भारत की सेना अब अत्यधिक ऊंचाई वाले ठंडे सीमाई इलाके में गश्त के लिए दो कूबड़ वाले ऊंट का इस्तेमाल करेगी. रिसर्च के बाद इस पर सहमति बन चुकी है कि लदाख में पाए जाने वाले इन स्थानीय प्रजाति के दो कूबड़ वाले ऊंटों को भारत-चीन सीमा पर गश्त में उपयोग किया जाएगा. इसके लिए योजना तकरीबन तकरीबन पूरी बन चुकी है. यहाँ इस ऊंट के इस्तेमाल की वजह है यहाँ के माहौल के मुताबिक़ इसका पहले से ही ढला होना.
समुद्र तट से 17000 फुट की उंचाई वाले इस सर्द इलाके में खतरनाक और मुश्किल हालात में भी ये ऊंट 170 किलो तक का भी वजन ढोते गश्त कर सकता है और वो भी दो चार नहीं 12 घंटे तक. भारत के रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (DRDO -डीआरडीओ) ने इससे सम्बन्धित रिसर्च भी की और प्रयोग भी किया है. दो कूबड़ वाले ऊंट की क्षमता परखने और राजस्थान में पाए जाने वाले ऊंट से इसकी तुलना भी कराई गई है. ख़ास बात ये भी है कि ये ऊंट तीन दिन तक बिना खाए पीये भी काम कर सकता है.
डीआरडीओ के एक वैज्ञानिक के मुताबिक़ दोहरे कूबड़ वाले ऊंट की विभिन्न प्रकार की शक्ति, क्षमता आदि परखने के लिए पूर्वी लदाख में भारत-चीन सीमा के इलाके में 17 हज़ार फुट की ऊँचाई पर अनुसन्धान और प्रयोग किया गया था. इनसे तुलना करने के लिए राजस्थान से भी ऊंट लाये गये थे. इस मुकाबले में स्थानीय दोहरे कूबड़ वाले ऊंट बेहतर दिखे. इसके बाद इन पर ट्रायल भी किया गया.
भारतीय सेना ऊँचाई वाले सामरिक महत्व के उन क्षेत्रों में, खासतौर से सामान ढोकर ले जाने के लिए खच्चरों, गधों, घोड़ों का इस्तेमाल करती है जहाँ पहुँचने के लिए या तो रास्ते नहीं हैं अथवा जहां वाहनों का जाना मुश्किल होता है. रेगिस्तानी इलाकों में पुलिस, सीमा सुरक्षा बल व अन्य एजेंसियां ऊंट का इस्तेमाल अरसे से कर रही हैं. अब लदाख में आसानी से उपलब्ध दोहरे कूबड़ वाले ऊंटों के गश्त में इस्तेमाल पर काम किया जा रहा है लेकिन इनकी आबादी कम है. ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रक्षा सम्बन्धी अनुसन्धान करने वाला डिफेन्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ हाई ऐल्टीटियूड रिसर्च (डीआईएचएआर-DIHAR ) अब लदाख के इन दो कूबड़ वाले ऊंटों की आबादी बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है.