दो साल पहले भारतीय सेना की पाकिस्तानी सीमा में सर्जिकल स्ट्राइक पर, आज चंडीगढ़ में मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल के उद्घाटन पर हुई जबरदस्त बहस के दौरान ऐसे कई उतार चढ़ाव आये जब इस सैनिक कार्रवाई पर तरह तरह के सवाल खड़े किये गये. केंद्र में वर्तमान सरकार के इससे सियासी लाभ लेने के पक्ष विपक्ष में दलीलें तो दी गईं साथ ही इस कार्रवाई को सर्जिकल स्ट्राइक कहने पर जबरदस्त आपत्ति तक दर्ज की गई. भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की इस बहस का ज्यादा महत्व इसलिए भी है क्यूंकि बहस में हिस्सा लेने वाले विशेषज्ञों में, इस कार्रवाई का नेतृत्व करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हूडा तो थे ही वहां रिटायर्ड सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक की मौजूदगी भी थी.
बहस के सत्र और इसके बाद सवाल जवाब के दौरान लगभग सभी अधिकारियों के रुख से एक बात तो स्पष्ट हो रही थी कि दो साल पहले पठानकोट और उड़ी हमले के बाद सितम्बर 2016 में भारतीय सेना की पाकिस्तान में की गई जवाबी कार्रवाई को सर्जिकल स्ट्राइक किसी भी तरह से कहना सही नहीं है क्यूंकि ये उस स्तर की और उतना प्रभाव छोड़ने वाली कार्रवाई नहीं थी. अधिकारियों के बीच इस बात पर सहमति बनती दिख रही थी कि इस कार्रवाई को भारतीय सेना का पाकिस्तान में छापा (रेड – Raid) कहा जाना चाहिए. सेना में अहम ओहदों पर रहे अनुभवी अधिकारियों का मानना है कि सर्जिकल स्ट्राइक के तौर पर उस कार्रवाई को पारिभाषित व प्रचारित करके हम आने वाली सैनिक पीढ़ी को गलत जानकारी देंगे.
सिटी ब्यूटीफुल में सुखना झील के मुहाने पर लेक क्लब में गुलाबी सर्दी के बीच चल रहे मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल 2018 में गरमागरम बहस में लेफ्टिनेंट जनरल हूडा ने कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक की कार्रवाई का प्रचार करना सेना और सरकार दोनों के लिये ज़रूरी था. उनकी दलील थी कि इससे पहले भारत में आतंकी और पाकिस्तानी सेना की शह पर की गई कार्रवाइयों और उसके मीडिया में जबरदस्त तरीके से आने की वजह से सैनिकों का मनोबल पर असर पड़ रहा था वहीं सरकार पर भी सवाल खड़े किये जा रहे थे.
भारतीय सेना की उत्तरी कमान के कोर कमांडर रहे लेफ्टिनेंट जनरल हूडा ने कहा कि लिहाज़ा ऐसे माहौल में वैसी कार्रवाई करना और साथ ही जोर-शोर से उसका प्रचार भी एक ज़रूरत थी. हालाँकि उन्होंने ये भी कहा कि इस कार्रवाई की कामयाबी शुरू में मनाना तो ठीक है लेकिन इसे देर तक जारी नहीं रखना चाहिए था. उनका इशारा सम्भवत: हाल ही में मनाये गये पराक्रम दिवस व उसके उत्सव की तरफ था. हालाँकि एक सवाल के जवाब में जनरल हूडा ने ये भी कहा कि वह पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि सर्जिकल स्ट्राइक जिस मकसद से की गई, भारत ने उसे पूरी तरह से हासिल कर लिया !
‘सीमा पार के ऑपरेशंस’ विषय पर बहस के दौरान रक्षा मामलों के जाने-माने कमेन्टेटर कर्नल अजय शुक्ला ने सैनिक उपलब्धियों के सियासी इस्तेमाल पर चेतने की ज़रूरत बतायी. उन्होंने कहा कि सैन्य ऑपरेशंस की गरिमा बना के रखनी ज़रूरी है. कर्नल शुक्ला का कहना था कि प्रतिक्रियास्वरूप किये जाने वाले ऑपरेशंस की पब्लिसिटी से एक तरह से भारतीय राजनीतिक सिस्टम के लिए खतरनाक मापदंड भी बनते हैं क्यूंकि भविष्य में ऐसे आतंकवादी हमले की प्रतिक्रिया पर इस तरह की कार्रवाई के सिलसिले को जारी रखना बेहद मुश्किल होगा. कर्नल शुक्ला मानते हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाई पाकिस्तान की आतंकवाद वाली नीति में बदलाव लाने वाली हो, ऐसा लगता नहीं है.
लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एनएस बराड़ ने 1981 में इजरायल के इराकी परमाणु ठिकानों पर किये गये हवाई हमले की असरदार कार्रवाई का ज़िक्र करते हुए कहा कि दुश्मन पर कार्रवाई ऐसी होनी चाहिए कि दुश्मन फिर से वैसा करने की लम्बे समय तक न सोच सके. जनरल एनएस बराड़ ने सियासतदां आकाओं को ऐसे रोमांच से दूर रहने को कहा. उन्होंने सवालिया अंदाज़ में कहा कि स्ट्राइक के दौरान होने वाले जानी नुकसान की ज़िम्मेदारी क्या सियासी रहनुमा लेते?