पाकिस्तानी पनडुब्बी ग़ाज़ी को समुद्र की गहराई में दफनाने वाले हीरो दुनिया से अलविदा

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वीर चक्र से सम्मानित लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह मलिक

भारतीय नौसेना के युद्ध के इतिहास में एक शानदार मौजूदगी दर्ज कराने वाले लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह ने 99 साल की उम्र इस दुनिया को अलविदा कह दिया. कुछ दिन से बीमार इस भारतीय नौसैनिक ने अपनी मातृभूमि हरियाणा में  अंतिम सांस ली. इंदर सिंह बस 12  महीने और जीते तो जिंदगी का शतक भी पूरा कर लेते . वह 99 साल के थे.

भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच 1971 में हुए घमासान के दौरान  जब जब भी समुद्र में हुई लड़ाई की चर्चा के जाएगी तब तब पाकिस्तान की पनडुब्बी ग़ाज़ी के डूबने की घटना का ज़िक्र होगा.  पाकिस्तान ने यह पनडुब्बी अमेरिका से माँगी थी और उसे इस पर बहुत फख्र  था . भारतीय नौसेना के गरूर रहे विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विक्रांत को नेस्तनाबूद करने के इरादे से पाकिस्तान ने इसे भारतीय समुद्री क्षेत्र में विशाखापट्टनम की तरफ भेजा था  लेकिन भारतीय नौसेना की समर नीति और  युद्धपोत आईएनएस राजपूत के अनुभवी कमांडर इंदर सिंह की  सूझबूझ और साहस के आगे वो नाकाम साबित हुई . यही नहीं पाकिस्तान पनडुब्बी ग़ाज़ी को अपने 90 से ज्यादा सैनिकों के साथ समुद्र की गहराइयों में हमेशा के लिए दफ़न होना पड़ा.

राष्ट्रपति वीवी गिरी ने लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह को मेडल लगाया

यह एक तरह के आत्मघाती ऑपरेशन को नाकाम करने के लिए की गई  जवाबी साहसपूर्ण जवाबी सैनिक कार्रवाई थी जो बेहद जोखिम होने के कारण किसी तरह से भी कम आत्मघाती नहीं कही जा सकती थी .  इसके  लिए लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह मलिक को वीर चक्र से सम्मानित किया गया था. राष्ट्रपति वी वी गिरी ने उनके सीने पर मेडल लगाया था .

आईएनएस राजपूत को कमांड करने वाले  लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह सोनीपत ज़िले की गोहाना तहसील के आंवली गांव के रहने वाले थे लेकिन वर्तमान में रोहतक की झंग कालोनी में रह रहे थे. वृद्धावस्था के फलस्वरूप रोग ग्रस्त होने के कारण वह घर पर ही थे. यहीं उनका ईलाज चल रहा था और इसलिए लोगों से मिलना जुलना भी बंद था.  सोमवार ( 9 अक्टूबर 2023) को उन्होंने अंतिम सांस ली. अगले दिन पूरे सैनिक सम्मान के साथ राम बाग़  शवदाह गृह में उनको पांच तत्व में विलीन किया गया .

अवकाश प्राप्ति के बाद भी सेवक : 

वीर चक्र से सम्मानित लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह  पूर्व सैनिक कल्याण संघ के पहले जिलाध्यक्ष और फिर हरियाणा राज्य इकाई के अध्यक्ष भी रहे .जब तक स्वस्थ रहे तब तक वह सैनिक कल्याण के काम में भी सक्रिय रहे. सेना में रहकर जहां देश सेवा तो अवकाश प्राप्ति के बाद भी सैनिकों और उनके परिवारों की सेवा के प्रति उनका संकल्प याद किया जाता है. इस सेवा के बदले में मिलने वाले  वेतन का मात्र एक रुपया वह अपने पास रखते थे और शेष राशि शहीद सैनिकों  की पत्नियों व परिवारों के कल्याणार्थ कोष में जमा करते थे.

यूं बने इंदर : 
कमांडर इंदर  सिंह किसान परिवार से संबंध रखते थे.  इनका जन्म किसान चौधरी जागे राम के बेटे रतिराम के घर पर 4 अक्टूबर 1924 को हुआ. कहा जाता है कि  इस दिन कई दिनों के बाद अचानक बारिश  हुई थी लिहाज़ा  परिवार ने इनका नाम वर्षा के देवता  इंद्र के नाम पर इंदर सिंह रख दिया. इंदर सिंह की शुरुआती  शिक्षा गांव में ही हुई. वह प्रतिभावान छात्र थे .  परीक्षा  में अच्छे अंक लाने के कारण  अध्यापक एवं परिजन उन्हें काफी पसंद किया करते थे.  खेलों में भी  उनकी दिलचस्पी थी .  आठवीं  पास करने के बाद इन्हें शेष  शिक्षा के लिए सोनीपत के जाट स्कूल में दाखिल कराया  गया. इंदर सिंह ने यहां से दसवीं पास की.

नौसेना में भर्ती : 
जून 1944 में जब दूसरा महायुद्ध अपने चरम  पर था तब  20 वर्षीय  नौजवान इंदर  सिंह रॉयल इंडियन नेवी ( royal indian navy )  में नाविक के रूप में भर्ती हो गए.  ट्रेनिंग के बाद इनकी  पूर्वी सेक्टर में तैनाती हुई जहां युद्ध में हिस्सा लिया.  15 अगस्त 1947 को भारत  की स्वतंत्रता की घोषणा के साथ ही रॉयल भारतीय नौसेना का नाम भारतीय नौसेना हो गया था .   प्रतिभावान और क्षमतावान इंदर सिंह ने  1957 में अधिकारी के तौर पर   कमीशन हासिल  किया.  1961 में गोवा मुक्ति ऑपरेशन में गोवा को मुक्त कराने में सक्रिय भूमिका निभाई.  1965 के भारत – पाकिस्तान  युद्ध में इंदर सिंह की तैनाती  सुरक्षा के लिए पूर्वी सेक्टर में रही.