चंडीगढ़ में शुक्रवार को शुरू हुए दो दिवसीय मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल (military lit festival) का पहला दिन सैन्य और सुरक्षा विषयों से सम्बन्धित किताबों के विमोचन व इस दौरान यहां हुई चर्चाओं के नाम रहा. दो साल के अंतराल के बाद मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल शुरू तो हो गया लेकिन इस बार न तो उतनी रौनक दिखी और न ही इसकी वो विशालता जो शुरुआती तीन साल में परिलक्षित होती रही. हां, बच्चों और किशोरों के लिए, यहां प्रदर्शन के लिए रखा जंगी साजो सामान आकर्षण का केंद्र बना रहा. विभिन्न तरह की बंदूकें, तोप और टैंक उन्हें आकर्षित कर रहे थे. सेना ने बच्चों को इस साजो सामान को करीब से देखने, समझने और महसूस करने की छूट दे रखी थी. ये न सिर्फ बच्चों के लिए ज्ञानवर्धन का बल्कि सेना में उनकी दिलचस्पी बनाने अच्छा तरीका भी है.
पांच साल के सफर में इस सैन्य आयोजन ने लोकप्रियता का एक मुकाम हासिल कर लिया है लेकिन कोविड 19 संक्रमण के कारण 2019 और 2020 में इसका आयोजन नहीं हो सका. दो साल के बाद इस बार जब यहां शुरू हुआ तो उम्मीद की जा रही थी कि पहले से ज्यादा बेहतर और जोश खरोश के साथ इसका आयोजन होगा लेकिन हुआ इसका उलटा. इस बार मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल में न सिर्फ कार्यक्रमों की संख्या, पहले के मुकाबले, कम हुई वहीँ फेस्टिवल की अवधि भी तीन से घटाकर दो दिन कर दी गई. भारतीय सेना की पश्चिमी कमांड, पंजाब सरकार और चण्डीगढ़ प्रशासन के साझे इस आयोजन पर सरकारी ‘कॉस्ट कटिंग’ को ज़िम्मेदार माना जा रहा है वहीं सरकारी व राजनीतिक स्तर पर इच्छा शक्ति की कमी को इसके लिए ज़िम्मेदार कहा जा सकता है.
2017 में पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस सरकार के ज़माने में इस शानदार फौजी आयोजन की शुरुआत हुई थी. खुद सैनिक रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जहां इस अनूठे आयोजन की शुरुआत की और वहीं तत्कालीन राज्यपाल वीपीएस बदनोर ने भीं इसमें अपने कार्यकाल में दिलचस्पी ली थी जोकि चंडीगढ़ के प्रशासक भी थे. ऐसे में अफसरशाही और प्रायोजकों की दिलचस्पी और जोश भी इस आयोजन में बना रहा था. इस बार जहां पंजाब में भगवंत सिंह मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार है, वहीँ कांग्रेस का दामन त्याग भारतीय जनता पार्टी के खेमे में गए कैप्टन अमरिंदर सिंह भी आयोजन से दूर दिखे. हालांकि मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन करने वाली टीम वही है जो लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) टीएस शेरगिल के नेतृत्व में काम कर रही है. कॉस्ट कटिंग और प्रायोजकों की कम दिलचस्पी की बात तो जनरल शेरगिल भी स्वीकार करते हैं.
जगह तो वही पुरानी थी. चंडीगढ़ की शान मानी जाने वाली लोकप्रिय सुखना लेक के मुहाने बना लेक क्लब और फेस्टिवल का स्टाइल भी फौजी शान से भरपूर था लेकिन दर्शक कम रहे. हालत ये थी कि दोपहर 12 बजे तक यहां पूरे स्टाल भी नहीं लगे हुए थे. हालांकि फेस्टिवल के आयोजन में शुरू से हिस्सा लेते रहे कुछ लोगों का कहना था कि बगल में सुखना लेक पर चल रहा चंडीगढ़ कार्निवल भी इसके लिए ज़िम्मेदार है जिसमें सेलिब्रिटीज़ भी शिरकत कर रहीं है. उनको लगता है कि मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल देखने के लिए आने वाले लोग कार्निवल का रुख कर लेते हैं.
बहरहाल कुछ पुस्तकों के विमोचन और उनके विषयों पर चर्चा मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल के पहले दिन हुई. पश्चिमी कमांड के जनरल ऑफिसर इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल नव कुमार खंडूरी, मेजर जनरल संदीप सिंह ने फेस्टिवल परिसर में हो रही तमाम गतिविधियों को देखा. उस वक्त तक भी काफी स्टाल खाली पड़े हुए थे. हालांकि बहुत से लोगों के लिए ये पहला ऐसा मौका था जब उन्होंने युद्धक सामग्री को इतने नज़दीक से देखा या छू कर महसूस किया लेकिन बहुत सारे ऐसे थे जिनको साजो सामान के बारे में जानने के बजाय उसके साथ फोटो खिंचवाने में ज्यादा दिलचस्पी थी. सेना और युद्ध के विषय पर लगी कला प्रदर्शनी भी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी दिखी.
चण्डीगढ़ के लेक क्लब में चल रहे मिलिटरी लिटरेचर फेस्टिवल के परिसर को मेले का रूप दिया गया है. यहां खाने पीने के सामान के अलावा पंजाब सरकार के विभिन्न उपक्रमों, स्वयं सहायता समूहों, शैक्षणिक संस्थानों के स्टाल हैं लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ चितकारा यूनिवर्सिटी के उन स्टाल पर दिखाई दी जहां खाने पीने के सामान की बिक्री हो रही थी. कई बुक स्टाल लगे भी नहीं थे. निहंग पोशाक में आए बच्चों व किशोरों ने अपने कौशल के प्रदर्शन करते हुए ‘गतका’ खेला.