इस घर में ड्राइंग रूम के बगल वाला सबसे बड़े कमरा मंदिर की तरह पवित्र बना हुआ है. घर का कोई सदस्य हो या कोई बाहर से आए, हर कोई इस कमरे में जाने से पहले उसी तरह जूते चप्पल बाहर उतार देता है जैसे किसी भी पूजा स्थल में प्रवेश से पहले करते हैं. लेकिन कमरे के भीतर देवी देवताओं की तस्वीर नहीं है. यहां तस्वीरें और यादें हैं भारतीय सेना के उस जांबाज़ कैप्टन तुषार महाजन की जो भारतीय इतिहास के वीर शिवाजी, राणा प्रताप जैसे नायकों की कहानियां पढ़ते पढ़ते बड़ा हुआ लेकिन भरी जवानी में ही अपने आदर्श भगत सिंह की तरह देश के लिए कुरबान हो गया. आतंकवादियों से मुकाबला करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान करने वाले तुषार महाजन को हिम्मत और दिलेरी के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था. कैप्टन तुषार सेना की सबसे तेज़ तर्रार और घातक मानी जाने वाली यूनिट स्पेशल फोर्सेस (9 पैरा) के कमांडो थे.
जम्मू कश्मीर ( jammu kashmir ) के शहर उधमपुर में जन्मे और पले बढ़े तुषार महाजन को इस दुनिया को अलविदा कहे 6 बरस बीत चुके हैं. उसके कारनामों पर परिवार ही नहीं पूरे शहर को नाज़ है. ‘सड़क से सरहद तक’ #SadakSeSarhadTak अभियान पर निकली रक्षक न्यूज़ की टीम से बातचीत में तुषार के पिता देव राज गुप्ता कहते हैं कि अब हमारे परिवार को तो बच्चा बच्चा तुषार के कारण पहचानता है. परिवार को मिले इस मान सम्मान के लिए वे आभार भी प्रकट करते हैं और फख्र भी महसूस करते हैं लेकिन जिगर के टुकड़े की हमेशा के लिए असमय हुई जुदाई की तकलीफ तो इससे कतई कम नहीं होती. ये तकलीफ तुषार के पिता से ज्यादा मां आशा गुप्ता के चेहरे पर दिखाई देती है. मां तो आखिर मां ही होती है. ऐसे मां बाप की तकलीफ वही समझ सकता है जो उनकी तरह के दर्द से गुज़रा हो. जवान बेटे को खोने वाले माता पिता से बात करना आसान नहीं होता. साल बेशक 6 बीत चुके हों लेकिन वो सदमा हमेशा उनके बीच गहरे में घर किये रहता है. ऐसी स्थिति में जब मां – बाप को जब उनके सवालों के जवाब नहीं मिलते तो हालात अफ़सोसनाक होते हैं जो किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की तकलीफ बढ़ाते हैं.
ऐसे ही सवालों में शुमार हैं कैप्टन तुषार की मृत्यु और पम्पोर में आतंकरोधी उस ऑपरेशन से जुड़े कुछ सवाल जो फरवरी 2016 में जम्मू कश्मीर हाईवे के किनारे बहुमंजिला भवन इंटरप्र्योनरशिप डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट बिल्डिंग (EDI Building ) में किया गया था. या तो सेना के वरिष्ठ अफसर उनको जवाब नहीं दे सके या श्री गुप्ता उनके तौर तरीके समझ नहीं सके. बहरहाल श्री गुप्ता को लगता है कि उस ऑपरेशन में किसी और को भेजा जाना था जो नज़दीक था लेकिन ऍन वक्त पर तुषार को बुला कर भेजा गया जबकि वो दूर था. ये निर्णय आनन फानन में क्यों लिया गया, इसका उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं मिला है. उनका ये भी पूछना था कि जब बिल्डिंग से नागरिकों को सुरक्षित निकाला जा चुका था और बिल्डिंग की घेराबंदी कर ली गई थी तो उसके भीतर सेना को भेजने की क्या जल्दबाज़ी थी ? वैसे इस ऑपरेशन की खामियों को लेकर उन दिनों में भी कुछ विशेषज्ञों ने मीडिया के जरिये सवाल किये थे. दो दिन चले इस ऑपरेशन में पहला एक्शन पैरा 10 के कमांडों ने किया था जिसमें शुरू में ही कैप्टन पवन आतंकवादियों के हमले का शिकार हो गए थे. कहा जाता है कि 10 पैरा के कमांडर ने कार्रवाई से पहले पूरी तैयारी के लिए और वक्त मांगा था लेकिन सेना के वरिष्ठ नेतृत्व ने ऑपरेशन फौरन करने को कहा. एक सवाल ये भी उठा था कि बिल्डिंग में कमांडो टुकड़ी को ज़मीन के बजाय हेलिकॉप्टर के ज़रिये छत पर लैंड करवाया जाना चाहिए था, ऐसा क्यों नहीं हुआ.
