन्हें बचाने के लिए 17 बोतल खून चढ़ाया गया. ये हादसा भी तब हुआ था जब दीपचंद और उनके साथी वापसी के लिए सामान बाँधने की तैयारी में थे. इस गोले के फटने से दो और सैनिक भी ज़ख़्मी हुए थे.