देर से ही सही लेकिन सीआरपीएफ के विभोर सिंह को मिला शौर्य चक्र

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सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट विभोर सिंह

देर आयद दुरुस्त आयद …!  फारसी की यह कहावत जांबाज़ विभोर सिंह की वीरता और साहस को सरकार की तरफ से सम्मान देने के  मामले साबित होती है . दो साल पहले नक्सलियों से भीषण मुकाबले में दोनों टाँगे गंवाने वाले केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल ( central reserve police force ) की कोबरा बटालियन के सहायक कमांडेंट विभोर सिंह को सरकार ने अब शौर्य पदक देने का ऐलान किया है . एकबारगी तो विभोर सिंह की बहादुरी को नज़रंदाज़ कर इस काबिल माना ही नहीं गया था.

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर  सीआरपीएफ की तरफ से जारी एक विज्ञप्ति में बताया गया है कि  सरकार ने 75 वें गणतंत्र दिवस  ( republic day ) के अवसर पर सहायक कमांडेंट विभोर  सिंह को असाधारण साहसपूर्ण कार्य  के लिए शौर्य चक्र ( shaurya chakra ) देने का ऐलान किया है.

जब घायल हुए सहायक कमांडेंट विभोर सिंह को उपचार के लिए दिल्ली ले जाया गया

विभोर सिंह का साहस और वीरता :
यह 25 फरवरी 1922 की घटना है. जगह थी बिहार के औरंगाबाद में छकरबंधा का जंगल. यहां सीआरपीएफ ने नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन छेड़ा हुआ था. सीआरपीएफ की 205 कोबरा बटालियन  (CoBRA Battalion) के सहायक कमांडेंट विभोर सिंह के नेतृत्व में जवान नक्सलियों के जवाबी हमले की तैयारी कर रहे थे. इसी बीच विभोर सिंह बम धमाके की चपेट में आ गए . बुरी तरह घायल विभोर सिंह  ने एक टांग गंवा दी थी लेकिन न मैदान छोड़ा और न ही अपनी राइफल नहीं छोड़ी.  इस दौरान भी उन्होंने अपने साथियों का मनोबल बढ़ाए रखा ताकि नक्सलरोधी  अभियान कमजोर न पड़े. इसके बाद सुरक्षाबलों ने  नक्सलियों को खदेड़ने में कामयाबी हासिल की थी .  लेकिन इन हालात  में  उनका काफी रक्तस्राव हुआ और विभोर सिंह की जान के लिए भी खतरा पैदा हो गया था . सहायक कमांडेंट विभोर सिंह को कई घंटे के बाद वहां से निकाला जा सका. बाद में उनको दिल्ली भी लाया गया लेकिन उनकी दूसरी टांग भी नहीं बचाई जा सकी. लिहाज़ा विभोर सिंह की दोनों ही टाँगे घुटने के नीचे से डॉक्टरों को काटनी पडी.

सम्मान देने की मांग :
सहायक कमांडेंट विभोर सिंह के  इस साहसिक  काम और  वीरता को उचित सम्मान दिए जाने की मांग विभिन्न मंचों पर हुई. उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने इसकी सिफारिश भी की थी. इस मामले में कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी कमेटी की रिपोर्ट आने के साथ ही सीआरपीएफ के  बिहार सेक्टर के तत्कालीन महानिरीक्षक ने विभोर सिंह को वीरता के लिए सम्मान देने के लिए अनुशंसा की थी. इसके बाद सितंबर 2022  में  इंटरनेट पर सार्वजनिक अपील के साथ change.org पर अभियान चलाया गया था.

क्या है शौर्य चक्र :
शौर्य चक्र  ( shaurya chakra) एक ऐसा भारतीय सैन्य सम्मान है जो दुश्मन के साथ सीधी कार्रवाई में शामिल न होते हुए वीरता, साहसी कार्रवाई या आत्म-बलिदान के लिए दिया जाता है. शांतिकाल में दिया जाने वाला यह सम्मान  नागरिकों के साथ-साथ सैन्य कर्मियों को भी प्रदान किया जा सकता है.  कभी-कभी यह मरणोपरांत भी प्रदान किया जाता है . शौर्य चक्र शांतिकालीन वीरता पुरस्कारों ( gallantry medal) की वरीयता क्रम में तीसरे नंबर  पर है जो अशोक चक्र और कीर्ति चक्र के बाद आता है.

शौर्य चक्र का इतिहास :
शौर्य चक्र भारत के राष्ट्रपति की तरफ से 4 जनवरी 1952 को  “अशोक चक्र की तीसरी श्रेणी” के सम्मान के रूप में स्थापित किया गया था जो 15 अगस्त 1947 से प्रभावी हुआ. 27 जनवरी 1967 को नियमों  को संशोधित किया गया और अलंकरण का नाम बदला गया . 1967 से पहले, इस पुरस्कार को अशोक चक्र, श्रेणी III के रूप में जाना जाता था.

पहले शौर्य चक्र सैनिकों को ही दिया जाता था. जुलाई 1999 से, यह पुलिस बलों और मान्यता प्राप्त अग्निशमन सेवाओं के सदस्यों के अलावा, जीवन के सभी क्षेत्रों में किसी भी  नागरिकों को भी दिया जा रहा है.