किंगफिशर एयर लाइंस और किंगफिशर बीयर जैसे बड़े ब्रैंड्स के मालिक रहे भारतीय शराब कारोबारी विजय माल्या के खिलाफ बैंक धोखाधड़ी के मामले में तीन साल से लगातार चल रही जांच में, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई CBI) के अधिकारी सुमन कुमार की मेहनत आखिर रंग ले लाई. भगोड़े घोषित और ऊँचे सम्पर्क वाले विजय माल्या को आखिर सीबीआई की हवालात और भारत की अदालत के कटघरे में लाने से रोकने वाली इंग्लैण्ड की कानूनी जंग भी जीत ली गई है. लंदन की हाई कोर्ट ने विजय माल्या के उस आवेदन को ख़ारिज कर दिया है जिसमें माल्या ने भारत भेजे जाने पर रोक लगाने के इरादे से इंग्लैंड की सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने की इजाज़त मांगी थी. अब माल्या को प्रत्यर्पित करने की प्रक्रिया 28 दिन के अंदर पूरी करनी होगी.
एक ज़माने में भारत के कॉर्पोरेट जगत और पेज 3 पार्टियों में सितारे बन के धाक जमाने वाले भारतीय कारोबारी विजय माल्या का ये मामला आईडीबीआई बैंक से 900 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी से जुड़ा है. हालांकि माल्या के खिलाफ बैंकों के एक समूह से 9,000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले की भी जांच चल रही है. इन सबके बावजूद भारतीय क़ानून से बचने के इरादे से, सम्पर्कों और प्रभाव के बूते, वो देश छोड़ लन्दन जा छिपा था. 24 जनवरी 2017 को भारत की अदालत में उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी और इसके साथ ही 31 मार्च को उसे इंग्लैंड से भारत प्रत्यर्पित करने की मांग की गई थी. इस मांग के तहत ही इंग्लैंड में 20 अप्रैल 2017 को विजय माल्या को गिरफ्तार तो कर लिया गया लेकिन प्रत्यर्पित नही किया गया. विजय माल्या ने वहां की अदालत में कानूनी दांव पेंच के बूते अपना प्रत्यर्पण रुकवा लिया और बस तभी से ये पेचीदा कानूनी जंग शुरू हुई जो भारत में अक्सर राजनीति दोषारोपण के लिए एक मुद्दा भी बनती रही.
विजय माल्या के खिलाफ इस जंग को जीतने का बीड़ा सीबीआई के अतिरिक्त एसपी सुमन कुमार के कंधे पर था. सुमन कुमार मामले की छानबीन के साथ साथ विजय माल्या के प्रत्यर्पण की प्रक्रिया की कार्रवाई भी आगे बढ़ा रहे थे. दिल्ली से लेकर लन्दन की अदालतों के बार बार चक्कर लगाने से लेकर, वकीलों से चर्चा, अधिकारियों से तरह तरह की इजाज़त आदि के तीन साल तक ये दौर लगातार चला. आखिर, बृहस्पतिवार को इस मशक्कत का बड़ा नतीजा सामने आया जब प्रत्यर्पण के केस की सुनवाई कर रही लंदन की वेस्टमिन्स्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट और यूके हाई कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने सीबीआई की दलीलों से सहमत होते हुए विजय माल्या की अर्जी को ख़ारिज कर दिया. सीबीआई ने इस कामयाबी के लिए बड़ा श्रेय अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) सुमन कुमार को दिया है. इस दिशा में चुनौतीपूर्ण और सावधानी से किये गये काम के लिए 55 वर्षीय सुमन कुमार की प्रशंसा की गई है जो 23 साल की उम्र में सीबीआई में बतौर सब इन्स्पेक्टर (एसआई) भर्ती हुए थे.
सफेदपोश अपराधों की जांच में सुमन कुमार का शानदार रिकॉर्ड रहा है. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सुमन कुमार को साल 2002 के सीबीआई के बेहतरीन जांच अधिकारी के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया था. यही नहीं सीबीआई के पुराने तौर तरीकों वाली जांच में माहिर कुमार को 2008 में सराहनीय सेवा के लिए पुलिस मेडल , 2013 में उत्कृष्ट जांचकर्ता और 2015 में राष्ट्रपति पुलिस पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है.
सुमन कुमार ने ही 2015 में विजय माल्या के खिलाफ जांच शुरू की थी और अगले साल यानि 2016 में देश से विजय माल्या का फरार हो जाना, भारत की सबसे अहम समझे जाने वाली जांच एजेंसी सीबीआई के लिए शर्म की बात बन गई थी. कानूनी पेचीदा जंग के साथ इस केस का राजनीतिक लाभ लेने के लिए बार बार सुर्खियाँ बनना भी इस एजेंसी को नाकामी की याद दिलाता और एक दाग की तरह दिखाई देता था.
आसान नहीं था :
ब्रिटेन में किसी अपराधी के भारत में प्रत्यर्पण की कार्रवाई किसी जंग से कम नहीं है क्यूंकि यहाँ की कानूनी बाध्यताएं बहुत सारी हैं. उस पर भारत का यहां से किसी को प्रत्यर्पित करवाने का कोई रिकॉर्ड भी अच्छा नहीं है. दरअसल, नियमों के मुताबिक भारत की तरफ से इस मामले की ब्रिटेन की अदालत में पैरवी वहां की सरकारी अभियोजन एजेंसी क्राउन प्रोसीक्यूशन सर्विस कर रही थी. वो सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के सक्रिय समर्थन से यह मुकदमा लड़ रही थी. लिहाज़ा सीबीआई की तरफ से क्राउन प्रोसीक्यूशन सर्विस के वकीलों से सुमन कुमार को तालमेल करना होता था. संवेदनशीलता और चर्चित मामला होने की वजह से इस केस पर मीडिया की भी लगातार निगाह रहती है. इन तमाम पहलुओं की वजह से भी अतिरिक्त एसपी सुमन कुमार को ये सुनिश्चित करना होता था कि केस में सुनवाई की कोई भी तारीख न छूटे.
मील का पत्थर :
यूके हाई कोर्ट की खंडपीठ का 14 मई को दिया गया ये फैसला न सिर्फ इस केस के लिए मील का पत्थर साबित होगा बल्कि उन तमाम सफेदपोश अपराधियों के सन्दर्भ में बनी इस धारणा को बदलने में मददगार होगा कि भारत से अपराध करके फरार होना और फिर विदेश में हमेशा के लिए क़ानून के शिकंजे से बचे रहना आसान है. विजय माल्या ने 29 अप्रैल को याचिका दायर करके हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ यूके की सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की इजाज़त मांगी थी.
तरह तरह के दांव :
इससे पहले विजय माल्या के वकील उसका प्रत्यर्पण रुकवाने के लिए तरह तरह के दांव पेंच आज़माकर प्रत्यर्पण आदेश में देरी करवाने में कामयाब होते रहे. कभी भारत की जेलों की हालत और मानवाधिकारों के हनन जैसी पेश की गईं उनकी दलीलों को ख़ारिज करने में कोर्ट को संतुष्ट करने में भारतीय एजेंसी को समय लगता था. इसी तरह किसी न किसी बहाने से माल्या ने मामला उलझाकर लटकाए रखा. अदालत को संतुष्ट करने के लिए विभिन्न राज्यों, मंत्रालयों और विभागों से लिखित रिपोर्ट, दस्तावेज़ मंगाने पड़ते थे. महाराष्ट्र सरकार, जेल विभाग, केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अलावा लन्दन स्थित भारतीय उच्चायोग से तालमेल भी करना पड़ता था.