
दुनिया भर की सेनाओं में भारतीय सेना की सबसे बड़ी इन्फेंटरी डिवीजन (infantry division) की वीरता और शहीदों को आज पूरा देश याद कर रहा है. 75 वें इन्फेंटरी डे (infantry day) यानि पैदल सेना दिवस के अवसर पर भारत के चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ जनरल बिपिन रावत और भारत के थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे समेत कई सैन्य अधिकारियों ने वीर सैनिकों और शहीद साथियों की स्मृति में दिल्ली स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की.

भारतीय सेना के 75 वें इन्फेंटरी दिवस के मौके पर सेनाध्यक्ष मनोज मुकुंद नरवणे की पत्नी और आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन (AWWA) की अध्यक्ष वीणा नरवणे ने वीर नारी सम्मान समारोह के दौरान वीर नारियों के अमूल्य योगदान और कुर्बानियों के लिए सराहना की. उन्होंने वीर नारियों को सम्मानित भी किया. भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पैदल सेना दिवस पर पैदल सैनिकों को शुभकामनाएं दीं. उन्होंने इस अवसर पर ट्वीट करके दिए संदेश में कहा कि पैदल सैनिक अटूट साहस और शूरवीरता के प्रतीक हैं. पूरा देश उनको उनकी दी हुई सेवा और बलिदान के लिए सलाम करता है.
इन्फेंटरी यानि पैदल सेना को भारतीय सेना की रीढ़ माना जाता है जो मोर्चे पर आमने सामने की लड़ाई लड़ती है. इसलिए पैदल सेना को क्वीन ऑफ़ बैटल (queen of battle ) यानि युद्ध की रानी भी कहा जाता है.

पैदल सेना दिवस का इतिहास :
भारत में हर साल 27 अक्टूबर को इन्फेंटरी डे यानि पैदल सेना दिवस मनाने की ख़ास वजह है और इसका इतिहास 1947 से जुड़ा हुआ है जब भारत को अंग्रेज़ी शासन ने ताज़ा ताज़ा ही आज़ादी मिली थी. उस वक्त भारत के पुनर्गठन और निजी रियासतों और रजवाड़ों के भारत राष्ट्र में विलय का सिलसिला चल रहा था. लेकिन तीन रियासतों में से एक जम्मू कश्मीर ने भारत में विलय से इनकार कर दिया था. हालांकि इस रियासत में ज्यादातर आबादी मुसलमानों की थी लेकिन इसके राजा हरि सिंह ने पाकिस्तान में जाने से भी इनकार कर दिया था. मज़हब के आधार पर बने देश पाकिस्तान के लिए ये एक तरह का झटका भी था. पाकिस्तानी रहनुमाओं को कश्मीर के अपने साथ आने की उम्मीद पूरी नहीं हुई तो इसे हड़पने के लिए उन्होंने एक साजिश रची. उनको, पाकिस्तानी सेना के समर्थन से कश्मीर में घुसे, कबायली पठानों को खदेड़ने के लिए भेजा गया.

आज़ाद भारत की पाकिस्तान से पहली भिड़ंत :
पाकिस्तान ने अक्टूबर 1947 में जम्मू कश्मीर को हड़पने की साजिश के तहत कबायली पठानों के कश्मीर में घुसपैठ करने के लिए पूरी तरह से तैयार किया. पाकिस्तानी सेना की मदद से पाकिस्तान की तरफ से आई कबायली पठानों की फ़ौज ने 24 अक्टूबर 19 47 की सुबह कश्मीर में हमला कर डाला. मुसीबत की इस घड़ी में जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह भारत से मदद मांगी. भारत से विलय के लिए राजी होने और समझौते पर दस्तखत के बाद कबायलियों से निपटने के लिए भारत ने फ़ौरन कार्रवाई शुरू कर दी. भारतीय सेना के पैदल दस्ते को दिल्ली से जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के लिए हवाई जहाज़ से भेजा गया. उनको , पाकिस्तानी सेना के समर्थन से कश्मीर में घुसे, कबायली पठानों को खदेड़ने का काम सौंपा गया. भारत की पैदल सेना के इन जवानों ने 27 अक्टूबर को पूरी तरह से कबायलियों को खदेड़ कश्मीर को उनके कब्ज़े से आज़ाद करवा लिया. हमलावर कबायली पठानों की तादाद तकरीबन 5000 थी.
आज़ाद भारत की उस पहली जंग में भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट का अहम योगदान रहा. कुमाऊं रेजिमेंट की डी कंपनी इसमें शामिल थी जिसका नेतृत्व मेजर सोमनाथ शर्मा कर रहे थे. श्रीनगर एयरपोर्ट को बचाने के लिए दिखाई गई शूरवीरता के लिए मेजर सोमनाथ शर्मा को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. परमवीर चक्र से सम्मानित किये जाने वाले सोमनाथ शर्मा पहले भारतीय सैनिक थे.