विभिन्न सरकारी संगठनों और प्रतिष्ठानों में ऐसे जुझारू कर्मवीर होते हैं जो पर्दे के पीछे रहकर ऐसे काम करते हैं जिनका किया हुआ काम सबको नहीं दिखाई देता लेकिन उसका असर हजारों लाखों पर पड़ता है. खासतौर से सेना, पुलिस और अन्य कई वर्दीधारी संगठनों में ऐसे असंख्य नायक हैं जो सेवा में रहते हुए ऐसे कारनामे करते रहते हैं. लेकिन वर्दी से मुक्ति के बाद भी फौजी साथियों की सेवा में निस्वार्थ और बिना आर्थिक मदद लिए निरंतर व्यस्त रहने वाले 80 वर्षीय ग्रुप कैप्टन (रिटायर्ड) सुहास सदाशिव पाठक जैसा विरला ही होगा.
भारतीय वायु सेना से सेवानिवृत्ति के बाद लगातार सैन्य समुदाय के कल्याण में लगे ग्रुप कैप्टन पाठक 2012 से एयरफोर्स एसोसिएशन (महाराष्ट्र ) के अध्यक्ष हैं और इस ओहदे की ज़िम्मेदारी निभाने में 10 साल में किसी तरह की कमी भी उन्होंने नहीं आने दी. पुणे निवासी ग्रुप कैप्टन सुहास पाठक की सक्रियता आज भी वैसी ही है. पूर्व सैनिकों की सेहत , उनके परिवार , पेंशन , विकलांग हुए सैनिकों के कल्याण आदि विषयों पर काम करने वाले श्री पाठक ने वायु सेना की सेवा के दौरान भी ऐसे काई काम किए जो भले ही दुश्मन से जंग लड़ने या बहादुरी दिखाने वाले न हों लेकिन आर्थिक दृष्टि से देखा जाए तो उन्होंने वाय्युसैनिक अधिकारी के तौर पर शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं.
जहां सेना के लिए असलाह से लेकर राशन , सामान और ताबूत तक की खरीदादरी में कमीशनखोरी – दलाली बदनामी का कारण बनती रहीं वहीँ ग्रुप कैप्टन पाठक ऐसे सैन्य अधिकारियों में से एक रहे जो हमेशा सरकारी पैसे के वाजिब और बेहतर इस्तेमाल के लिए योजना बनाते और उन्हें अमल में लाने का काम करते रहे.
जिस्मानी सेहत के साथ दिमाग को भी चुस्त रखने के लिए, दुनिया भर में लोकप्रिय बादाम की खपत भारत में लगातार बढ़ रही है लेकिन अजीब बात ये है कि यहां बादाम की पैदावार लगातार तेजी से कम होती जा रही है. प्रशासनिक और आर्थिक प्रबंधन में नयापन लाने के कार्यक्रम बनाने के अलावा ऐसे कई मौके भी आए जब उन्होंने सरकारी पैसे की न सिर्फ बर्बादी रोकी बल्कि नियमों का पालन न करने वाले वेंडर से भारी जुर्माना वसूल करवाकर सरकारी खजाने में जमा करवाया. अस्सी के दशक के आखिर में ऐसी ही एक 42 करोड़ रूपये के हथियार खरीद की योजना के अमल में गड़बड़ी पकड़ कर बिना डरे और किसी की परवाह किये उन्होंने एक वेंडर पर 20 लाख 65 हजार रूपये का जुर्माना ठोका . मुंबई के पवई में वायुसेना और नौसेना के कार्मिकों के लिए बनाए गए 642 फ्लैट बनाने की परियोजना एएफएनएचबी हाउसिंग प्रोजेक्ट को शुरू भी उन्होंने करवाया और 19 लाख रुपये की लागत भी कम कराई.
