जब सेना के एक मेजर को कुदरत 20 साल बाद शहीद साथी के गाँव ले आई

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मेजर राकेश शर्मा

जीवन में तकलीफ देने वाली कुछ घटनाएं ऐसी भी होती हैं जिनका कोई एक पहलू संतुष्टि या प्रसन्नता का भाव भी ले आता है. कुछ ऐसा ही भारत के उत्तराखण्ड प्रांत के पहाड़ी ज़िले पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर में हुआ जब वहां स्थित नीलकंठ मन्दिर में भारतीय सेना के सेवानिवृत्त मेजर राकेश शर्मा ने एक फौजी का स्मारक देखा. ये स्मारक शहीद लेफ्टिनेंट विवेक सजवान की याद में बनाया गया था. दुनिया के लिए वही एक अनजान हीरो फौजी जिसने कश्मीर में आतंकवाद और घुसपैठ से जंग में अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे. यानि ये उस फौजी का गाँव था.

मेजर राकेश शर्मा
मेजर राकेश शर्मा

गाँव में वहां के निवासी शहीद फौजी का स्मारक या प्रतिमा का होना कोई हैरानी वाली बात नहीं है क्यूंकि भारत में ऐसे सैकड़ों हजारों शहीदों के स्मारक उनके गाँव में मिल जायेंगे. या उनके नाम पर सड़क, स्कूल, अस्पताल आदि जैसी जगह का नाम रख दिया जाता है. करगिल के समय में शौर्य चक्र से सम्मानित मेजर राकेश शर्मा के लिए तो वैसे भी ये कोई चौंकाने वाली बात नहीं थी क्योंकि 1999 में करगिल युद्ध के बाद से तो ये चलन खूब देखा गया. खुद मेजर राकेश शर्मा के हिमाचल प्रदेश स्थित गाँव की सड़क का नाम मेजर राकेश शर्मा मार्ग हो चुका है. लेकिन यहाँ यानि यमकेश्वर में लेफ्टिनेंट विवेक का स्मारक देख मेजर राकेश शर्मा का चौंकना या यूँ कहें की हैरान होना लाज़मी है. उसकी बड़ी वजह है. और वे ये कि तकरीबन 20 साल से भी पहले राकेश शर्मा को यहाँ आना चाहिये था लेकिन उनकी हिम्मत नहीं हुई. असल में ये उनके उसी साथी फौजी का गांव था जिसका साथ उन्हें सेना में शामिल होते ही मिला था.

मेजर राकेश शर्मा
यमकेश्वर में पोखरखाल गाँव के इंटर कॉलेज में बनाया गया आइसोलेशन सेंटर है.

अब जब महामारी कोविड 19 के प्रकोप से लोगों को बचाने और मदद करने की मुहिम पर अपने फौजी साथियों के साथ उत्तराखंड के गांवों का मेजर राकेश शर्मा ने रुख किया तो कुदरत उन्हें इस गाँव में भी ले आई. वही गाँव जहां विवेक सजवान का परिवार रहता है और 1998 में विवेक की शहादत के बाद इस परिवार से मेजर राकेश को मिलने आना था लेकिन साहस नहीं जुटा पा रहे थे. हालांकि इस शहादत का पता भी राकेश शर्मा को 6 महीने बाद चला था. लेफ्टिनेंट विवेक सजवान को साहस और वीरता के लिए शौर्य चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया था.

लेफ्टिनेंट विवेक और राकेश अकेडमी में एक ही कमरे में रहते थे. बाद में दोनों की कश्मीर में अलग अलग जगह पोस्टिंग हो गई. पहले किसकी शाहदत होगी, इसे लेकर दोनों के बीच मजाकिया बात भी हुई थी. और इस तरह वो तमाम बातें और विवेक के साथ बिताये दिनों की तमाम यादें अब मेजर राकेश शर्मा के जेहन में एक फिल्म की तरह घूम रही थीं.

मेजर राकेश शर्मा
आइसोलेशन सेंटर में आक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था भी की गई है.

जैसा की सेना की परम्परा है ‘आखिरी सांस तक साथी को ना छोड़ना’ , वैसा ही इस मौके पर निर्णय लिया गया और कोविड 19 में मदद की इस मुहिम को लेफ्टिनेंट विवेक सजवान के नाम पर अब किया जा रहा है. चले गये एक साथी की याद को ज़िंदा रखने के लिए जिंदगियों को बचाने की मुहिम से उसके नाम से जोड़ने से अच्छी भला और क्या श्रद्धांजलि हो सकती है.

कोविड संक्रमण से जंग :

मेजर राकेश शर्मा और उनके साथियों ने यहाँ यमकेश्वर में पोखरखाल गाँव के इंटर कॉलेज में कोविड 19 के मरीज़ों के लिए आइसोलेशन सेंटर बनाया है. पौड़ी के कई गाँवों में जाकर लोगों को कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर जागरूक करने और संक्रमण से बचाव के लिए सामग्री बांटने के साथ साथ ये टीम मरीजों की देखभाल की व्यवस्था भी कर रही है. यहाँ इस मुहिम का नेतृत्व माऊंट एवरेस्ट की चढ़ाई कर चुके पूर्व सैनिक सुदेश भट्ट कर रहे हैं.

मेजर राकेश शर्मा
पूर्व सैनिक सुदेश भट्ट

उन्होंने बताया कि इस केंद्र में 12 मरीजों के रहने का बंदोबस्त किया गया है. उन्हें दवाइयां और खाना आदि स्थानीय निवासियों की मदद से पहुँचाया जा रहा है. पूर्व सैनिकों के अलावा कुछ और वालंटियर भी इसमें मदद कर रहे हैं. यहाँ 5 -5 लीटर के दो ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर लगाये गये हैं.

मेजर राकेश शर्मा
इस अभियान में कर्नल अजय कोठियाल का भी अहम योगदान है.

स्थानीय मदद से कुछ ऑक्सीजन सिलेंडर का भी इंतजाम किया गया है. मेजर राकेश शर्मा ने बताया कि इन पहाड़ी ग्रामीण इलाकों में आसपास तो क्या दूर दराज़ भी ऐसी व्यवस्था नहीं है जहां कोविड संक्रमित लोगों का इलाज हो सके. ऐसे में बचाव ही सबसे बड़ा और कारगर उपाय है. इस बारे में लोगों को शिक्षित करने और फेस मास्क, हैण्ड सेनेटाइज़र आदि वितरित करने का काम उनके साथी कर रहे है. ज़रूरत पड़ने पर ये लोग स्थानीय स्वास्थ्यकर्मियों की भी मदद लेते हैं.

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