हांगकांग के जेल विभाग में पहली पगड़ीधारी सिख महिला अधिकारी के तौर पर खुद को स्थापित करने वाली सुखदीप कौर की शख्सियत खासी प्रभावशाली है. सिर्फ 24 साल की उम्र में, कैदियों के सुधार का ज़िम्मा लेने वाले महकमे में, अपनी जगह बनाने के लिए सुखदीप कौर भुल्लर को स्थानीय भाषा कैंटनीज का ज्ञान लेना और इसे बोलना सीखना पड़ा. 6500 कर्मचारियों वाले इस करेक्शनल सर्विसेज़ डिपार्टमेंट (Correctional Services Department – CSD) में गैर चीनी 46 अधिकारियों में से एक सुखदीप कौर कहती हैं कि शुरू में जब एक अधिकारी ने वाकी टाकी पर संदेश के दौरान उनका नाम बोला तो केंटनीज बोलने की उसकी रफ्तार इतनी ज्यादा थी कि वो अपना नाम तक समझ न सकी.
दिसम्बर 2019 में यहाँ अधिकारी बनी सुखदीप कौर ऐसी भारतीय हांगकांगर हैं जो सात साल की उम्र में यहाँ आई थीं और अब यहीं की होकर रह गई हैं. उनका गाँव भारत में पंजाब में पाकिस्तानी सीमा के पास तरनतारन जिले में है लेकिन शुद्ध आचरण के लिए अमृतधारण की प्रक्रिया उन्होंने 12 साल की उम्र में पूरी की थी. पगड़ी धारक की वजह से उन्होंने यहाँ भेदभाव भी झेला. वेशभूषा बिलकुल अलग होने के कारण स्कूल में स्थानीय छात्राएं भी उनसे कटी कटी रहती थीं फिर उन्हें स्थानीय कैंटनीज भाषा भी बोलनी नहीं आती थी. केंटनीज सीखने के बाद बोलने समझने से सुखदीप कौर की दिक्कत दूर हुई और लोग करीब आये. लेकिन उनकी इस वेशभूषा का लाभ भी है. अक्सर लोगों से बातचीत की शुरुआत की वजह उनकी पगड़ी ही बन जाती है. लोग इसके बारे में जानने को उत्सुक होते हैं.
हांगकांग की पहली अमृतधारी सिख अधिकारी सुखदीप कौर इस शहर में तकरीबन 12 – 13 हज़ार की सिख आबादी में अपनी अलग पहचान बना चुकी बेहद धार्मिक प्रवृत्ति की हैं लेकिन जीवन के हर पहलू के प्रति उनका लगाव उनकी ज़िन्दादिल छवि कायम करता है. सोशल मीडिया में उनकी और उनके पति शुबेग सिंह की तस्वीरें देखकर भी उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. सुखदीप और शुबेग का विवाह तीन साल पहले हुआ था और उनका एक बच्चा भी है. सुखदीप कहती हैं कि सिक्खी में केश (बालों) को पवित्र माना जाता है और ये उस कुदरत का प्रतीक है जैसा हमें इश्वर ने बनाया है. हम बालों को काटते नहीं, उनको पगड़ी में सहेज कर रखते हैं.
लो वू स्थित जेल (Correctional Institution) में महिला कैदियों के बीच उनकी तैनाती है जिनमें कुछ भारतीय भी हैं. उनकी वेशभूषा को भारतीय समझते हैं और उनसे बात करने में खुद को सहज पाते हैं. गीत संगीत, राइडिंग और खेलों की शौक़ीन सुखदीप कौर की और भी कई खासियत हैं. जेल अधिकारी बनने के पीछे उन्होंने तर्क दिया है- कैदियों से बातचीत करके उनसे सम्बन्ध बनाना मेरा काम है, उनकी आशाएं -सपने जानना और उन्हें जेल से बाहर ज़िन्दगी के एक और मौके के लिए प्रेरित करना. ‘ जीवन में किसी व्यक्ति को दूसरा मौका ज़रूर देना चाहिए,’ सुखदीप कौर इस सिद्धांत में विश्वास और अमल करती हैं. सुखदीप कहती हैं कि यही बात उन्हें इस नौकरी में खींच लाई.