भारतीय सेना में अधिकारियों की बरसों से चल रही कमी को दूर करने और साथ ही मानव संसाधन पर आने वाले खर्च को कम करने के मकसद से टुअर ऑफ़ ड्यूटी (Tour of duty) के तहत भर्ती का प्रचारित विचार/प्रस्ताव पर विवाद छिड़ा हुआ है. वहीं शार्ट सर्विस कमीशन को करियर की दृष्टि से आकर्षक और व्यवहारिक बनाने के लिए बरसों पहले बने विशेषज्ञों के समूह की सिफारिशों पर भी टालमटोल चल रहा है. भारत के रक्षा मंत्रालय की तरफ से गठित इस विशेषज्ञ समूह ने पांच साल पहले अपने प्रस्ताव दिए थे. इसमें भी एक मकसद खर्चे को कम करना था.
जिस तरह सेना में तीन साल की अस्थाई सेवा करने वाले अधिकारी और जवान को सेवा उपरान्त वित्तीय और अन्य लाभ न देकर धन बचाने की बात कही जा रही है उसी तरह की विशेषज्ञ समूह ने शार्ट सर्विस कमीशन के तहत भर्ती अधिकारी का सेवा काल 10 साल की बजाय पहले की तरह 5 साल करने का प्रस्ताव किया था. हालांकि तीन साल की अस्थाई सेवा वाले ताज़ा प्रचारित प्रस्ताव को, भारत के चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ और पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने शुरुआती विचार मात्र का ही ऐलान किया है. 14 मई को चुनिन्दा पत्रकारों से बातचीत में जनरल रावत ने इस बाबत चर्चा की थी और साथ ही कहा था कि ये अभी सेनाध्यक्ष के विचाराधीन ही है, इस विचार के अलग अलग पहलुओं का अध्ययन होना शेष है. सैन्य हलकों में टुअर ऑफ़ ड्यूटी को अलग अलग नज़रिये से देखा जा रहा है.
अगर आर्थिक पहलू को देखें तो प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक 14 साल के बाद सेना से सेवा मुक्ति तक एक अधिकारी पर 6 .83 करोड़ रुपया खर्च होता है जबकि नई योजना के तहत 3 साल के हिसाब से भर्ती अधिकारी पर ये खर्च 85 लाख रुपये का होगा. वेतन या खर्च ही नहीं, इस मामले में अधिकारियों के तजुर्बे आदि से जुड़े पहलुओं को लेकर भी तरह तरह के सवाल उठ रहे हैं. हालाँकि टुअर ऑफ़ ड्यूटी की शार्ट सर्विस कमीशन से तुलना कतई नहीं की जानी चाहिए क्यूंकि ये योजना ही बिलकुल अलग तरह की है.
असल में ये इस मूल विचार में अस्थाई अधिकारी के तौर पर उन नौजवानों को भर्ती करना है जिन्हें साल भर की ट्रेनिंग देने के बाद आतंकवाद से प्रभावित केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में तैनात किया जाए. यहाँ सवाल है कि क्या इतना खर्च, ऊर्जा और परिश्रम से तैयार अधिकारी को महज़ 3 -4 साल के बाद ही सेना से अलग कर देना सेना का संतुलन बनाकर रख पायेगा? इसका भी अभी जवाब ढूँढा जाना है. वहीं 2015 में रक्षा मंत्रालय के गठित विशेषज्ञ ग्रुप ने शार्ट सर्विस कमीशन में न्यूनतम सेवाकाल 10 साल से घटाकर 5 साल करने की सिफारिश की थी.
2006 से पहले तक शार्ट सर्विस कमीशन में न्यूनतम सेवाकाल 5 साल ही था जिसे पहली बार में 5 साल का और दूसरी बार में 4 साल का विस्तार देकर बढ़ाया जाता था. पांच साल के सेवाकाल के बाद रिलीज़ होने पर अधिकारी ग्रेच्युटी और पूर्व सैनिक के स्टेटस का हकदार होता था. बाद में शार्ट सर्विस कमीशन को ज्यादा आकर्षक बनाने के मकसद से 5 साल +5 साल +4 साल की जगह ये 10 साल +4 साल कर दिया गया. यानि कम से कम 10 साल की सेवा तो अधिकारी के लिए उपलब्ध होती ही थी. चार साल बाद उस व्यक्ति के लिए स्थाई कमीशन की भी सम्भावना रहती थी.
