बीआरओ ने खतरे उठा चीन सीमा तक बनाई सड़क, मानसरोवर यात्रा हुई आसान

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पवित्र कैलाश-मानसरोवर

दुरूह पहाड़ी इलाके में सड़क बनाने का सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) का चुनौती भरा वो एक ख़ास प्रोजेक्ट न सिर्फ आज पूरा हुआ बल्कि इस पर ट्रैफिक भी चालू कर दिया गया. इससे कैलाश-मानसरोवर यात्रा और सीमा क्षेत्र में आपसी संपर्क के एक नए युग की शुरुआत भी हुई है. ये 80 किलोमीटर लम्बी सड़क है जो चीन सीमा तक पहुंचाती है. इसके शुरू होने से कैलाश-मानसरोवर के तीर्थयात्री जोखिम भरे व अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाके के रास्ते पर मुश्किल सफ़र करने से बच सकेंगे.

वीडियो कांफ्रेंसिंग से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने धारचूला (उत्तराखंड) से लिपुलेख (चीन सीमा) तक इस सड़क मार्ग का उद्घाटन किया.

दिल्ली में आज वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक विशेष कार्यक्रम में धारचूला (उत्तराखंड) से लिपुलेख (चीन सीमा) तक इस सड़क मार्ग का उद्घाटन किया. इसके तहत उन्होंने पिथौरागढ़ से गुंजी तक वाहनों के एक काफिले को रवाना किया. राजनाथ सिंह ने कहा कि इस महत्वपूर्ण सड़क संपर्क के पूरा होने के साथ, स्थानीय लोगों और तीर्थयात्रियों के दशकों पुराने सपने और आकांक्षाएं पूरी हुई हैं. इस सड़क के शुरू होने के साथ, क्षेत्र में स्थानीय व्यापार और आर्थिक विकास को बढ़ने में मदद मिलेगी.

ऐसे काटे गए पहाड़.

तीर्थ यात्रा का नया रूट :

कैलाश-मानसरोवर की तीर्थयात्रा को हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों द्वारा पवित्र तथा पूजनीय बताते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि इस सड़क लिंक के पूरा होने के साथ, यात्रा एक सप्ताह में पूरी हो सकती है, जबकि पहले 2 से 3 हफ्ते लग जाते थे. यह सड़क घटियाबगड़ से निकलती है और कैलाश-मानसरोवर के प्रवेश द्वार लिपुलेख दर्रा पर समाप्त होती है. 80 किलोमीटर लम्बी इस सड़क की समुद्र तल से ऊंचाई 6,000 से 17,060 फीट तक है. वर्तमान में, सिक्किम या नेपाल मार्गों से कैलाश-मानसरोवर की यात्रा होती है जिसमें वक्त काफी लगता है. अब लिपुलेख मार्ग में ऊंचाई वाले इलाकों से होकर 90 किलोमीटर लम्बे मार्ग की यात्रा से बचा जा सकता है. इसमें बुजुर्ग यात्रियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था.

सिक्किम और नेपाल के रास्ते अन्य दो सड़क मार्ग हैं. इसमें भारतीय सड़कों पर लगभग 20 प्रतिशत यात्रा और चीन की सड़कों पर लगभग 80 प्रतिशत यात्रा करनी पड़ती थी. घटियाबगड़-लिपुलेख सड़क के खुलने के साथ, यह अनुपात उलट गया है. अब मानसरोवर के तीर्थयात्री भारतीय भूमि पर 84 प्रतिशत और चीन की भूमि पर केवल 16 प्रतिशत की यात्रा करेंगे. रक्षा मंत्री ने कहा कि यह पहलू सच में ऐतिहासिक है.

खतरे और चुनौतियां :

बीआरओ के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह काम का निरीक्षण करते हुए.

बीआरओ के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह ने बताया कि कई समस्याओं के कारण इस सड़क के निर्माण में बाधाएं आई. लगातार बर्फबारी, ऊंचाई में अत्यधिक वृद्धि और बेहद कम तापमान से काम करने लायक मौसम पांच महीने तक सीमित रहा. कैलाश-मानसरोवर यात्रा भी जून से अक्टूबर के बीच काम के मौसम के दौरान ही होती थी.स्थानीय लोग भी अपनी ज़रूरतों के साजो सामान के साथ इस दौरान ही यात्रा करते थे. व्यापारी भी यात्रा (चीन के साथ व्यापार के लिए) करते थे. इस तरह निर्माण के लिए दैनिक घंटे और भी कम हो जाते थे.

इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों में बाढ़ और बादल फटने की घटनाएं हुईं, जिससे बेहद नुकसान हुआ. शुरुआती 20 किलोमीटर में, पहाड़ों में कठोर चट्टान हैं और ये चट्टानें सीधे खड़ी हैं जिसके कारण बीआरओ के कई लोगों की जान चली गयी. काली नदी में गिरने के कारण बीआरओ के 25 उपकरण भी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए. इन रुकावटों के बावजूद, पिछले दो वर्षों में, बीआरओ कई कार्यस्थल बिंदु बनाकर और आधुनिक प्रौद्योगिकी उपकरणों को शामिल करके अपने उत्पादन को 20 गुना बढ़ाने में सफल हुआ. इस क्षेत्र में सैकड़ों टन स्टोर / उपकरण सामग्री की उपलब्धता के लिए हेलीकॉप्टरों का भी बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया.

मानव हानि रोकने के लिए रिमोट से चलने वाली मशीनों का प्रयोग किया गया.

बीआरओ का समर्पण :

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस परियोजना के पूरा होने पर सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के इंजीनियरों और कर्मियों को बधाई दी जिनके समर्पण ने इस उपलब्धि को संभव बनाया है. उन्होंने इस सड़क के निर्माण के दौरान हुए हादसों में लोगों की मौत पर शोक व्यक्त किया. उन्होंने बीआरओ कर्मियों के योगदान की प्रशंसा की जो कोविड-19 के संकट के बीच काम करते रहे और कठिन समय में भी परिवार से अलग दूरदराज़ जगह में रहते हैं. बीआरओ शुरू से ही उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र के विकास में सक्रिय रूप से शामिल रहा है.

कैलाश-मानसरोवर की तीर्थयात्रा को सुगम बनाने के दौरान मशीनों और औजारों का भी बहुत नुकसान हुआ.

इस कार्यक्रम में भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ जनरल बिपिन रावत, सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, रक्षा सचिव डॉ अजय कुमार, अल्मोड़ा (उत्तराखंड) से लोकसभा के सदस्य अजय टमटा और रक्षा मंत्रालय एवं बीआरओ के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए.