पाकिस्तान के साथ युद्ध में अदम्य साहस का परिचय देने वाले महावीर चक्र से सम्मानित लेफ्टिनेंट जनरल राज मोहन वोहरा को भारतीय सेना ने कल आख़िरी सलाम किया. 88 साल की उम्र में भी अचानक करने पड़े दिल के ऑपरेशन को भी ये सख्त जान योद्धा झेल गया लेकिन ठीक होते होते कोरोना वायरस ने अपनी चपेट में ऐसा लिया कि लेफ्टिनेंट जनरल वोहरा जिंदगी की जंग हार गये. लेफ्टिनेंट जनरल वोहरा भारतीय थल सेना की पूर्वी कमांड के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ (जीओसी -इन-सी /GOC-in-C) रहे हैं.
जनरल राज मोहन वोहरा के परिवार वालों ने मीडिया को बताया कि कुछ अरसा पहले ह्रदय रोग से सम्बन्धित इलाज के लिए डॉक्टरों को उनकी अचानक सर्जरी करनी पड़ी थी. इलाज के आख़िरी पड़ाव के दौरान, आठ दिन पहले ही, जनरल वोहरा पूरी दुनिया में फैले जानलेवा कोविड 19 संक्रमण की चपेट में आ गये. जनरल वोहरा ने 15 जून को गुरुग्राम में आख़िरी सांस ली. जनरल वोहरा के पुत्र विवेक वोहरा ने बताया कि सेना ने कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया.
भारतीय सेना के पूर्व प्रमुख जनरल एस एफ रोड्रिग्स, पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल एल रामदास और वायुसेना के पूर्व प्रमुख एयर चीफ मार्शल एन सी सूरी उनके कोर्स के साथी थे. लेफ्टिनेंट जनरल आर एम वोहरा उस ज्वाइंट सर्विस विंग के प्रथम कोर्स से थे जिसे अब राष्ट्रीय रक्षा अकेडमी (नेशनल डिफेन्स अकेडमी -NDA) कहा जाता है. जनरल वोहरा ने दिसम्बर 1952 में सिंधिया हॉर्स (14 हॉर्स) में कमीशन हासिल किया था जो बाद में हडसन हॉर्स (4 हॉर्स) आर्मर्ड रेजिमेंट में स्थानांतरित हो गई थी.
लेफ्टिनेंट जनरल वोहरा की शूरवीरता :
पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध में उन्होंने जब हिस्सा लिया तब वो मेजर थे लेकिन पाकिस्तान के साथ ही इसके 6 साल बाद हुई जंग में आर एम वोहरा लेफ्टिनेंट कर्नल थे. उस युद्ध में 4 हॉर्स को शकरगढ़ सेक्टर में कमांड करते हुए उन्होंने अपने उत्कृष्ट कोटि के युद्ध कौशल का परिचय दिया था. अपनी जान की परवाह ना करते हुए लेफ्टिनेंट कर्नल राज मोहन वोहरा ने पाकिस्तान की सेना का मुकाबला करते हुए आगे बढ़कर खुद मोर्चा सम्भाला. उनकी रेजिमेंट ने पाकिस्तानी सेना की किले बंदी को भैरोनाथ, ठाकुरद्वारा, बरी लगवाल, चमरोला, दरमान, चकर और देह्लरा गाँवों में नेस्तनाबूद कर डाला था. दुश्मन ने यहाँ पर बारूदी सुरंगे बिछाने के साथ साथ टैंक और मिसाइल के साथ मोर्चा बंदी की हुई थी. बसंतर नदी के मुहाने पर हुए युद्ध में अपना कम से कम नुकसान करते हुए रेजिमेंट अपने जोशीले लेफ्टिनेंट कर्नल के साथ आगे बढ़ती रही दुश्मन के लगातार बख्तरबंद हमले का सामना करते हुए यहाँ भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के 27 टैंक ध्वस्त किये.
यहाँ भी तैनाती :
1990 में सेवानिवृत्ति से पहले थल सेना की पूर्वी कमांड को दो साल तक उन्होंने बतौर चीफ सम्भाला था. लेफ्टिनेंट जनरल राज मोहन वोहरा मध्य प्रदेश में मऊ स्थित आर्मी वार कॉलेज और पूर्व के कोर कमांडर भी रहे. सेना में सेवा के शुरूआती दौर में भी उनकी (1961-62) में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के मिशन पर कांगो में तैनाती हुई थी.
पदक और सम्मान :
महावीर चक्र से सम्मानित लेफ्टिनेंट जनरल राज मोहन वोहरा को परम विशिष्ट सेवा मेडल भी मिला था और वह भारत के राष्ट्रपति के ऑनरेरी एडीसी भी रहे.
परिवार :
लेफ्टिनेंट जनरल राज मोहन वोहरा के शोकाकुल परिवार में पत्नी, पुत्र, पुत्रवधू और एक पोती है.