प्राचीनतम से लेकर आधुनिकतम समाज में सबसे खराब मानी जाने वाली जेल जैसी जगह में भी जीवन कैसे बदल सकता है, इसकी खूबसूरत मिसाल और पुख्ता दस्तावेज़ से कम नहीं है ‘कलर्स : हार्बिगर्स ऑफ़ होप एंड हैप्पीनेस’ . कॉफ़ी टेबल बुक के स्टाइल में छपी ये किताब समाज के विभिन्न तबकों के मनोविज्ञान, इंसानी जज़्बात, ज़रूरतों और बदलाव में हमेशा अच्छे की उम्मीद करने जैसे पहलुओं पर असरदार तरीके से रोशनी डालती है. रंगों और आकृतियों के ज़रिये खुद को व्यक्त करने की कला का अनुभव न होने के बावजूद, सलाखों के पीछे रह रहे इंसानों में छिपे कलाकार को सामने लाने की पहल जितनी सुन्दर और रचनात्मक है उतनी ही ख़ास है इस किताब को तैयार करने की एक सोच.
मॉडल जेल कही जाने वाली सिटी ब्यूटीफुल चंड़ीगढ़ (city beautiful chandigarh) के मुहाने पर स्थित बुड़ैल जेल में विभिन्न अपराधों के सिलसिले में बंद लोगों की बनाई पेंटिग्स और कलाकृतियों की ढेरों तस्वीरों के साथ साथ इसमें प्रकाशित संदेश, कलाकारों के विचार और छोटे छोटे वाक्यों के रूप में जानी मानी हस्तियों की कही बातों को सलीके से इसमें संजोया गया है. प्रकाशन के नज़रिए से तो ये संकलन अच्छा है ही, ये उस दुनिया के प्रति भी एक संवेदनशील सोच पैदा करने वाली किताब है जो दुनिया समाज में होते हुए भी दिखाई नहीं देती या जिसमें रहने वाले सभ्यता के लिए गैर ज़रूरी मान लिए जाते हैं. इनमें कुछ तो सजायाफ्ता हैं तो कुछ विचाराधीन कैदी हैं.
अंग्रेज़ी में छपी इस किताब की जिल्द पलटते ही पहले पन्ने पर मॉडल जेल चंडीगढ़ के मुख्य द्वार की साधारण सी तस्वीर है लेकिन उसके नीचे लिखा वाक्य ही असाधारण सोच का प्रतीक है – ‘ क्योंकि कुछ लोगों की बस पसंद खराब हो जाती है तो इसका मतलब ये नहीं कि वो लोग खराब है’ ( Just because some make bad choices, does not mean they are bad people). जेल में चलाई जा रही विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों का सचित्र ब्यौरा देती ‘कलर्स : हार्बिगर्स ऑफ़ होप एंड हैप्पीनेस ‘ (colours : harbingers of hope & happiness) चंडीगढ़ के कारागार विभाग की प्रस्तुति है जिसे चंडीगढ़ पुलिस के अधिकारियों की देखरेख में लिखा और संकलित किया गया है. पुस्तक के प्रस्तावना की शुरुआत ही पाब्लो पिकासो के वाक्य ‘ कला हमारे रोजमर्रा के जीवन में आत्मा पर जमने वाली धूल को धो डालती है’ से होती है.
ये है टीम वर्क का नतीजा :
किताब में छपी फोटो और प्रकाशित सामग्री बताती है कि चित्रकारी की अलग अलग विधाओं के जरिये खुद को व्यक्त करने के लिए ब्रश और रंगों का यहां के बंदियों ने प्रभावशाली तरीके से इस्तेमाल किया है. ये कलाकृतियाँ और उनके साथ छपे बंदियों के विचार बताते हैं कि इंसान चाहे तो विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को न सिर्फ मानसिक तौर पर विकसित और संतुलित रख सकता है बल्कि अपने से हुई गलतियों की स्वीकार्यता और उनसे सीख लेते हुए भविष्य में उन्हें न दोहराने के संकल्प से जीवन को नया रूप दे सकता है. लेकिन इसके लिए कभी कभी किसी बाहरी व्यक्ति की मदद, प्रोत्साहन या पहल का होना ज़रूरी होता है. चंडीगढ़ की इस जेल में कई बंदियों के जीवन में ऐसा ही परिवर्तन यहां के अधिकारियों डीआईजी ओमवीर सिंह, हरियाणा सिविल सेवा के अधिकारी अतिरिक्त महानिरीक्षक (कारागार) और अधीक्षक विराट, कल्याण अधिकारी दीप कुमार और चंडीगढ़ के सरकारी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर सीमा जेटली के मिले जुले प्रयासों और टीम वर्क के ज़रिए आया है.
यूं हुई शुरुआत :
चंडीगढ़ जेल के बंदियों को पेंटिंग्स सिखाने की शुरुआत तब हुई जब यहां नशा छुड़ाने वाले केंद्र ‘ रूपांतरण’ में काम करने के लिए गवर्नमेंट होम साइंस कॉलेज की सीमा जेटली आईं. यहां की इमारत की हालत खस्ता थी. वाल पेंटिंग और ग्राफिटी करना यहां एक चुनौती थी. सीमा बताती हैं कि तीन कारागार बंदियों प्रीत, दीपक और राजेश की शुरुआत रंग लाई. फिर इस काम में और लोग भी जुट गये. जेल में बंदियों के बीच और उनके साथ काम करने के लिए जब सीमा जेटली यहां आईं तो उत्साह के साथ आशंकाओं से भी घिरी हुई थीं लेकिन अब उनको बेहद संतुष्टि की अनुभूति होती है. उन्होंने यहां बंदी कलाकारों को चित्रकारी के विभिन्न रूपों जैसे मधुबनी, वारली, मंडला का ज्ञान और प्रशिक्षण दिया ताकि वे कला में प्रयोग करने की समझ विकसित कर सकें.