ये है ज्यादा अफ़सोस की बात :
पेशे से शिक्षक रहे देव राज गुप्ता ने अफसोसनाक और अजीबो गरीब एक बात और बताई. उनका कहना था कि सरकार ने उधमपुर रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर कैप्टन तुषार महाजन के नाम रखने का ऐलान किया था लेकिन ये वादा भी पूरा नहीं किया. हैरानी की बात है कि इस निर्णय से सहमत होने के बावजूद सरकार आगे कार्यवाही क्यों नहीं कर रही. श्री गुप्ता इस मामले को लेकर मनोज सिन्हा से पहले केन्द्रशासित क्षेत्र जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल सत्यपाल मलिक से मिले भी थे. उधमपुर के डीसी की तरफ से इस बाबत लिखकर गृह मंत्रालय के ज़रिये रेलवे को 2017 में भेजा भी जा चुका है. हालांकि तुषार महाजन की वीरता और बलिदान को हमेशा लोगों की नज़रों के सामने कायम रखने के लिए उधमपुर के एक मुख्य तिराहे पर 21 फरवरी 2020 शहीद की प्रतिमा ज़रूर लगाई गई थी. ये कैप्टन तुषार महाजन की चौथी बरसी थी. ध्यान रखने की बात है कि ऐतिहासिक उधमपुर भारतीय सेना की उत्तरी कमान के लिए भी अपनी पहचान रखता है.
देवराज गुप्ता और उनकी पत्नी आशा गुप्ता जब रक्षक न्यूज़ के साथ तुषार की बातें साझा कर रहे थे तब सेना के एक युवा अधिकारी भी वहां आ गए. ये एक शिष्टाचार भेंट भी थी और अपने दिवंगत वरिष्ठ साथी के परिवार के प्रति संवेदना, आत्मीयता और सम्मान प्रकट करने का तरीका भी था. इस अधिकारी के बारे में न तो ये परिवार जानता था और न ही उनको कोई काम था. वर्दी और सैन्य अनुशासन में बंधा ये नौजवान अधिकारी भी तमाम बातें सुनता ही रहा. कहने के लिए उसके पास शायद कुछ था लेकिन इस मुद्दे पर टिप्पणी न करना उसकी मजबूरी थी. लेकिन अच्छी बात ये है कि सेना में भाईचारा और अपनी पलटन से लगाव किसी भी रिश्ते से गहरा ही होता है. 6 साल पहले शहीद हुए तुषार महाजन को ये अधिकारी जानता तक नहीं था. बस उधमपुर से निकल रहा था तो इस अधिकारी को लगा कि उसे सेना के हीरो शौर्य चक्र से सम्मानित कैप्टन तुषार महाजन के परिवार से मिलना चाहिए. श्री गुप्ता सेना की इस परम्परा की तारीफ़ करते हुए कहते हैं कि इससे सम्बल तो मिलता ही है.