ग्रुप कैप्टन सुहास पाठक ने भारतीय वायुसेना भविष्य निधि न्यास के ट्रस्टी के पद पर रहते हुए प्रोविडेंट फंड के ऐसे संशोधित नियम का पालन करवाया जिससे 1 .3 लाख वायुसैनिकों को लाभ हुआ. उनके लिए सिंगल विंडो सिस्टम बनाया गया ताकि रिटायर होते ही उनका खाते का हिसाब किताब हो जाए. भारत – पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध के दौरान सुहास पाठक ने एक गैर चिकत्सा अधिकारी होते हुए भी कानपुर में 165 बेड वाले अस्पताल का विस्तार कर उसे 565 बेड वाला अस्पताल बनवाया. कानपुर एयर फ़ोर्स अस्पताल विस्तार को याद करते हुए ग्रुप कैप्टन पाठक का कहते हैं कि वो दौर उनके लिए शानदार उपलब्धि और यादगार है क्योंकि इस प्रोजेक्ट को पूरा का पूरा उन्होंने अकेले देखा था.
ग्रुप कैप्टन सुहास पाठक तत्कालीन एयर चीफ मार्शल आई के लतीफ़ के आर्थिक सलाहकार भी रहे और उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाए जाने पर कुछ हफ्ते तक मुंबई राज भवन से अटैच भी रहे. श्री पाठक का कहना है राजनीतिक तौर पर हुए हंगामे के कारण उनको राजभवन से हटाकर वायु सेना मुख्यालय में तैनात कर दिया गया.
वायुसेना से रिटायर्मेंट के बाद भी विभिन्न निजी संस्थानों में ऊँचे ओहदे पर काम किया. इस दौरान वे टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च मुख्य वित्त अधिकारी के पद पर भी रहे. महाराष्ट्र सरकार के सैनिक कल्याण बोर्ड में सलाहकार के तौर पर सेवा के दौरान उन्हें 2013 में ‘ पेंशन सेल ‘ में काम करने का प्रस्ताव मिला. ग्रुप कैप्टन पाठक कहते हैं कि ये भी एक तरह की चुनौती थी. बेहद कम स्टाफ होने के बावजूद यहां 16 महीने में 1 लाख 10 हज़ार पेंशन धारको के माले निपटाए. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले पूर्व सैनिकों और सैनिकों की विधवाओं में इस सेल ने भरोसा बढ़ाया. दरसल ग्रामीण क्षेत्रों में नियम कायदों के लेकर लोगों में कम जागरूकता देखी जाती है लेकिन इस सेल की तरफ से उनको समय समय पर एस एम एस के जरिए पेंशन आदि का स्टेटस की सूचना दी जाती थी. पेंशन के नए केस आने पर ये सिस्टम अब भी काम कर रहा है. सेल को सिर्फ 2 सहायकों की मदद से चलाया जा रहा है जबकि इसके ज़रिये पूर्व सैनिकों और विधवाओं के खातों में 8 करोड़ 65 लाख से ज्यादा की रकम हर महीने पहुँचती है .
ग्रुप कैप्टन पाठक ने ऐसे असंख्य केस में पेंशन चालू करवाई है जहां मामूली सी गलती के कारण पेंशन रुकी रहती थी. पूर्व सैनिकों के आश्रितों या विधवाओं को कई बार तो इस मुश्किल से महज़ इसलिए गुज़रना पड़ता था क्यूंकि नाम आदि लिखने में कोई त्रुटि रह गई . वे बताते हैं कि एक केस तो ऐसा था जिसमें 80 वर्षीय एक युद्ध विधवा को 1958 से पेंशन नहीं मिली थी. इसे करवाने में ग्रुप कैप्टन पाठक को डेढ़ साल लगा .
सुवास पाठक की तमन्ना तो फाइटर पायलट बनने की थी लेकिन दृष्टिदोष के कारण 1965 में पायलट एप्टीटीयूट बैटरी टेस्ट कामयाब नहीं रहा लिहाज़ा उन्हें उन्हें वायुसेना की अकाउंट ब्रांच में कमीशन मिला जहां देशभर में विभिन्न स्थानों पर तैनाती के दौरान उन्होंने 29 साल का करियर पूरा किया. पेंशन मामलों में उनकी कुशलता और इसका पूर्व सैनिकों के लिए इस्तेमाल करके वो कई सैन्य परिवारों की मदद कर पा रहे हैं. इसका उन्हें काफी संतोष है .