लदाख के उस वीर ताशी नामग्याल ने इस संसार को अलविदा कह दिया है जिसकी 25 साल पहले दिखाई गई सूझबूझ और बहादुरी के कारण पाकिस्तानी सेना भारत में घुसकर खतरनाक मंसूबों को पूरा नहीं कर सकी थी . बिना वर्दी के इस ‘सैनिक’ का अपने गांव गरकोन में निधन हो गया. ताशी 60 बरस के थे.
फायर एंड फ्यूरी कोर ( fire and fury corps ) ने ताशी नामग्याल को एक देशभक्त और लदाख का वीर बताते हुए श्रद्धांजलि व्यक्त की है. फायर एंड फ्यूरी कोर ने एक्स (X) पर पोस्ट किया है कि कोर ताशी नामग्याल के आकस्मिक निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करती है. 1999 के ऑपरेशन विजय के दौरान राष्ट्र के लिए उनका अमूल्य योगदान स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा. हम इस दुख की घड़ी में शोक संतप्त परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं.
लदाख के करगिल ज़िले में सिंधु नदी के किनारे बस गरकोन गांव के ताशी नामग्याल ही वह पहले शख्स थे जिन्होंने भारतीय सेना को पाकिस्तान की तरफ से हो रही घुसपैठ की खबर सबसे पहले पहुंचाई थी .
गरकोन गांव (garkon village ) लदाख में भारत – पाकिस्तान सीमा पर है. उस दिन ताशी नामग्याल अपने उस याक को खोजने निकले थे जो घास चरते चरते कहीं रास्ता भटकने से गुम हो गया था. तभी उनकी नजर पाकिस्तान की दिशा से इस तरफ आ रहे घुसपैठियों को देखा था. उन्होंने भरपूर सूझबूझ और बहादुरी का परिचय देते हुए जल्दी से जल्दी यह सूचना सेना के अधिकारियों तक पहुंचाई . इसके बाद भारतीय सेना ने उन घुसपैठियों का मुकाबला करके उनको खदेड़ डाला . 1999 की उस घमासान की यह पहली इस घटना थी जिससे करगिल युद्ध ( kargil war ) की शुरुआत हुई .