लेकिन एक संस्थान के तौर पर तो ये उसके आर्थिक पहलू से ठीक है लेकिन व्यक्ति के हिसाब से देखा जाए तो सवाल उठना लाज़मी है कि 10 साल की सेवा के बाद मुक्त होने पर वो अधिकारी क्या कर सकेगा. उसकी उम्र 32 – 35 साल के आसपास हो चुकी होती है. न तो उसे पेंशन का लाभ मिलेगा और न ही उसे किसी तरह की रोजगार की गारंटी मिलती है. शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के बावजूद उसके पास सिविल समाज में उस आत्मविश्वास के साथ जीवनयापन की क्षमता विकसित नहीं हुई होती जो इतने बरस के सैन्य वातावरण में रहने के दौरान आदतन/सहज ही हमेशा हासिल रहती है. इस तरह से, ये परिस्थितियाँ एक तरह से उस व्यक्ति के लिए शोषण के दायरे में रखकर देखी जा सकती हैं. इस तरह के जो सवाल विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट में उठाये गये हैं, चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ जनरल बिपिन रावत भी वैसे ही विचार के साथ सवाल उठाते हैं कि अगर 14 साल की सेवा करने के बाद उस व्यक्ति को पेंशन भी नहीं दी गई तो क्या दिया गया? उसे रिटायरमेंट पर कुछ एकमुश्त रकम दी जानी चाहिए. इस पर भी विचार चल रहा है कि रकम कितनी हो.
इन हालात को गौर करने के बाद विशेषज्ञों के ग्रुप की राय थी कि शार्ट सर्विस कमीशन को फिर से 5 +5 +4 किया जाये ताकि उस व्यक्ति को सेना में रहते हासिल किये कौशल के साथ जीवन की नई पारी की शुरुआत करने का पर्याप्त अवसर मिल सके. कहा जा रहा है कि भूतपूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर भी इसी तरीके के हक़ में थे लेकिन जिन दिनों में इस बाबत विचार चल रहा था, तभी गोवा में अचानक परिवर्तित राजनीतिक गतिविधियों के बीच उन्हें वहां मुख्यमंत्री के तौर पर आसीन कर दिया गया. ये 2017 की बात है. तब इस बात पर भी चर्चा चली थी कि अन्य नागरिकों की तरह थल सेना में भी, इंडियन कोस्टगार्ड (भारतीय तटरक्षक) की तर्ज़ पर, शार्ट सर्विस कमीशन योजना के तहत भर्ती अधिकारियों को योगदान वाले नए पेंशन सिस्टम (एनपीएस) का लाभ दिया जा सकता है.
हालांकि विशेषज्ञ कमेटी की उन सिफारिशों में से दो मान ली गई. एक तो अस्पतालों में इलाज की ज्यादा सुविधा मिली. पहले जहां शार्ट सर्विस कमीशन के अधिकारियों को मिलिटरी अस्पताल में सिर्फ ओपीडी की सहूलियत मिलती थी वहीं उनको भी ईसीएचएस (पूर्व सैनिक स्वास्थ्य योजना के तहत, गम्भीर बीमारी के इलाज पर भी आने वाले पूरे खर्च के भुगतान की सुविधा भी दी गई. साथ ही ये भी अधिसूचित किया गया कि सेवा विस्तार के समय के बीच भी सेवामुक्त होने वाले को पूर्व सैनिक का दर्जा दिया जायेगा. हालांकि ऐसा दिल्ली हाई कोर्ट में मामला पहुँचने के बाद स्पष्ट किया गया था.
सैकड़ों पन्नों की उस रिपोर्ट में ऐसे दर्जनों सुझाव और प्रस्ताव हैं जो सेना में अनुशासन, पेंशन, तरक्की, अंदरूनी मामलों में इन्साफ, सेना में काम कर रहे गैर सैन्य विभागों के कर्मचारियों और विभिन्न तरह के विवादों से जुड़े हैं. वर्तमान में भारतीय थल सेना में शार्ट सर्विस कमीशन के अधिकारी के तौर पर 14 साल तक की सेवा का प्रावधान है. इस समय के पूरा होने के बाद अधिकारी स्थाई कमीशन के लिए आवेदन कर सकता है बशर्ते वे योग्यता और पात्रता की शर्तें पूरी करता हो.
