पूर्व मेजर जनरल अहलूवालिया को 20 साल बाद मिला इंसाफ़ , तहलका 2 करोड़ का हर्जाना देगा

295
भारतीय सेना के पूर्व मेजर जनरल एम एस आहलूवालिया को बरसों बाद एक बड़ी राहत मिली है. दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी प्रतिष्ठा को तार तार कर देने वाले ‘ तहलका पोर्टल ‘ के पत्रकारों  तरुण तेजपाल , अनिरुद्ध बहल और मैथ्यू सैमुअल पर दो करोड़ रुपये का हर्जाना देना का आदेश सुनाया है . दो दशक पहले तहलका ने एक स्टिंग ऑपरेशन को आधार बना कर एक ऐसी रिपोर्ट तैयार व प्रसारित कराई थी जिसके ज़रिए मेजर जनरल अहलूवालिया  को एक भ्रष्ट अधिकारी साबित करने की कोशिश की गई थी. ये रिपोर्ट जी टेलीफिल्म ( वर्तमान जी मीडिया ) के चैनल पर प्रसारित की गई थी. हालांकि अदालत ने ‘ जी ‘ को उनकी प्रतिष्ठा को खराब  करने का दोषी नहीं माना है . वैसे अदालत ने यह भी कहा है कि हर्जाने की रकम उस प्रतिष्ठा को पहुंची क्षति की भरपाई नहीं है.

दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस नीना बंसल ने सेना के पूर्व मेजर जनरल एम एस अहलूवालिया ( retired army officer major general m s ahluwalia ) की मानहानि के 22 साल पुराने  इस केस में फैसला सुनाया है जिसके 48 पन्ने हैं .  अदालत ने टिप्पणी की है कि इससे लोगों की नज़रों में भी गिरावट  के कारण मेजर जनरल आहलुवालिया की प्रतिष्ठा  को ही ठेस नहीं लगी बल्कि भ्रष्टाचार जैसे गम्भीर इलज़ाम लगने से उनका चरित्र हनन भी हुआ . खोई हुई यह प्रतिष्ठा किसी भी तरह लौटकर उस जख्म को नहीं भरा जा सकता. अदालत ने कहा कि किसी भी ईमानदार सैनिक अधिकारी की प्रतिष्ठा को बहुत नुकसान पहुँचाने वाला इससे यह स्पष्ट मामला नहीं हो सकता. अदालत का कहना था कि काफी वक्त बीत चुका है और वादी  23 साल से बदनामी के साथ जी रहे हैं .

अदालत का कहना है कि जिस तरह का मानहानि का असर पड़ा है उसको देखते हुए वर्तमान स्थिति में माफ़ी न केवल अपर्याप्त है बेमायने है . जस्टिस नीना बंसल ने इस संदर्भ में अमेरिका के राष्ट्रपति रहे अब्राहम लिंकन  (18 61 – 18 65 तक ) us president abraham lincoln के उस कथन का  ज़िक्र किया जिसमें कहा गया है बाद में सामने आई किसी भी सचाई में इतना दम नहीं होता कि तुरंत फैसले पर पहुँच जाने वाले समाज में लोगों की नज़रों से गिरे व्यक्ति की  से प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित कर सके . अदालत का कहना था कि खोई हुई संपत्ति तो कभी भी फिर से कमाई जा सकती है लेकिन इज्ज़त पर लगे दाग की भरपाई लाखों से नहीं हो सकती.

तहलका की तरफ से अदालत में दलील दी गई थी ऑपरेशन वेस्ट एंड ( operation west end ) एक अच्छे  काम के तौर पर किया गया था ताकि दुनिया भर में रक्षा सौदों में होने वाले भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया जा सके. लेकिन अदालत ने इस दलील को यह कहा कर खारिज किया कि मकसद चाहे अच्छा हो या सर्वजन के लिए हो लेकिन  इससे किसी एजेंसी को झूठे बयान गढ़कर लोगों में सनसनी फैलाने का अधिकार नहीं मिल जाता . असल में मेजर जनरल आहलुवालिया ने अपनी याचिका में ये भी कहा था कि जो बात उन्होंने कही भी नहीं वो भी तहलका के रिपोर्टर उनकी तरफ से कही बताई थी. यह मनगढ़ंत और उसकी कल्पना थी .

