भारतीय वायु सेना की 44 स्क्वाड्रन की चंडीगढ़ में हीरक जयंती

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भारतीय वायु सेना
भारतीय वायु सेना

भारतीय वायु सेना की 44 स्क्वाड्रन (44 squadron) इस साल चंडीगढ़ में अपनी हीरक जयंती मना रही है. स्क्वाड्रन का यह हीरक जयंती समारोह 2021 में मनाया जाना था लेकिन कोविड-19 महामारी के फैले संक्रमण के मद्देनजर इसे टाल दिया था. भारतीय वायुसेना की 44 वीं स्क्वाड्रन का समृद्ध और गौरवशाली इतिहास आधुनिक भारत के सैन्य इतिहास एवं कूटनीति का बहुरूपी, धैर्य, साहस, समर्पण और व्यावसायिकता की कहानियों से भरा हुआ है.जिस मकसद से भारतीय वायुसेना की इस स्क्वाड्रन का गठन किया उन सब विशेषताओं की झलक इसके इतिहास में दिखाई देती है .

भारतीय वायुसेना में सामरिक विमानों की अग्रदूत (harbinger of strategic airlift) 44 स्क्वाड्रन भारत के हाल ही के इतिहास में सभी प्रमुख सैन्य और एचएडीआर (HADR) पहलों का एक हिस्सा रही है. इसने सहयोगी सेवाओं की फौजी ताकत को भी बढ़ाया है. मेंटेनेंस कमांड के अधीन 44 वीं स्क्वाड्रन की स्थापना छह अप्रैल 1961 को की गई थी. तब इसे एएन-12 विमानों से लैस किया गया था. वर्ष 1985 तक 44 वीं स्क्वाड्रन ने एएन-12 एयरक्राफ्ट का परिचालन किया. मार्च 1985 में आईएल-76 विमान भारत में लाया गया, जिसे औपचारिक रूप से 16 जून 1985 को भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया. विमान आज भी सेवा में है. 1985 में स्क्वाड्रन का नाम बदलकर ‘माइटी जेट्स’ कर दिया गया था.

स्क्वाड्रन ने देश की ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की मान्यता को ध्यान में रखते हुए, देश के नागरिकों के साथ-साथ दुनिया भर के लोगों को जरूरत के समय मदद की है. 44 स्क्वाड्रन ‘इष्टम यत्नेन सद्येत’ के अपने आदर्श पर कायम है, जिसका अर्थ है ‘दृढ़ता के माध्यम से लक्ष्यों की प्राप्ति.’ स्थापना के बाद से ही 44 स्क्वाड्रन भारतीय वायुसेना की विभिन्न एयरलिफ्ट गतिविधियों में सबसे आगे रही है. यह स्क्वाड्रन सौंपे गए अपने किसी भी काम को करने के लिए तैयार रहती है.