बेटे की याद में :
उधमपुर के इस परिवार ने अपने बेटे की यादों को समर्पित एक संस्था के ज़रिये ज़रूरतमंदों की मदद करने का सिलसिला भी शुरू किया है जिससे उनको ज़हनी तौर पर बेहद सकून मिलता है. श्री गुप्ता बताते हैं कि ऐसी ही एक उस अभागी लड़की की मदद करने का उनको मौका मिला जिसे दिखाई नहीं देता था. बरसों से दृष्टिविहीन इस लड़की के अपनों ने लड़की को किस्मत के भरोसे छोड़ दिया था लेकिन इस संस्था के संपर्क में आने के बाद लड़की को तो नया जीवन मिल गया. डॉक्टरों ने जांच करके बता दिया था कि ये तो ठीक हो सकती है, सो इलाज का बीड़ा तुषार के पिता ने उठाया. ये लड़की अब सामान्य जीवन जी रही है.
जुनूनी और देशभक्त था तुषार :
थोड़ा सहज महसूस करने पर माता पिता ने जब बात करनी शुरू की तो तुषार के जीवन से जुड़ीं बातें और यादें साझा करने का सिलसिला लम्बा ही होता चला गया. आशा गुप्ता बताती हैं कि तुषार के मन में शुरू से ही देशभक्ति की भावनाएं भरी हुई थीं. कोई भी आतंकवादी वारदात होती थी तो उसका खून खौलने लगता था. नौवीं कक्षा के आसपास ही उसके मन में एनडीए ने जगह बना ली थी. तुषार उधमपुर के लिटिल फ्लावर कॉन्वेंट स्कूल का छात्र था. आज भी पिता देव राज गुप्ता इस बात को उतनी ही हैरानी के साथ बताते हैं जब तुषार 12 वीं कक्षा में था और उनको बताए बिना ही एनडीए की परीक्षा भी दे आया था. शुरू से ही अनुशासन प्रिय तुषार फ़िल्में और टीवी सीरियल भी वही देखता था जिनका विषय देशप्रेम हो. उनके परिवार में सेना में भर्ती होने वाला तुषार एकमात्र सदस्य था. वैसे तुषार का एक बड़ा भाई भी है जो पेशे से इंजीनियर है.
उस दिन क्या हुआ था :
ये 20 फरवरी 2016 की बात है. अत्याधुनिक हथियारों एके 47 असाल्ट राइफल्स, हथगोलों और विस्फोटकों से लैस लश्कर ए तैयबा के चार आतंकवादी जम्मू श्रीनगर को जोड़ती मुख्य लिंक रोड पर केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल ( सीआरपीएफ – crpf ) के काफिले पर हमला करने के बाद पोम्पोर की सरकारी बिल्डिंग में घुस गए. इस हमले में दो सुरक्षाकर्मी और एक नागरिक की जान गई थी. जिस मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में आतंकवादी घुसे वहां ‘ इंटरप्रेनरशिप डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट’ ( entrepreneurship development institute ) है. जब आतंकवादी इसमें घुसे तब यहां कर्मचारी भी थे और छात्र भी थे. सेना और सीआरपीएफ ने घेराबंदी करने के बाद बिल्डिंग में से लोगों को सुरक्षित निकालने का साझा अभियान शुरू किया. आतंकवादी भीतर से फायरिंग कर रहे थे और हथगोले भी फेंक रहे थे. तकरीबन सभी 100 से ज्यादा लोगों को निकाल लिया गया था. शुरूआती कार्रवाई में 10 पैरा के कैप्टन पवन कुमार हमले में घायल हुए और फिर उन्होंने प्राण त्याग दिए. इस बीच एक आतंकवादी भी मारा गया था और ई डी आई बिल्डिंग के एक हिस्से में आग लग गई थी.
इससे अगले दिन यानि 21 फरवरी को आतंकवादियों से बिल्डिंग को खाली कराने के लिए अंतिम ऑपरेशन किया गया. 48 घंटे के घमासान के इस आखरी दौर में बाकी तीन आतंकवादी भी मारे गए लेकिन भारतीय सेना को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. इसके दो और जांबाज कमांडो को अपने प्राण देने पड़े. 9 पैरा के कैप्टन तुषार महाजन और लांस नायक ओम प्रकाश को अपना सर्वोच्च बलिदान देना पड़ा.