… और इसलिए जनरल पैडी ने जम्मू कश्मीर का राज्यपाल बनना मंज़ूर नहीं किया

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पूर्व सेना प्रमुख जनरल सुन्दर राजन पद्मनाभन को पूरे सैनिक सम्मान के साथ मंगलवार को इस संसार से विदा कर दिया गया

भारत के पूर्व सेना  प्रमुख जनरल सुंदरराजन पद्मनाभन को पूरे सैनिक सम्मान के साथ कल  ( 20 .08 .2024)  तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में इस संसार से विदा कर दिया गया. जनरल पैडी के नाम से सेना में लोकप्रिय 83 वर्षीय जनरल पद्मनाभन को चेन्नई के  बसंत नगर स्थित विद्युत शवदाह गृह पर पंचतत्व में विलीन किए गए . शोकाकुल परिवार के सदस्यों के अलावा ,  उन्हें आखरी सलाम करने और श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए  यहां बड़ी तादाद में सेना के अधिकारी , पूर्व सैनिक और नागरिक  भी पहुंचे हुए थे .

जनरल सुन्दर राजन पद्मनाभन एक शानदार सैनिक अफसर तो थे ही जीवंत , खुद्दार , स्पष्टवादी और साथ ही दयालु होने के कारण महान व्यक्तित्व के मालिक थे. यही वजह है  कि उनसे जुड़े किस्से , घटना क्रम और  उनके साथ बिताये अपने पलों को लोग सोशल मीडिया पर साझा कर रहे हैं . खासतौर से सेना के वो अधिकारी जिन्होंने उनके साथ या उनके कार्यकाल के दौरान भारतीय सेना में सेवा की है .

ऐसे ही एक अधिकारी ब्रिगेडियर हरदीप सिंह सोही ( hardeep singh sohi ) हैं जिन्होंने जम्मू कश्मीर में तैनाती के समय जनरल सुन्दर राजन के मातहत सेना की सेवा की. एक ही तैनाती में कार्यकाल के दौरान शौर्य चक्र समेत तीन वीरता पुरस्कारों से अलंकृत ब्रिगेडियर हरदीप सिंह सोही ने जनरल पैडी को श्रद्धांजलि देते हुए एक ऐसे घटना क्रम को लेकर पोस्ट लिखी है जिसने हास्यास्पद हालात स्थिति तो पैदा की ही थी हमारे समाज और इंसानी फितरत की गिरगिटी असलियत  भी उजागर कर डाली थी.

अपने एक्स (X ) हैंडल @Hardisohi अपनी इस पोस्ट की शुरुआत ब्रिगेडियर सोही इस शेर की पंक्तियों से करते हैं :

तभी तक पूछे जाओगे, जब तक काम आओगे,

चिरागों के जलते ही बुझा दी जाती हैं तीलियाँ।

इस पोस्ट में तब के घटनाक्रम का ज़िक्र है जब जनरल सुन्दर राजन पद्मनाभन भारतीय सेना की ऊधमपुर मुख्यालय वाली उत्तरी कमांड के प्रमुख थे और वो उनकी रिटायरमेंट  थी.

ब्रिगेडियर हरदीप सिंह ने पोस्ट में लिखा है कि यह सितंबर 2000 की  बात है. उत्तरी कमांड के सेना कमांडर  जनरल पैडी की सेवानिवृत्ति के आदेश जारी किए गए थे. .. और हमेशा मुस्कुराते रहने वाले महान जनरल चेन्नई में अपनी सेवानिवृत्ति की योजना बना रहे थे. इस वर्दी को पहनने का यह उनका आखिरी दिन था.

ऑफिसर्स मेस में विदाई लंच का आयोजन किया गया था. सभी अधिकारियों ने जनरल पैडी को विदाई दी और अपना ध्यान नए सेना कमांडर पर केंद्रित किया, क्योंकि वह उत्तरी कमांड  में नए बॉस थे.

