भारतीय वायु सेना के 3 जून को दुर्घटनाग्रस्त हुए मालवाहक विमान एएन 32 (aircraft AN 32) में सवार अधिकारियों और वायु सैनिकों के शवों के इंतज़ार ने शोकाकुल परिवारों का दर्द और बढ़ा दिया है. इन परिवारों को लगता है कि चीन सीमा के पास अरुणाचल प्रदेश में घने जंगल वाले दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र से शव लाने के लिए सेना की तरफ से और ज्यादा कोशिश की जानी चाहिए. असम के जोरहाट वायुसैनिक ठिकाने से अरुणाचल प्रदेश में मेचुका हवाई पट्टी के लिए उड़े इस एएन 32 (AN 32) विमान में सवार सभी 13 लोगों के शव पश्चिम सियांग में दुर्घटना वाली जगह से मिल गये लेकिन मौसम की मार और हालात ऐसे हैं कि वायु सैनिकों के शव वहां से निकाल पाना ही बड़ी चुनौती बन गया है.
लगातार चौथे दिन बुधवार को किये गये प्रयास भी इस मामले में बेकार साबित हुए क्यूंकि तेज़ बारिश और नीचे तक घने बादलों की मौजूदगी की वजह से वायुसेना का हेलिकॉप्टर शव लाने के लिए उड़ान ही नहीं भर सका. जहां दुर्घटना हुई वो जगह 12 हज़ार फुट की ऊंचाई पर है और हेलिकॉप्टर के अलावा शवों को लिफ्ट करने का और कोई जरिया है नहीं.
वहीं हादसे के शिकार हुए सैनिकों के परिवारों का धैर्य टूटता जा रहा है लिहाज़ा वो भावनाओं को नियंत्रित भी नहीं कर पा रहे. शायद यही वजह है कि हादसे के शिकार हुए पायलट फ्लाइट लेफ्टिनेंट आशीष तंवर के पिता राधेलाल कहते हैं, ‘ पहले तो इतने दिन लगा दिए विमान का पता लगाने में, अब पिछले आठ दिन से हर शाम को एक ही जवाब देते हैं कि खराब मौसम की वजह से हेलिकॉप्टर उड़ नहीं पा रहा इसलिए शव नहीं ला पा रहे.’
राधेलाल खुद भी भारतीय सेना के रिटायर्ड सूबेदार हैं और फौजी परिवार से ताल्लुक रखते हैं लेकिन शायद पिता की भावनाएं इस फौजी पर भारी पड़ रही हैं जिसने 29 बरस का अपना जवान बेटा खोया है. उनकी पुत्रवधू संध्या भी फ्लाइट लेफ्टिनेंट है और वो उस वक्त एयर ट्रैफिक कंट्रोल में थी जब पति के विमान को राडार से लापता होते देखा. AN 32 को फ्लाइट लेफ्टिनेंट आशीष तंवर उड़ा रहे थे.
राधेलाल दुर्घटना के तुरंत बाद से ही जोरहाट पहुंचे हुए हैं. उनका कहना है कि विमान दुर्घटना में मारे गये वायुसैनिकों के कई परिवार भारतीय वायु सेना के अधिकारियों से प्रार्थना कर चुके हैं कि दुर्घटनास्थल पर भेजने के लिए ग्राउंड टीम बढ़ाई जाएँ. उनका कहना है कि जल्द ही शव नहीं निकाले गये तो वे रक्षा मंत्री से मिलकर गुहार लगाने को मजबूर होंगे. राधेलाल का कहना है, ‘जब वो वहां से ब्लैक बॉक्स तक निकालकर यूक्रेन पहुंचा सकते हैं तो शव लाने के लिए भी और कोशिश कर सकते हैं’.
इसी हादसे के शिकार हुए भारतीय वायुसेना के कुक राजेश कुमार के भाई राम संतोष का कहना है अरुणाचल प्रदेश से मिल रही सूचना पर भरोसा नहीं होता,’ वो हर दिन कह देते हैं कि शव ला रहे हैं, यहाँ दिल्ली में बैठे हुए हमें समझ नहीं आ रहा कि सही मायने में क्या चल रहा है, नौ दिन हो गये हैं’.
दूसरी तरफ हालात काबू से बाहर और खतरनाक भी हैं. शिलांग में वायुसेना के प्रवक्ता रत्नाकर सिंह ने अंग्रेजी दैनिक हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया कि 12 जून को वायुसेना के बचाव दल को दुर्घटना वाली जगह पर एयर ड्राप (Airdrop) किया गया था. ढलान से शव लाने के लिए खींचे गये लेकिन बॉडी बैग (Bodybag) ही फटने लगे तो ऐसा नहीं किया जा सका. रविवार को 20 सदस्यों की एक टीम और वहां के लिए रवाना की गई है. उनका कहना है कि हेलिकॉप्टर के ज़रिये विन्चिंग से ही शवों को वहां से निकाला जा सकता है. हमें उम्मीद है कि मौसम आखिर ठीक होगा ही.