आदिवासी इलाकों के युवकों के सीआरपीएफ में भर्ती होने से बौखलाए नक्सलियों का यह हथकंडा एक और चुनौती

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प्रतीकात्मक तस्वीर

नक्सली हिंसा से प्रभावित छत्तीसगढ़ में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल ( सीआरपीएफ – crpf) में भर्ती होने के कारण दो नौजवानों के परिवारों को मिली धमकी और फलस्वरूप परिवार वालों का अपना गांव तक छोड़ जाने की ताज़ा घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं . यह घटना सीआरपीएफ या यूं कहें कि शासन के लिए नई  चुनौती है या अपनी जड़ें कमज़ोर होते देख नक्सली नेताओं की बौखलाहट का नतीजा है, ये विश्लेषण का विषय है लेकिन फिलहाल यह बहुत से उन स्थानीय ( नक्सल प्रभाव वाले ) उन ग्रामीण  परिवारों के लिए चिंता का कारण ज़रूर है जिनके युवक पुलिस या सीआरपीएफ में भर्ती हो रहे हैं . उनके लिए भी जिनके बेटे पुलिस या सीआरपीएफ में भर्ती होने का इरादा रखते हैं .

यह घटना हाल ही में छत्तीसगढ़ में बीजापुर ज़िले के कुटरू थाना क्षेत्र के दरभा गांव की है. दोनों नौजवान कुंजाम परिवार से हैं और कुछ अरसा पहले ही दोनों सीआरपीएफ में भर्ती के लिए चुने गए थे. युवकों  की सीआरपीएफ में  ट्रेनिंग चलने की भनक  नक्सलवादियों को मिल  गई थी. नक्सली सोमवार को परिवार के एक एक सदस्य को अपने साथ इन्द्रावती नदी के पार अपने गढ़ में ले गए और उनको फ़ौरन गांव छोड़ जाने की धमकी दी. इसके बाद ययह  परिवार डर के मारे गांव छोड़ने पर मजबूर हुए. परिवार  के 11 सदस्य हैं जो फिलहाल अपने रिश्तेदारों के यहां दंतेवाड़ा में रहने को मजबूर हैं . इस मामले में किसी तरह की लिखित शिकायत या एफआईआर दर्ज होने  की पुष्टि नहीं हुई है अलबता पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों  ने इस तरह की घटना के बारे में सूचना मिलने की बात ज़रूर कही है .

प्रतीकात्मक तस्वीर

ताज़ा मुठभेड़ :
इस घटना के बाद बीजापुर के जंगलों में मंगलवार को हुई एक मुठभेड़ में 4 नक्सली मारे गए. ये मुठभेड़ तब हुई जब खबर मिली कि 40 -50 नक्सली वहां जंगल में मौजूद है . वहां सुरक्षा बलों का संयुक्त दल  भेजा गया था. नक्सलियों की तरफ से फायरिंग (naxal attack)  होने पर जवानों ने जवाबी कार्रवाई की तो नक्सली भाग खड़े हुए. मुठभेड़ वाली जगह  पर खून के धब्बे और शरीर घसीटे जाने के निशान पाए गए जिनसे अंदाजा लगाया जा रहा है कि तीन से चार नक्सली मारे गए होंगे .

नक्सली हिंसा के मामले :
मार्च 2023 में केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि बीते 12 साल में देश के नक्सल प्रभावी इलाकों ( naxal affected area ) में नक्सली हिंसा में 77 फीसदी की गिरावट आई है . उन्होंने ये भी कहा कि ऐसी हिंसा में मौत के  मामले भी 90 फीसदी घटे हैं . नक्सली प्रभाव वाले  इलाकों की संख्या 2022 में विभिन्न 45 जिलों के 176 के थाना क्षेत्रों तक रह गई है जबकि 2010 के आंकड़े बताते हैं कि तब 96 जिलों में 465 थानों के इलाके नक्सली हिंसा के प्रभाव वाले माने जाते थे.   केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री ने यह भी बताया कि 2010 में सुरक्षा बल के जवानों व नागरिकों को मिलाकर 1005 लोगों की जान गई थी जो नक्सल प्रभावित हिंसा के दौर में किसी भी वर्ष में हुआ सबसे बड़ा जानी नुक्सान था लेकिन बीते साल यानि 2022 में ये संख्या घट कर  98 पर पहुँच  गई.