दूसरी तरफ जनरल पद्मनाभन अकेले बैठे थे, और अपनी सेवानिवृत्ति के बाद की चेन्नई की अपनी योजनाओं पर विचार कर रहे थे.

अचानक ऑफिसर्स मेस में हलचल मच गई क्योंकि अधिकारियों ने यह खबर सुनी कि वाजपेयी सरकार ( अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व वाली एनडीए सरकार ) ने सेवा में 2 साल का विस्तार करने का ऐलान किया है. अधिकारियों को फ़ौरन एहसास हुआ कि जनरल पद्मनाभन नए सेना प्रमुख ( सीओएएस – chief of army staff ) होंगे.

अब उत्तरी कमांड के  विदाई लंच में जमा हुए  सभी अधिकारी नए सेना कमांडर को छोड़कर जनरल पद्मनाभन के पास दौड़ पड़े और उन्हें बधाई दी तथा खुशखबरी सुनाई.

यही जीवन है.

ब्रिगेडियर हरदीप सिंह सोही एक अन्य पोस्ट में जम्मू कश्मीर के दौर का ज़िक्र करते हैं जब वहां ज़बरदस्त आतंकवाद था. तब जनरल पद्मनाभन भारतीय सेना की चिनार कोर ( 15 कोर ) के कमांडर थे और ब्रिगेडियर सोही उनके मातहत थे . ब्रिगेडियर सोही लिखते हैं ,” जनरल एस पद्मनाभन उर्फ जनरल पैडी उन बेहतरीन जनरलों में से एक हैं जिनके साथ मुझे काम करने का मौका मिला. उन्होंने 93 के मध्य से 95 के शुरुआती दौर तक आतंकवाद के सबसे बुरे दौर में चिनार कोर ( chinar corps ) का नेतृत्व किया.”

श्रीनगर में पवित्र स्थान ‘हज़रत बल ‘ में घुसे आतंकवादियों ने कब्ज़ा किया हुआ था. ब्रिगेडियर सोही अपनी पोस्ट में लिखते हैं ,” जनरल सुंदर राजन ने  दबावों के बावजूद हमें साहसपूर्वक सोपोर ऑपरेशन करने के लिए हमें इजाजत दी.  ऑपरेशन  हजरतबल का लक्ष्य  भी एक भी गोली चलाए बिना हासिल किया गया.”

तब के हालात के बारे अपनी पोस्ट में ब्रिगेडियर हरदीप सिंह सोही लिखते हैं ,”  हालाँकि पाकिस्तान ने बड़ी संख्या में विदेशी भाड़े के सैनिकों को भेजा था, लेकिन चिनार कॉर्प्स के निरंतर और साहसिक अभियानों से आतंकवाद के स्तर में काफी कमी आई. उन्होंने अकेले ही कश्मीर में आतंकवादियों और पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा खोल डाला था.”

जनरल पद्मनाभन के सेवानिवृत जीवन पर पोस्ट में लिखा है ,” वे रिटायरमेंट के बाद एक अधिकारी और सज्जन की तरह विलीन हो गए.”
आपको बहुत-बहुत सलाम, सर.

राज्यपाल बनने से इनकार :

एक अन्य पोस्ट में ब्रिगेडियर सोही लिखते हैं , ” जब श्रीनगर में हजरतबल की घेराबंदी हुई थी, तब वे चिनार कोर के कमांडर थे.  मैं एक कंपनी कमांडर था जिसने  यूनिवर्सिटी ऑफ़ कश्मीर के चारों तरफ  एक बाहरी घेरा बनाया हुआ था.  उन्होंने स्थिति को ‘कोई बकवास नहीं’ रवैये के साथ दृढ़ता से संभाला. उन्होंने उन बाबुओं ( सिविल अधिकारी ) में से किसी के सामने भी नरमी नहीं दिखाई जो उन आतंकवादियों के साथ बातचीत कर रहे थे जिन्होंने दरगाह पर कब्ज़ा कर लिया था.

