सीक्रेट बैलेट से पहली बार होंगे हिमाचल प्रदेश में पूर्व सैनिक लीग के चुनाव

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प्रतीकात्मक फोटो

हिमाचल प्रदेश के पूर्व सैनिकों की संस्था एक्स सर्विसमैन लीग ( हिमाचल प्रदेश) के चुनाव 17 दिसंबर को होंगे. यह पहला मौका होगा जब भूतपूर्व सैनिकों  की इस संस्था के चुनाव में सीक्रेट  बैलेट की प्रक्रिया अपनाई जाएगी. इससे पहले अब तक चुनाव स्थल पर उपस्थित डेलीगेट्स  हाथ उठाकर किसी उम्मीदवार के पक्ष में सहमति या वोट देते थे. बीते अक्टूबर में यह चुनाव इस मुद्दे समेत कुछ विवाद के कारण रद्द कर दिए गए थे. इसके बाद दिसंबर में फिर से चुनाव कराने की घोषणा की गई. यह चुनाव कांगडा ज़िले में धर्मशाला स्थित सैनिक रेस्ट हाउस में लीग के दफ्तर में होंगे.

हिमाचल प्रदेश के पूर्व सैनिकों की यह संस्था दिल्ली मुख्यालय स्थित भारतीय भूतपूर्व सैनिक संघ ( indian ex services league ) से संबद्ध है. लीग के अध्यक्ष ब्रिगेडियर ( रिटायर्ड) इंदर मोहन सिंह ने पुष्टि की है कि चुनाव कराने के लिए दो पर्यवेक्षक हिमाचल प्रदेश भेजे जाएंगे. उन्होंने बताया कि व्यवहारिक कारणों को देखते हुए पड़ोसी राज्य से पर्यवेक्षक भेजे जाते हैं लिहाज़ा जैसाकि पिछली बार पंजाब से पर्यवेक्षक गए थे, वैसे ही इस दफा भी भेजे जाएंगे.

बरसों से मेजर विजय सिंह मनकोटिया  एक्स सर्विसमेन लीग ( हिमाचल प्रदेश) के अध्यक्ष रहे हैं. इस बार वह चुनाव नहीं लड़ रहे. यूनाइटेड फ्रंट ऑफ़ एक्स सर्विसमेन (जेसीओ ओ आर ) के उपाध्यक्ष कैप्टन ( रिटायर्ड ) बालक राम शर्मा ने बताया कि इस बार अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए तीन उम्मीदवार मेजर जनरल डी  बी एस राणा , लेफ्टिनेंट कर्नल वाई एस राणा और कैप्टन करम  चंद धीमान मैदान में हैं . वहीँ सचिव पद के लिए कैप्टन कपूर गुलेरिया चुनाव लड़ेंगे.

पूर्व  सैनिकों की राज्य स्तरीय इस महत्वपूर्ण संस्था के चुनाव में  25 कमेटियों के भेजे हुए 7 – 7 डेलिगेट सदस्य हिस्सा लेंगे. पिछली दफा चुनाव 1 अक्टूबर 2023 को होने थे लेकिन विवाद होने के कारण पर्यवेक्षकों ने इन्हें टालने का निर्णय 30 सितंबर को यहां आने के बाद ले लिया था. चुनाव के लिए पहले 18 दिसंबर की तारीख तय की गई थी लेकिन हिमाचल प्रदेश विधान सभा के सत्र की तारीख को देखते हुए इसे एक दिन पहले यानि 17 दिसंबर कर दिया गया है.

अध्यक्ष और सचिव के चुने जाने के बाद वह निचले स्तर पर अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं और जिला स्तर पर कमेटियों का गठन किया जाता है . लेकिन पूर्व सैनिकों का एक वर्ग इस तरीके को सही नहीं मानता. उनका कहना है कि पहले निचले स्तर पर कमेटी या डेलिगेट्स चुने जाएं जो बाद में राज्य स्तर पर चुनाव के लिए प्रतिनिधि भेजें .