क्या भारत के नेता और नेतृत्व ही बने हैं रक्षा के लिए चुनौती?

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रक्षा
प्रतीकात्मक फोटो

भारत को अपनी बाहरी सुरक्षा मज़बूत करने के लिए जहां सैन्य संसाधनों में काफ़ी ज़्यादा इज़ाफा करने के मकसद से, रक्षा बजट को जितना बढ़ाना ज़रूरी है उससे भी ज्यादा ज़रूरी है देश के नेतृत्व और सियासी जमात में सामरिक महत्व के हालात के प्रति समझ के साथ संवेदनशीलता का होना. वहीं चीन और पाकिस्तानी सीमा से खतरे को देखते हुए, भरपूर सैनिक तैयारी के साथ राजनयिक नज़रिये से तेज़ तर्रारी भी दिखानी होगी. इसके साथ ये भी अच्छे से समझने और समझाने की ज़रूरत है कि सुरक्षित वातावरण के बिना राष्ट्र की तरक्की मुमकिन नहीं है.

कुल मिलाकर ये लब्बो लुआब रहा मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल में दूसरे दिन आयोजित उस चर्चा का जिसका विषय था ‘भारत की सुरक्षा में उभरती चुनौतियां’. पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ में आयोजित इस चर्चा का मंच पर संयोजन करते वक्त भारतीय सेना के पूर्व प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने तकरीबन सभी बिन्दुओं पर वक्ताओं को शामिल किया. हालांकि इस चर्चा में, चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ के ओहदे के सृजन के बारे में बात आई गई रह गई. मंच से इस बात की आलोचना भी की गई कि देश और सरकारों के पास बड़ी बड़ी प्रतिमायें बनाने के लिए तो हजारों करोड़ रूपये हैं लेकिन देश की सेना और रक्षा बजट के लिए नहीं हैं.

अर्थव्यवस्था में बढोत्तरी के मुकाबले रक्षा क्षेत्र में तरक्की बेहद कम होने पर चिंता ज़ाहिर करते हुए सेवानिवृत्त प्रोफेसर कर्नल पीके वासुदेव ने इतना तक कह डाला कि आज ये सेना उतनी भी क्षमतावान नहीं है कि 1971 और 1965 जैसे युद्धों के हालात का कामयाबी से सामना कर सके. हमारे सैनिक जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर में आतंकवाद से जूझते जूझते ही इतना नुकसान झेल रहे हैं.

पत्रकार विष्णु सोम ने चीन की सेना, उसके साजो सामान, बढ़ती ताकत और रक्षा बजट का ज़िक्र किया तो सवाल खड़ा हुआ कि क्या भारत का चीन जैसे उस देश की होड़ करना उचित है जो खुद को अमेरिका से मुकाबला करके सुपर पॉवर बनाने पर तुला हुआ है. वक्ताओं का मानना था कि भारत को सीमा की सुरक्षा के लिये तैयारी तो भरपूर करनी चहिये लेकिन अपनी ज़रूरतों के हिसाब से न कि होड़ में. लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) आदित्य सिंह का कहना था कि चीन के सिर्फ दो ही बड़े दोस्त हैं एक पाकिस्तान तो दूसरा कोरिया. लिहाज़ा राजनयिक स्तर पर ‘स्मार्ट प्ले’ करके चीन पर दबाव बनाये रखा जा सकता है.

करगिल संघर्ष के वक्त 1999 में भारतीय सेनाध्यक्ष रहे लेफ्टिनेंट जनरल वीपी मलिक ने कहा कि आज हमने स्थानीय स्तर पर रक्षा पंक्ति मज़बूत की हुई है. पाकिस्तान कुछ करता है तो उसको प्रतिक्रिया में जवाब दे दिया जाता है लेकिन भारत की रक्षा तैयारी इससे आगे की होनी चाहिये. भारत आज भी चीन और पाकिस्तान की धमकी सहता है. उनका कहना था कि भारत अब भी परम्परागत युद्ध जैसी सैनिक तैयारी में जुटा है जबकि इन देशों की तैयारी ‘हायब्रिड’ है.

जनरल मलिक का कहना था कि हमारी सुरक्षा की चुनौतियां बहुत हैं खासतौर से इसके बजट में हो रही कटौती. उन्होंने कहा कि राजनेताओं को रक्षा मामलों में दिलचस्पी दिखानी चाहिये. जनरल मलिक ने डिफेन्स सप्लाई में मेक इन इण्डिया की भूमिका की सराहना तो की लेकिन साथ ही सवाल उठाया कि अपनी सेना की ज़रूरतों को इसके तहत पूरा करने के लिए इतना धन ही नहीं है.

वहीं लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) कमल जीत सिंह ने भी नेताओं और अफसरशाही की तरफ इशारा करते हुए इस बात को भी चुनौती माना और अफ़सोस प्रकट करने के अंदाज़ में कहा कि हम अभी तक उस जमात को, सामरिक महत्व के मामलों के प्रति उतना शिक्षित ही नहीं कर पाए, जिसने निर्णय लेने होते हैं. जनरल केजे सिंह ने कहा कि सामरिक मामलों में हमारा नजरिया बेहद ढीला ढाला है.

सामरिक महत्व के मामलों में सरकार को सही दिशा अपनाने के लिए नज़रिया देने में उनके प्रयासों के बारे में, एक सेवानिवृत्त अधिकारी के सवाल पूछने पर पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल वीपी मलिक कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके. जनरल मलिक ने बस इतना ही कहा कि वर्ष 2000 में रिटायरमेंट के बाद सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार बोर्ड में दो साल के लिए सदस्य बनाया था. इस बोर्ड ने सरकार को अपनी रिपोर्ट दी लेकिन सरकार ने उसे सार्वजनिक नहीं करने का निर्णय लिया लिहाजा वह उस बारे में इस मंच से बात नहीं कर सकते.

लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) आदित्य सिंह ने चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ का ओहदा बनाये जाने की बात छेड़ी जिस पर चर्चा हो ही नहीं सकी. पत्रकार दिनेश कुमार ने देश के अंदरूनी सुरक्षा के हालात का ज़िक्र करते हुए जम्मू कश्मीर के हालात का ज़िक्र किया और कहा कि इस राज्य में हालात सम्भलने के बजाय 4 -5 साल में और बिगड़े हैं.