ब्रिगेडियर सोही लिखते हैं कि उनमें इतनी हिम्मत थी कि उन्होंने हमें सोपोर को आतंकवादियों से मुक्त करने की इजाज़त दी, जिन्हें कोई छूना भी नहीं चाहता था.

यही नहीं ब्रिगेडियर हरदीप सिंह  सोही यहां तक लिखते हैं कि अगर जनरल सुंदरराजन पद्मनाभन कश्मीर  मामलों की कमान नहीं संभालते, तो आज कश्मीर और भारत का इतिहास अलग होता.

जनरल पद्मनाभन के व्यक्तित्व के बारे में ब्रिगेडियर सोही अपनी पोस्ट में लिखते हैं ,” वे एक तेज-तर्रार, मजाकिया, अत्यधिक सक्षम (एक मजबूत और ईमानदार रीढ़ के साथ, जो हमारे उच्च पदों पर ‘प्रीमियम’ है!!) लेकिन सबसे बढ़कर एक दयालु और मानवीय व्यक्ति थे.

सेवानिवृत्त होने के बाद 200 3 में उन्हें जम्मू-कश्मीर राज्य के राज्यपाल का पद देने की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने कथित तौर पर स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए मना कर दिया (लेकिन अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वह कभी भी रबर स्टैम्प/रिमोट कंट्रोल वाला रोबोट नहीं बनना चाहते थे)

बहुत कम शीर्ष जनरलों में इस तरह की ईमानदारी होती है.

मददगार :

वहीं वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता (shekhar gupta ) ने अपने एक वीडियो में एक ऐसी घटना का ज़िक्र किया जब जम्मू कश्मीर में इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकारों की टीम को ले जा रही एक मारुति वैन पटनी टॉप में दुर्घटना का शिकार को खड्ड में जा गिरी थी. एक महिला पत्रकार की मृत्यु हो गई थी लेकिन एक को रीढ़ समेत शरीर के अन्य हिस्सों में गंभीर चोटें आई थीं . उसकी जान पर बनी हुई और दिल्ली लाने का कोई इंतजाम नहीं था. देरी होने पर उसकी जान को खतरा  था. तब उस पत्रकार को उधमपुर से रात को एयरलिफ्ट  करने का कोई तरीका नहीं था. ऐसे में तत्कालीन वायु सेना प्रमुख एन सी विज ने चंडीगढ़ से प्रशिक्षण उड़ान पर निकले एक एन 32 जहाज़ को ऊधमपुर भिजवाया लेकिन पैरा मेडिकल स्टाफ न होने पर पायलटों ने घायलों को जहाज़ से लाने में मना कर डाला.

शेखर गुप्ता बताते हैं कि तब जनरल पद्मनाभन से मदद मांगी गई. किसी भी तरह के नियम के परे जा कर , जनरल सुन्दर राजन के दखल से , ऊधमपुर से सेना का पैरा मेडिकल स्टाफ वायु सेना के जहाज़ में सवार हो घायल को उपचार के लिए दिल्ली  लाया.

ऑपरेशन पराक्रम :

जनरल सुन्दर राजन पद्मनाभन सितंबर 2000 से दिसंबर 2002 तक भारतीय  सेना के प्रमुख रहे और उन्होंने एक महत्वपूर्ण ऑपरेशन – ऑपरेशन पराक्रम में सेना का नेतृत्व किया.  1 अक्टूबर 2001 को जम्मू और कश्मीर  विधानसभा और 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमलों के बाद नियंत्रण रेखा (LoC) पर भारतीय और पाकिस्तानी सेनाओं के बीच पांच महीने (13 दिसंबर 2001 – 10 जून 2002) तक चला गतिरोध था. यह युद्ध जैसी स्थिति थी. भारत और पाकिस्तान की सेनाएं आमने सामने थीं. तब प्रधानमंत्री वाजपेयी ने पाकिस्तान से  इस बार ‘ आर या  पार ‘ जैसी बात कही थी.