द इंडियन एक्सप्रेस की खबर में इस केस की विस्तार से जानकारी दी गई गई है. इसके मुताबिक , उपरोक्त फैसला दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की बेंच ने 14 फरवरी को दिया था . बेंच ने एएफटी के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें महिला अधिकारी को उसकी सेवा के दौरान हुई विकलांगता को मान्यता दी गई थी और सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया था कि वह सेना में शामिल होने से पहले बीमारी से पीड़ित थी.
हाई कोर्ट ने कहा ,” “हमने पाया कि विवादित आदेश विद्वान न्यायाधिकरण की तरफ से 17 अगस्त 2023 को पारित किया गया था. इसका अनुपालन करने के बजाय, याचिकाकर्ताओं ने एक साल से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद इसे चुनौती देने का विकल्प चुना है, जिसने प्रतिवादी को और अधिक पीड़ा और दर्द दिया है . इसलिए, याचिकाकर्ता प्रतिवादी को 15,000 रुपये का जुर्माना अदा करेंगे .”
कैप्टन अनामिका दत्ता ( captain anamika dutta)1996 में शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारी के तौर पर सेना में शामिल हुईं थीं. उन्हें 24 सितंबर, 2002 को पीठ के निचले हिस्से में दर्द के कारण समय से पहले सेवा से मुक्त कर दिया गया था. उन्हें निचली मेडिकल श्रेणी ( low medical category ) में रखा गया था . महिला अधिकारी ने एएफटी के सामने दलील दी कि, निशानेबाज़ी के कौशल के कारण, उन्हें सेना की मार्कस्मैनशिप यूनिट में शामिल किया गया था. अपने प्रशिक्षण के दौरान, उन्होंने खुद को घोर परिश्रम से इतना थका दिया कि वह पीठ दर्द से पीड़ित हो गईं. हालांकि, अप्रैल 2001 से, अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र लेह में 3 इन्फैंट्री डिवीजन ऑर्डिनेंस (डीओयू) में उनकी पोस्टिंग के बाद ही उन्हें गंभीर पीठ दर्द का अहसास हुआ. अत्यधिक प्रतिकूल सेवा स्थितियों ने उनके स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित किया, जिससे उनकी पीठ पर असर पड़ा. उन्हें लेह और चंडीगढ़ के सैन्य अस्पतालों में भर्ती कराया गया था. अपनी चिकित्सा स्थिति के कारण उन्होंने खुद ही सेवा से मुक्त होने का आवेदन किया था .
सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि एएफटी (aft ) ने महिला कैप्टन के पक्ष में त्रुटिपूर्ण फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि रिलीज़ किए जाते वक्त “पीठ के निचले हिस्से में जो दर्द” और “फाइब्रो फैस्कीटिस” (low backache and fibro fasciitis) था, वह सेवा की परिस्थितियों के कारण नहीं हुआ था या उससे बढ़ा नहीं था.
सरकार ने दलील दी कि रिलीज मेडिकल बोर्ड (आरएमबी) की कार्यवाही में विशेष रूप से दर्ज किया गया था कि महिला अधिकारी सेवा में शामिल होने से पहले भी पीठ के निचले हिस्से में दर्द से पीड़ित थी. हालांकि, महिला अधिकारी के वकील ने दलील दी कि इस दावे को साबित करने वाला कोई भी दस्तावेजी सबूत नहीं है. और यह सिर्फ आरएमबी कार्यवाही में एक स्व-शामिल प्रविष्टि थी.
वकील ने कहा कि महिला अधिकारी 1996 में सेवा में आई थी और 2002 में उन्हें सेवामुक्त किया गया. पुराने मेडिकल बोर्ड की कार्यवाही में, उसके “पीठ के निचले हिस्से में दर्द” और “फाइब्रो फैस्कीटिस” से पीड़ित होने का कोई ज़िक्र नहीं था .
उच्च न्यायालय ने कहा कि आरएमबी (rmb) के निष्कर्ष का आधार न तो मेडिकल बोर्ड ने दिया था और न ही सरकार की तरफ से पेश किया गया था . अदालत ने अपने आदेश में कहा, “किसी अधिकारी को सेवा में शामिल किए जाते वक्त , उसे कठोर चिकित्सा जांच से गुजरना पड़ता है और जब अधिकारी पूरी तरह से स्वस्थ पाया जाता है, तभी उसे सेवा में शामिल किया जाता है. धर्मवीर सिंह (सुप्रा) केस में , सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, यदि भर्ती के समय अधिकारी की पूर्व चिकित्सा स्थिति का उल्लेख नहीं किया जाता है, तो यह अनुमान लगाया जाना चाहिए कि विकलांगता भर्ती के बाद हुई है. इसके बाद सिर्फ ऐ सवाल यहीं रह जाता है कि क्या विकलांगता सेवा परिस्थितियों के कारण या उनके कारण बढ़ी हुई कहा जा सकता है.”
उच्च न्यायालय की पीठ ने याचिकाकर्ता की विकलांगता के प्रतिशत को 50 प्रतिशत तक सीमित करने के निर्णय को भी बरकरार रखा. अदालत ने कहा , “आवेदक के दस्तावेजों के विस्तृत विश्लेषण से पता चलता है कि आवेदक एक सक्रिय शूटर था और अप्रैल 2001 से मई 2002 तक 3 डीओयू, लेह में तैनात था. 2002 में, आवेदक को कमर दर्द और फाइब्रो फैस्कीटिस (fibro fasciitis) के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिसके कारण उसी वर्ष उसे छुट्टी दे दी गई थी. आवेदक के आरएमबी रिकॉर्ड में विकलांगता का प्रतिशत 11-14 प्रतिशत के बीच दिखाया गया है और वर्ष 2001 में लेह में इसकी शुरुआत दर्ज की गई है. चूंकि विकलांगता का पता सेवा में प्रवेश के समय नहीं चला था और चूंकि इसकी शुरुआत लेह में दर्ज की गई थी, इसलिए यह उपर्युक्त नियम के प्रावधान को आकर्षित करेगा, जिससे आवेदक की विकलांगता सेवा के कारण और उससे बढ़ गई और उसे पेंशन के विकलांगता तत्व का हकदार बनाया गया,”