भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने आज रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) 2020 के मसौदे का अनावरण किया जिसका मकसद रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए स्वदेशी विनिर्माण को ज्यादा बढ़ाना और उसमें लगने वाले समय को कम करना है. ये और इस तरह के कई और अलग किस्म के तौर तरीके अगस्त 2019 में स्थापित, रक्षा मंत्रालय के अधिग्रहण महानिदेशक की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति के तैयार किए गए ड्राफ्ट का हिस्सा थे.
इस मौके पर रक्षामंत्री ने कहा, “हमारा मकसद भारत को आत्मनिर्भर और वैश्विक विनिर्माण का केंद्र बनाना है. स्वदेशी रक्षा उत्पादन के लिए इको-सिस्टम विकसित करने के लिए एमएसएमई समेत निजी उद्योगों को सशक्त बनाने के लिए सरकार लगातार नीतियां बनाने की कोशिश में लगी है. भारत का रक्षा उद्योग एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसमें विकास की बहुत भारी संभावना है. इसे भारत की आर्थिक तरक्की और हमारी वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को साकार करने के लिए एक उत्प्रेरक बनने की ज़रूरत है.”
राजनाथ सिंह ने कहना था कि समय आ चुका है कि खरीदे गए उपकरणों और प्लेटफार्मों के जीवन चक्र समर्थन को परिष्कृत किया जाए और प्रक्रियाओं को और आसान बनाते हुए और समग्र खरीद में लगने वाले समय को घटाते हुए रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया तेज की जाए.
रक्षा मंत्रालय से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक़ नई रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) में प्रस्तावित प्रमुख बदलावों में खरीद की विभिन्न श्रेणियों में स्वदेशी सामग्री को तकरीबन 10 फीसदी तक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है. इसके मुताबिक़ पहली बार स्वदेशी सामग्री के सत्यापन के लिए एक आसान और यथार्थवादी पद्धति को शामिल किया गया है. कच्चे माल, अलॉय यानी विशेष मिश्रित धातुओं और सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया गया है.
कुल अनुबंध मूल्य की लागत के आधार पर न्यूनतम 50 फीसदी स्वदेशी सामान के साथ नई श्रेणी खरीद (वैश्विक – भारत में निर्माण) को लाया गया है. इसमें केवल न्यूनतम आवश्यक सामग्री को ही विदेश से खरीदा जाएगा जबकि शेष मात्रा का निर्माण भारत में किया जाएगा. इसके साथ ही आवधिक किराये के भुगतान के साथ विशाल प्रारंभिक पूंजीगत व्यय को प्रतिस्थापित करने के लिए मौजूदा ‘बाय’ ( Buy – खरीद) और ‘मेक’ ( Make -निर्माण) श्रेणियों के साथ साथ अधिग्रहण के लिए लीज़िंग यानी पट्टे को एक नई श्रेणी के रूप में पेश किया गया है. लीज़िंग की अनुमति दो श्रेणियों के तहत दी जाती है, यानि लीज़ (भारतीय) जहां भारतीय इकाई कमतर है और संपत्ति की मालिक है, और दूसरी, लीज़ (वैश्विक) जहां वैश्विक इकाई कमतर है. ये उन सैन्य उपकरणों के लिए उपयोगी साबित होगा जो वास्तविक युद्ध में इस्तेमाल नहीं किए जाते हैं जैसे कि परिवहन बेड़े, ट्रेनर, सिम्युलेटर आदि.
विज्ञप्ति के मुताबिक़ सॉफ्टवेयर और सिस्टम संबंधित परियोजनाओं की खरीद के लिए एक नया अध्याय शुरू किया गया है क्योंकि ऐसी परियोजनाओं में प्रौद्योगिकी में तेजी से बदलाव के कारण अप्रचलन बहुत तेज होता है और प्रौद्योगिकी के साथ गति बनाए रखने के लिए खरीद प्रक्रिया में लचीलापन आवश्यक है.
आवश्यकता की स्वीकृति (एक्सेप्टेंस ऑफ नेसेसिटी) के समझौते की प्रक्रिया को कम करके खरीद के लिए समय सीमाओं को घटाया गया है जो 500 करोड़ रुपये से कम की परियोजनाओं और दोहराए जाने वाले ऑर्डरों के लिए एक चरण की होगी लेकिन परीक्षण पद्धति और गुणवत्ता आश्वासन योजना आरएफपी का हिस्सा बनेंगे. फील्ड इवैल्यूएशन ट्रायल (Field Trial) विशेष ट्रायल विंग द्वारा अंजाम दी जाएंगी और इन ट्रायल का मकसद छोटी कमियों का उन्मूलन करने के बजाय प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना होगा.
इसमें स्टार्ट-अप और इनोवेटर्स और डीआरडीओ की अनुसंधान परियोजनाओं समेत भारत में निर्माताओं से खरीद के सिलसिले में ’मेक’ (निर्माण) के लिए एक व्यापक अध्याय प्रस्तुत किया गया है.
अभी चलन वाली समकालीन अवधारणाओं को शामिल करने के लिए उत्पाद समर्थन के दायरे और विकल्पों को बढ़ाया गया है, जैसे कि प्रदर्शन आधारित लॉजिस्टिक्स (पीबीएल PBL ), जीवन चक्र समर्थन अनुबंध (एलसीएससी – LCSC), व्यापक रखरखाव अनुबंध (सीएमसी – CMC) आदि ताकि उपकरण के लिए जीवन चक्र समर्थन का अनुकूलन किया जा सके. पूंजी अधिग्रहण अनुबंध में सामान्य रूप से वारंटी अवधि के पांच साल बाद भी समर्थन शामिल होगा.
डीपीपी 2020 का मसौदा निजी उद्योग समेत सभी हितधारकों की सिफारिशों के आधार पर महानिदेशक (अधिग्रहण) की अध्यक्षता वाली समीक्षा समिति दने तैयार किया है. विभिन्न विषय विशेषज्ञों की उस क्षेत्र की विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिए समीक्षा समिति की सहायता करने हेतु लेफ्टिनेंट जनरल या समकक्ष अधिकारियों की अध्यक्षता में आठ उप-समितियों का गठन भी किया गया था. ये मसौदा अब सभी हितधारकों से आगे के सुझाव लेने के लिए रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट (https://mod.gov.in/dod/defence-procurement-procedure) पर 17 अप्रैल 2020 तक के लिए अपलोड कर दिया गया है.
मंत्रालय के प्रवक्ता का कहना है कि पहली रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) को 2002 में लाया गया था और तब से इसे कई बार बदलाव किया गया है ताकि बढ़ते घरेलू उद्योग को रफ्तार दी जा सके. गति प्रदान की जा सके और रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके.
रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार और महानिदेशक (अधिग्रहण) अपूर्व चंद्रा ने भी डीपीपी मसौदे की प्रमुख विशेषताओं के बारे में एक बैठक की. रक्षा राज्यमंत्री श्रीपद नाइक, रक्षा उत्पादन सचिव राज कुमार और वो अन्य वरिष्ठ प्रशासकीय और सैन्य अधिकारी भी यहाँ मौजूद थे जो डीपीपी 2020 मसौदा तैयार करने वाली उप-समितियों का हिस्सा थे.