उदासी दूर, खुशियां आईं :
‘कलर्स : हार्बिगर्स ऑफ़ होप एंड हैप्पीनेस’ में कलाकार बंदियों ने अपनी कला के नमूनों के साथ उनके अनुभव भी साझा किये गये हैं. गौतम बुद्ध के विभिन्न रूपों और प्राकृतिक नज़ारों की पेंटिंग्स बनाने वाले हिमांशु हाजरा का काम बेहद सुन्दर है. आर्थिक अपराध के सिलसिले में दर्ज़ केस में गिरफ्तार करके जेल में लाये गये हिमांशु को जेल में घुसते ही लगा था कि जिन्दगी में अब कुछ शेष नहीं है. अपने किये कर्म पर पछताने के साथ भविष्य के बारे सोचते रहना और बार बार रोना …बस यही सब चलता था लेकिन यहां कैनवास पर ब्रश और रंगों ने उनकी सोच और दुनिया ही बदल दी है. हिमांशु हाज़रा अब खुद को शारीरिक, मानसिक और जज़बाती तौर पर बना बेहतर इंसान मानते हैं.
हिमांशु की तरह ही यहां बंद अनिल कश्यप भी हमेशा उदासी और हताशा की जद में थे लेकिन अब उनकी बनाई पेंटिंग्स तक में ख़ुशी और प्रकृति का सृजन दिखाई पड़ता है. उनकी बनाई ‘आत्मा और जीवन चक्र के रिश्ते को अभिव्यक्त करते पद्मासन लगाये ध्यान मुद्रा में गौतम बुद्ध की तस्वीर’ हो या फिर पहाड़ों से बहते झरने के आसपास का प्राकृतिक सौन्दर्य की पेंटिंग, इनको देखकर शायद ही कोई यकीन करेगा कि इसे बनाने वाला शख्स नशे के केस में गिफ्तार करके जेल में लाया गया व्यक्ति है. हत्या के केस में उम्र कैद की सज़ा काट रहे सूरज गिरी कहते हैं कि उनके जीवन की शांति गुम हो गई थी लेकिन पेंटिंग सीखने के बाद उनके तनाव उड़नछू हो गये. अब उनके भीतर का इंसान उन्हें ईश्वर से जुड़ा महसूस होता है. सलाखों के पीछे बंद विचारों से आज़ादी की इच्छा दर्शाने के लिए उन्होंने अपनी पेंटिंग में बोतल को चित्रित किया है जिसके भीतर ढेरों हरे और काले रंग के पत्ते ठूसे गये हैं जो बेतरतीब है और जिनकी आकृति बिगड़ गई है. लेकिन बोतल के बाहर पते हवा में आज़ाद पक्षी की तरह उड़ते और ख़ुशी में झूमते दिखाई देते हैं. बोतल को शराब के नशे की गुलामी के तौर पर भी शायद पेंटर सूरज गिरी ने दर्शाने की कोशिश की है. इन तीन के अलावा भी कई बंदी कैदियों की बनाई तस्वीरें शानदार संदेश देती हैं.
सकारात्मक बदलाव :
यही नहीं इस किताब में कई कलाकारों की उपलब्धियां तो हैं ही जेल में भी सकारात्मकता के भाव को दर्शाती बिभिन्न गतिविधियों की जानकारी दी गई हैं. संगीत के ज़रिये व्यक्तित्व परिवर्तन के लिए मॉडल जेल संगीत केंद्र की स्थापना हो या फेस मास्क बनाने के काम से लेकर , पर्यावरण के संरक्षण में मदद करते बायो गैस प्लांट और सौर उर्जा से बिजली पैदा करना – ये सब यहां होता है. यही नहीं जेल में बंद कैदियों के बनाये उत्पाद बेचने के लिए चंडीगढ़ में एक खूबसूरत शो रूम तो चल ही रहा है.
स्माल इज़ ब्यूटीफुल :
खुद भी कला और प्रकृति प्रेमी चंडीगढ़ के पुलिस महानिदेशक प्रवीर रंजन बेहद उत्साह से जेल में परिवर्तन का ज़िक्र करते हुए बताते हैं कि वे इस दिवाली पर चंडीगढ़ मॉडल जेल के बंदियों के हाथों बने सुन्दर दीये और मोमबत्तियों के पैकेट ही तोहफे में देंगे. फोटो ग्राफी का भी शौक रखने वाले आईपीएस प्रवीर रंजन इस बात में बहुत विश्वास रखते हैं कि छोटे छोटे प्रयास भी बड़ा प्रभावशाली काम करते हैं. उनकी इस सोच को पनपाने में ई एफ शूमाकर की किताब ‘ स्माल इज़ ब्यूटीफुल ‘ ( small is beautiful ) ने मदद की है.