अदालत ने मानहानि कानून  के तहत  अभियुक्तों को मानहानि के लिए दोषी न ठहराने  की दलील के पक्ष पर भी विचार  किया . मेजर जनरल एम एस अहलूवालिया  मानहानि के लिए जी टेलीफिल्म्स पर दोष साबित नहीं कर सके जिसने ‘तहलका ‘के साथ एक व्यवस्था के तहत अपने टीवी चैनल पर उनकी रिपोर्ट प्रसारित की थी .  जनरल अहलूवालिया ने 2002 में यह केस दायर किया था .

क्या था ये स्टिंग ऑपरेशन :
यह साल 2001 की घटना जब मेजर जनरल एम एस अहलूवालिया थल सेना मुख्यालय में तैनात थे. तरुण तेजपाल ( tarun tejpal)के नेतृत्व में चलने वाले तहलका पोर्टल ने ‘ऑपरेशन वेस्ट एंड’ शीर्षक से स्टिंग ऑपरेशन किया था. इसे सेना भारतीय सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार पर एक बड़े खुलासे के तौर पर प्रचारित और प्रसारित करके ‘ तहलका ‘ ने खुद की एक अलग पहचान बनाई थी और स्टिंग ऑपरेशन पत्रकारिता की ज़रूरत और अहमियत की तरफ सबका ध्यान भी खींचा था.

असल में तहलका के रिपोर्टर अनिरुद्ध बहल और मैथ्यू सैमुअल खुद का परिचय रक्षा का साजो सामान बनाने वाली लंडन  की  कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में देते हुए मेजर जनरल आहलूवालिया से मुलाक़ात की थी . इस मुलाकात में हुई बातचीत चोरी छिपे रिकॉर्ड की गई थी . बाद में इसके आधार पर तैयार की गई इस कथित  रिपोर्ट में खुलासे के तौर पर बताया गया कि सैन्य अधिकारी ने रक्षा सौदा कराने के एवज में 10 लाख रुपये और ब्लू लेवल व्हिस्की की मांग की थी .यही नहीं रिपोर्ट यह भी कहती थी कि काम कराने के एडवांस के तौर  50 हज़ार रुपये भी लिए . जबकि मेजर जनरल अहलुवालिया का कहना था कि यह झूठ था और ऑडियो  वीडियो की  काट छांट  करके और उसमें गड़बड़ी करके बनाई गई अपनी रिपोर्ट थी. उनका कहना था कि वीडियो के अंश इस तरह से संपादित किये गए और उसमें आवाज़ ऐसे डाली गई जिससे तहलका अपनी कहानी को सही साबित कर सके .

सैनिक जीवन पर बट्टा लगा :
तहलका  ( tehelka) के इस कथित खुलासे के बाद  मेजर जनरल अहलूवालिया की इज्जत ही दांव पर नहीं लगी बल्कि एक सैन्य अधिकारी के तौर पर उनके करियर पर भी परेशानी के काले बादल मंडराने लगे थे. सेना ने इसे बेहद गम्भीरता से लेते हुए इस विषय पर कोर्ट ऑफ़ इनक्वयारी के आदेश दिए. इसके तहत जनरल अहलूवालिया जांच कमेटी के सामने  पेश होना पड़ा जो किसी भी सैनिक के प्रति अपमान की भावना पैदा करता है , उसकी  सार्वजनिक प्रतिष्ठा पर आंच आती है और सैनिक के तौर पर उसके चरित्र पर संदेह होने लगता है . हालांकि सैन्य जाँच में मेजर जनरल एम एस आहलुवालिया के आचरण को लेकर कुछ गलत साबित नहीं हो पाया था लेकिन सेना ने उनके रवैए पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए ‘ सीरियस डिसप्लेजर ‘ ज़रूर जारी किया था .