टुअर ऑफ़ ड्यूटी के लाभ :
भारत में सेना में भर्ती के लिए विचारणीय ‘टुअर ऑफ़ ड्यूटी’ के बारे में अभी तक सेना या सरकार की तरफ से आधिकारिक तौर पर खुलकर नहीं बताया गया है. थल सेना के प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद ने इसकी पुष्टि करते हुए मीडिया से इतना ज़रूर कहा है कि ये प्रस्ताव उच्चतर स्तर पर विचाराधीन है और इसे एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू करने के लिए सकारात्मक फीडबैक मिला है.
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ के मुताबिक़ ये वालंटियर सेवा है जिसे एक तरह से एमबीए करना समझा जा सकता है. यानि कॉलेज के बाद सेना में तीन साल का लिया गया ऐसा तजुर्बा जिसमें टीम लीडरशिप के गुण सीखे जाते हैं और ऐसे युवाओं को कोई भी कॉरपोरेट हाथों हाथ लेगा. टुअर ऑफ़ ड्यूटी के बाद सेना से जब वो अधिकारी मुक्त होगा तो उसकी आयु 25 – 26 साल के बीच होगी. स्वाभाविक है कि सेना में तरह तरह के कौशल और लीडरशिप के गुण सीख चुके ऐसे चुस्त दुरुस्त युवा मानव संसाधन को भला कौन नहीं एक मानव बल के तौर पर अपने संस्थान में रखना चाहेगा. उनका ये भी कहना है कि टुअर ऑफ़ ड्यूटी की शार्ट सर्विस कमीशन के ज़रिये सेना में दाखिले से तुलना नहीं की जानी चाहिए क्यूंकि ये बिलकुल अलग है. वहीं महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनन्द महिंद्रा समेत कुछ और कॉर्पोरेट घरानों के अलावा उद्योगपतियों की एसोचेम जैसी संस्थाओं ने टुअर ऑफ़ ड्यूटी जैसी योजना का स्वागत किया है.
दूसरी तरफ एक बात ये भी कही जा रही है कि हर तीन साल बाद नये बैच के आने से सेना में जोशीला नौजवान खून तो रहेगा लेकिन तजुर्बेकार अधिकारियों की कमी हो जायेगी, जिससे एक तरह के संतुलन के बिगड़ने के आशंका रहेगी. जहाँ तक युद्ध के मैदान में कौशल और तजुर्बे की बात है तो उस पर जनरल सतीश दुआ ने डिजिटल माध्यम पर एक कार्यक्रम में सवाल जवाब के सत्र के दौरान कहा कि ऐसा नहीं है कि जंग में कम अनुभव वाले अधिकारी बेहतर नहीं कर सकते. उन्होंने मिसाल देते हुए कहा कि करगिल युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बतरा समेत कुछ और युवा अधिकारियों ने अपनी कौशल से ये साबित किया है कि उनमें लीडरशिप जैसे वो तमाम गुण थे जिनकी सेना में ज़रूरत होती है. मनोज पांडे और कैप्टन पवन की दिखाई गई जांबाजी और नेतृत्व का भी उन्होंने इस सन्दर्भ में ज़िक्र किया.
शार्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) :
एसएससी के ज़रिये भारतीय सेना में दाखिल होने के लिए आवेदक की उम्र 19 से 25 साल के बीच और न्यूनतम शैक्षिक योग्यता किसी भी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी से स्नातक होना चाहिए. महिला या पुरुष कोई भी इसके लिए आवेदन कर सकता है लेकिन वो अविवाहित होना चाहिए. एनडीए की तरह इसके लिए भी साल में दो बार भर्ती होती है. अधिकारी बनने के लिए चेन्नई स्थित ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकेडमी (ओटीए OTA) में 49 हफ्ते की ट्रेनिंग पूरी करनी होती है. हर साल दो बैच यहाँ प्रशिक्षित किये जाते हैं. एक बैच अप्रैल में और दूसरा अक्तूबर में शुरू होता है. विस्तृत जानकारी के लिए सेना की वेबसाइट indianarmy.nic.in पर जायें.