उधर सीआरपीएफ प्रवक्ता  ने बृहस्पतिवार को बताया कि बीते साल यानि 2022 में  वाम हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में 40 माओवादी/नक्सली मारे गए थे. इस साल अब तक 16  मारे गए और 3 ने आत्मसमर्पण  किया .

आदिवासी युवकों की सीआरपीएफ में भर्ती :  
माओवादी/ नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास और रोज़गार एक बड़ी समस्या है. यहां जारी हिंसा इस स्थिति को और विकराल बनाती  रही है . इन हालात में सीआरपीएफ  ने 2016 में  यहां के कुछ युवकों को  विशेष तौर से भर्ती करने के लिए  बस्तरिया बटालियन ( bastaria battalion) का गठन किया था .  इसके पीछे दो मकसद रहे  . पहला तो यही कि बेरोजगार युवकों को सम्मानपूर्वक रोज़गार मिलेगा और वह  शासन व मुख्यधारा से जुड सकेंगे. दूसरा यह कि इलाके की भौगोलिक स्थिति . संस्कृति , भाषा व तौर तरीकों  से वाकिफ ये जवान प्रभावी तरीके से ऑपरेशंस को अंजाम देने में लाज़मी तौर पर सहायक होंगे. इसका असर दिखना भी शुरू हुआ. लेकिन समस्या ये भी आई कि  बीजापुर , दंतेवाडा और सुकमा के अंदरूनी  नक्सल  प्रभाव वाले इलाकों  बहुत से नौजवान 12वीं कक्षा तो क्या 10वीं  या उससे ऊपर की पढ़ाई तक नहीं कर पाते हैं जबकि सीआरपीएफ में भर्ती होने वाले यहां के  युवकों के लिए ये न्यूनतम आवश्यकता रखी गई है.

भर्ती में छूट की योजना :
इन हालात में उन युवकों को भी सीआरपीएफ में भर्ती ( recruitment in crpf )  करने के लिए जून 2022 में केंद्र सरकार की केबिनेट ने गृह मंत्रालय का एक प्रस्ताव मंज़ूर किया जिसमें प्रावधान किया गया नक्सल प्रभावी आदिवासी इलाकों के ऐसे युवकों को भी सीआरपीएफ में भर्ती करने का मौक़ा दिया जाए जो  8 वीं पास  हैं लेकिन इसीके साथ एक शर्त जोड़ी गई कि उन युवकों की सीआरपीएफ में  सेवा तब स्थाई की जाएगी जब वो दो साल में 10 वीं पास कर लेंगे . प्रावधान ये भी किया गया कि ऐसे युवकों को पढ़ाई कराने व परीक्षा दिलाने आदि में सीआरपीएफ ( crpf ) मदद करेगी.  इस संबंध में विज्ञापन दिया गया और प्रचार किया गया तो आदिवासी इलाकों से कई युवाओं ने भर्ती होने में दिलचस्पी दिखाई. उस वक्त भी उनमें से कई नौजवानों को नक्सलियों ने डराया था. बावजूद इसके 400 युवकों का एक बैच तैयार हो गया था जिसे ट्रेनिंग दी जा रही है .

नई चुनौती :
उपरोक्त तमाम बदलाव के बीच अब ताज़ा हालात दोनों ही पक्षों के लिए चुनौतीपूर्ण हैं. सीआरपीएफ के लिए महत्वपूर्ण है  उन जवानों  का मनोबल गिरने से रोकना  जिनके परिवार नक्सली प्रभाव वाले क्षेत्रों में रह रहे हैं वहीँ सरकार की ज़िम्मेदारी भी उन परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की है. अगर जवानों के परिवारों के  डर  के कारण पलायन करने की  ऐसी घटनाएं ज्यादा होती  हैं या  ऐसे नौजवान सीआरपीएफ की सेवा छोड़ देते हैं तो यह योजना को झटका होगा .  वहीं ये हालात इस बात की तरफ भी इशारा करते हैं कि नक्सली नेताओं को अपनी ज़मीन खिसकती नज़र आ रही है और वे स्थानीय लोगों को खुद से जोड़े रखने के लिए बौखलाहट में ऐसे कदम उठा रहे हैं .