हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत ने पाकिस्तानी जेल में बंद भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी 49 वर्षीय कुलभूषण जाधव की फांसी की सजा पर रोक लगा दी है. इसे पाकिस्तान के खिलाफ भारत की एक बड़ी जीत माना जा रहा है जिसका काफी हद तक श्रेय मशहूर वकील हरीश साल्वे को जाता है जिन्होंने ऐलान किया था कि वो इस केस को लड़ने के लिए मात्र एक रुपया फीस लेंगे. इस बात की जानकारी पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दी थी. इस केस को भारत की राजनयिक कूटनीति की जीत भी कहा जा रहा है. फैसले के बाद हरीश साल्वे ने कहा कि अगर पाकिस्तान ने आदेश का पालन नहीं किया तो भारत वापस अंतरराष्ट्रीय अदालत जाएगा.
हेग की अंतरराष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) ने भारत सरकार का आग्रह मानते हुए पाकिस्तानी ‘सैन्य अदालत की तरफ से कुलभूषण जाधव को दी गई फांसी की सजा पर फिलहाल रोक लगाने का हुक्म सुनाया है. इतना ही नहीं, अदालत ने पाकिस्तान को वियना समझौते का पालन नहीं करने पर फटकार लगाई और आदेश दिया कि भारतीय राजनयिकों को जाधव से मिलने की इजाजत (काउंसलर एक्सेस) दी जाए.
अदालत ने कुलभूषण जाधव को दी गई सजा की समीक्षा करने का आदेश भी दिया, हालांकि इससे कुलभूषण जाधव की रिहाई के फिलहाल आसार नहीं लगते, लेकिन यह उम्मीद बंधती है कि पाकिस्तान में जब उनके खिलाफ नए सिरे से कानूनी प्रक्रिया शुरू की जाएगी तो जाधव भारत सरकार की मदद से अपनी बात ज्यादा निष्पक्ष माहौल में रख सकेंगे. कुलभूषण जाधव के केस में 16 न्यायाधीशों में से 15 एक मत के थे. सिर्फ पाकिस्तान से आने वाले न्यायाधीश टीएस गिलानी ने हर मुद्दे पर उनसे अपना अलग मत दिया.
पाकिस्तान की एक सैन्य अदालत ने कुलभूषण जाधव को जासूसी और आतंकवाद के आरोप में अप्रैल 2017 में फांसी की सजा सुनाई थी. भारत उसका कड़ा विरोध करते हुए मामले को आईसीजे में ले गया था. आईसीजे में यह मामला तकरीबन दो वर्ष दो महीने तक चला. इस बीच भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में काफी तल्खी आ गई और इस कारण भी ये केस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी काफी उछला. पांच महीने पहले ही हेग स्थित आईसीजे ने फांसी की सजा पर अंतरिम रोक लगाई थी.
तय तारीख यानि 17 जुलाई को बुधवार को मामले पर फैसला सुनाते हुए आईसीजे ने जाधव को लेकर पाकिस्तान के रवैये की भी एक तरह से कलई खोल दी. 16 में से 15 जजों ने भारत के पक्ष का समर्थन किया. अदालत ने इस मामले को सुनने के आईसीजे के अधिकार को लेकर पाकिस्तानी ऐतराज को सिरे से खारिज कर दिया और साफ कहा कि पाकिस्तान सरकार ने दूसरे देश के अधिकारी या सैन्यकर्मी को पकड़े जाने पर लागू वियना समझौते के मुताबिक कदम नहीं उठाए हैं. वैसे कुलभूषण जाधव पूर्व सैनिक अधिकारी हैं और अब व्यापार के सिलसिले में ईरान में थे.
पाकिस्तान ने इस समझौते की धारा-36 के तहत जाधव को उसके अधिकार के बारे में नहीं बताया और भारत को भी जाधव की गिरफ्तारी के बारे में तुरंत नहीं बताया गया. साथ ही काउंसलर एक्सेस (भारतीय राजनयिकों को कुलभूषण जाधव से मिलने की इजाजत) नहीं दी. भारत को अपने नागरिक तक राजनयिक पहुंच की इजाजत दी जानी चाहिए थी ताकि उसे सही कानूनी प्रतिनिधित्व दिया जा सके. ऐसे में आईसीजे ने जाधव की फांसी पर लगी रोक को आगे भी जारी रखने का आदेश दिया है.
अदालत ने यह स्पष्ट नहीं किया कि आगे पाकिस्तान में जाधव के खिलाफ मामला कहां चलेगा लेकिन भारतीय पक्षकारों का कहना है कि मामला वहां की सैन्य अदालत में चलाया जाए या सामान्य कोर्ट में, इस के लिए कूटनीतिक पहुंच का काफी असर होगा.
अभी तक जाधव को भारतीय अधिकारियों से मिलने का भी नहीं दिया गया है. ऐसे में भारत को यह भी मालूम नहीं है कि पाकिस्तान के सैन्य बलों के हाथ लगने के बाद जाधव के साथ क्या-क्या हुआ है. संभवत: जाधव पर नए सिरे से कानूनी कार्रवाई वहां की सैन्य अदालत में ही होगी, लेकिन अब जाधव के पास तमाम कानूनी अधिकार होंगे और अपना पक्ष रखने के लिए वह अपनी मर्जी से वकील का चुनाव कर सकेंगे.
वैसे भारत ने जाधव के खिलाफ पाकिस्तान में दायर मामले को निरस्त करने और उन्हें पाकिस्तानी जेल से रिहा करवाने की मांग भी कोर्ट से की थी जिसे आईसीजे ने खारिज कर दिया. पाकिस्तान का दावा है कि जाधव को बलूचिस्तान में आतंकी वारदातों को भड़काने की साजिश रचते हुए गिरफ्तार किया गया था. दूसरी तरफ भारत का कहना है कि जाधव को अपने व्यक्तिगत कारोबार के सिलसिले में ईरान से अगवा कर पाकिस्तान ले जाया गया था. पाकिस्तान ने जाधव को उनकी पत्नी और मां से मिलने की इजाजत जरूर दी थी, लेकिन उन्हें जिस माहौल में मिलवाया गया था वह भी काफी सवाल पैदा करने वाला था.