रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि वुहान शिखर सम्मेलन में बनी सहमति के तहत हम बार्डर पर शांति बरकरार रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन इसके चलते चीन से लगती सीमा पर भारत अपनी चौकसी में कोई कमी नहीं करेगा. उनका कहना है, ‘बार्डर तो बार्डर होता है, अब वह चाहे पाकिस्तान या चीन से लगा हो. मुझे दोनों सीमाओं को लेकर सतर्क रहना है. दोनों मोर्चों पर जवानों को अलर्ट रखना है.
एक न्यूज एजेंसी से साक्षात्कार में रक्षा मंत्री सीतारमण ने यह टिप्पणी की. उनसे वुहान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच अप्रैल में हुई अनौपचारिक शिखर वार्ता के नतीजों को लेकर सवाल पूछा गया था. संवाददाता ने जानना चाहा था कि सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए दोनों नेताओं द्वारा तय दिशा-निर्देशों पर अमल हो रहा है या नहीं. इसके जवाब में सीतारमण ने कहा, ‘हां, सीमा पर शांति के लिए हम प्रतिबद्ध हैं, लेकिन रक्षा मंत्री होने के नाते मुझे बार्डर पर तैनात जवानों को भी अलर्ट रखना है. मुझे दोनों सीमाओं को लेकर सतर्क रहना है. उनके अनुसार, ‘मुझे समुद्री सीमा को लेकर भी उतना ही चौकस रहना है. इस पर कम ही चर्चा होती है.’
अफस्पा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे सैन्य अधिकारियों से सरकार नाराज नहीं
सीमारमण से अफस्पा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे सैन्य अधिकारियों के बारे में भी सवाल पूछा गया. इस पर उनका कहना था कि सरकार इससे नाराज नहीं है. अफसरों ने न्यायालय जाने का रास्ता इसलिए चुना क्योंकि उनके दिमाग में इसको लेकर चिंता सता रही थी. वह इसे बखूबी समझ सकती हैं. बकौल निर्मला सीतारमण, ‘शिकायत निवारण सही है. मैं यह कभी नहीं कहना चाहूंगी कि अगर आपकी कोई शिकायत है तो भी आपको आवाज नहीं उठानी चाहिए. मैं यह कभी नहीं कहूंगी.’
गौरतलब है कि पिछले दिनों सेना के करीब 700 अधिकारियों व जवानों ने देश के अशांत क्षेत्रों में लागू सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (अफस्पा) के तहत संभावित उत्पीड़न के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपनी हिफाजत की मांग की थी. एक अन्य सवाल के जवाब में रक्षा मंत्री का कहना था कि फिलहाल रक्षा क्षेत्र में हो रहे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के आंकड़ों को दर्शाने में समस्या आ रही है. वह वाणिज्य मंत्रालय के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि डिफेंस सेक्टर में हुए एफडीआई के डाटा का स्पष्ट रूप से उल्लेख हो. उनसे पूछा गया था कि विदेशी निवेश के नियमों में उदारीकरण के बावजूद रक्षा क्षेत्र में एफडीआइ की गति क्यों नहीं बढ़ पा रही है?